सुबह का अखबार(पत्रिका ) पढते-पढते एक खबर ने सहसा मुझे अख़बार और आगे पढने से रोक दिया। खबर भोपाल की थी। खबर, एक स्थान में सम्पन्न ब्राह्मण सभा के कवरेज को लेकर थी। ब्राह्मण सभा में बीजेपी और कांग्रेस सहित अन्य राजनैतिक दलों के लोग थे। सभा में इस बात पर चर्चा हुई थी कि किस पार्टी ने कितने ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकिट दिया ?
मैं सोचने लगा- तो ये राज है, सदियों से समाज की ठेकेदारी अपने कन्धों पर ढोने का ! मैंने क्षत्रिय-समाज की सभाओं के बारे में सुना। मैंने जाट-सभाओं के बारे में पढ़ा। मगर, जिस मुद्दे पर ब्राह्मण सभा का चिंतन था , वह वर्गीय चेतना का अन-मेल उदहारण है। सभा में सम्मिलित ब्राह्मण समाज के सदस्यों को इस बात से कोई मतलब नहीं था कि वे किस पार्टी का समर्थन करे ? उन्हें सिर्फ इस बात से दरकार थी कि किस पार्टी ने कितने ब्राह्मण प्रत्याशियों टिकिट दिया है ! यह होती है, वर्गीय चेतना और वर्गीय हित।
दलितों में केडर की बात की जाती है। मगर, किसी केडर केम्प में मैंने किसी वक्ता को इस तरह की पट्टी पढ़ाते नहीं देखा। यह मेरे लिए दिमाग को झनझनाने वाली खबर थी। यह एक ऐसी बात थी जो बतलाती है कि वह क्या युक्ति है कि ब्राह्मण समाज तमाम विरोध और विरोधियों के बावजूद बाकायदा जिन्दा और साबुत है।
मैं सोचने लगा- तो ये राज है, सदियों से समाज की ठेकेदारी अपने कन्धों पर ढोने का ! मैंने क्षत्रिय-समाज की सभाओं के बारे में सुना। मैंने जाट-सभाओं के बारे में पढ़ा। मगर, जिस मुद्दे पर ब्राह्मण सभा का चिंतन था , वह वर्गीय चेतना का अन-मेल उदहारण है। सभा में सम्मिलित ब्राह्मण समाज के सदस्यों को इस बात से कोई मतलब नहीं था कि वे किस पार्टी का समर्थन करे ? उन्हें सिर्फ इस बात से दरकार थी कि किस पार्टी ने कितने ब्राह्मण प्रत्याशियों टिकिट दिया है ! यह होती है, वर्गीय चेतना और वर्गीय हित।
दलितों में केडर की बात की जाती है। मगर, किसी केडर केम्प में मैंने किसी वक्ता को इस तरह की पट्टी पढ़ाते नहीं देखा। यह मेरे लिए दिमाग को झनझनाने वाली खबर थी। यह एक ऐसी बात थी जो बतलाती है कि वह क्या युक्ति है कि ब्राह्मण समाज तमाम विरोध और विरोधियों के बावजूद बाकायदा जिन्दा और साबुत है।
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