Sunday, April 26, 2020

जो उत्पन्न हुआ है, मरता ही है।

जो उत्पन्न हुआ है, मरता ही है।
कृशा गोतमी का एकलौता पुत्र था। वह किसी बीमारी से मर गया। इससे कृशा गोतमी अति व्याकुल हो गई। वह अपने मरे हुए बच्चे को लेकर इधर-उधर पागल-सी घूमती थी। ‘बच्चे को जिन्दा कर दो’ कहते हुए वह रोती थी।
किसी ने उसे बुद्ध के पास जाने की सलाह दी। तब भगवान जेतवन में विहर रहे थे। भगवान के पास कुछ दूरी पर मरे बच्चे को रखकर ‘मेरे बच्चे को जीवित कर दो’ ऐसा आग्रह करने लगी।
तब बुद्ध ने कहा- ‘‘कृशा! तू नगर में जा और जिस घर में कोई मरा न हो, वहां से एक मुट्ठी पीली सरसो ला।’’
बदहवाश-सी कृशा कई घर गई और एक मुट्ठी पीली सरसो मांगी। बोली- तुम्हारे घर में कोई मरा नहीं होगा तो यह पीली सरसो मेरे मृत पुत्र को जीवित कर देगी। सभी ने यही जवाब दिया- ‘‘कोई घर बिना मृत्यु का नहीं है।’’
जल्दी ही कृशा को होश आया। उसे इस शाश्वत सत्य का ज्ञान हुआ कि ‘जो उत्पन्न हुआ है, वह मरता ही है(स्रोत- भदन्त धर्मकीर्तिः भगवान बुद्ध का इतिहास और धम्मदर्शन, पृ. 96)।’  

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