Thursday, April 2, 2020

भद्द सुत्त

तृष्णा
एकं समयं भगवा मल्लेसु विहरति उरुवेलकप्पं नाम मल्लानं निगमो।
एक समय भगवान मल्ल जनपद के उरुवेल-कल्प नामक मल्लों के कस्बे में विहार करते थे।
अथ खो भद्दको गामणी येन भगवा तेनुपसंकमि।
तब, भद्दक गामणी जहां भगवान थे, वहां आया।
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि।
आकर और भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठा।
एकमन्तं निसिन्नो खो भद्दको गामणी भगवन्तं एतद वोच-
एक ओर बैठ भद्दक गामणी भगवान से बोला-
‘‘साधु मे, भन्ते, भगवा दुक्खस्स समुदयं च अत्थगं च देसेतु।’’
भन्ते! कृपा कर भगवान मुझे दुक्ख के समुदय और अस्त होने का उपदेश करें।
तं किं मञ्ञसि, गामणी, अत्थि ते उरुवेलकप्पे मनुस्सा येसं ते गरहाय सोक परिदेव उप्पज्जेय्युं ?
गामणी! क्या समझते हो, उरुवेल में क्या कोई ऐसे मनुस्स मनुष्य है, जिनके अप्रतिष्ठा से तुम्हें शोक , परिदेव उत्पन्न हो ?
अत्थि मे भन्ते।  है भन्ते!
तं किं मञ्ञसि, गामणी, अत्थि ते उरुवेलकप्पे मनुस्सा येसं ते गरहाय सोक परिदेव न उप्पज्जेय्युं
गामणी! क्या समझते हो, उरुवेल में क्या कोई ऐसे मनुष्य है, जिनके अप्रतिष्ठा से तुम्हें शोक, परिदेव न उत्पन्न हो ?
अत्थि भन्ते! हां भन्ते!
को नु खो गामणी, हेतु, को पच्चयो येन ते एकच्चानं गरहाय उप्पज्जेय्युं ?
गामणी! क्या कारण है कि एक के ही अप्रतिष्ठा से तुम्हें शोक, परिदेव होते हैं ?
येसं मे भन्ते, गरहाय उप्पज्जेयुं, अत्थि मे तेसु छन्दरागो।
भन्ते! उनके प्रति मेरा छन्द-राग है जिनसे मुझे शोक, परिदेव होता है।
येसं पन भन्ते, गरहाय न उप्पज्जेयुं, नत्थि मे तेसु छन्दरागो।
और जिनके प्रति मेरा छन्द-राग नहीं है उनके अप्रतिष्ठा से मुझे शोक, परिदेव नहीं होता।
 छन्दो ही मूलं दुक्खस्स।
छन्द-राग ही दुक्ख का मूल है।
अच्छरियं भन्ते! अब्भुतं भन्ते! याव सुभासितं इदं भन्ते भगवता।भन्ते! आश्चर्य है, अद्भूत है, जो भगवान ने इतना अच्छा समझाया।(भद्द सुत्त; गामणी संयुत्तः आठवां परिच्छेदः सळायतन वग्गः संयुत्त निकाय  पृ. 588 )।

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