बुद्ध के अनित्यता का सिद्धांत
नमामि बुद्धं गुणसागरं तं, सत्था(शास्ता की देशना से) सदा होन्तु सुखी अवेरा.
कायो जिगुच्छो सकलो दुगन्धो, गच्छन्ति सब्बे मरणं अहं च.
नमन करता हूँ मैं, गुणों के सागर उस बुद्ध को; शास्ता की देशना से सदा हो सुखी और अवैर
काया जो घृणा करने योग्य है, सकल दुर्गन्ध से भरी है, जाते है सभी मरण को(मरण-धर्मी हैं ) और मैं भी
नमामि धम्मं(धम्म को) सुगतेन(जो सुगत के द्वारा) देसितं(उपदेशित है), सत्था सदा होन्तु सुखी अवेरा.
कायो जिगुच्छो सकलो दुगन्धो, गच्छन्ति सब्बे मरणं अहं च.
नमामि संघं(संघ को) मुनिराज सावकं(मुनिराज/बुद्ध के सावक/भिक्खु-संघ को). सत्था सदा होन्तु सुखी अवेरा.
कायो जिगुच्छो सकलो दुगन्धो, गच्छन्ति सब्बे मरणं अहं च.
नमामि पच्चेक(प्रत्येक) बुद्धं(बुद्ध को) विसुद्धं(जो विशुद्ध हैं) सत्था सदा होन्तु सुखी अवेरा.
कायो जिगुच्छो सकलो दुगन्धो, गच्छन्ति सब्बे मरणं अहं च.
1. सत्था- शास्ता/ गुरु/मार्ग-दर्शक
जिगुच्छति- घृणा करता है. जिगुच्छो - घृणा करने योग्य
2. बुद्ध ने अवतारवाद का स्पष्ट रूप से खंडन किया है.
अनेक बुद्धों अथवा 28 बुद्धों की कल्पना बुद्ध को जैनियों के 24 अवतारों और हिन्दुओं के 10 अवतारों को मात देने महायानी बौद्ध परंपरा है.
3. इस गाथा का संगायन बहुधा जीवन के अनित्यता का बोध कराने किया जाता है. विशेषकर काल-किरिया(अंतिम किरिया) के समय इस गाथा का पाठ होता है.
4. 'अनित्यता' का सिद्धांत बुद्ध के उपदेशों में प्रमुख है. यथा-
अनिच्चावत संखारा, उप्पाद वय धम्मिनो.
उप्पजित्वा निरुज्झन्ति, तेसं वूपसमो सुखो
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