Wednesday, May 8, 2019

ओभासति ताव सो किमि, याव न उन्नमते पभंकरो (उप्पज्जन्ति सुत्त)

एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति
एक समय भगवान सावत्थी में विहार करते थे।
अनाथ पिंडकस्स आरामे जेतवने। 
जेतवन के अनाथपिंडक आराम में। 
अथ खो आयस्मा आनन्दो येन भगवा तेनुपसंकमि
तब आयु. आनन्द जहाँ भगवान थे, गए
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमंतं निसीदि
जा कर भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गए।
एकमंतं निसिन्नो खो आयस्मा भगवन्तं एतद वोच-
एक ओर बैठे आयु. आनन्द ने भगवान से यह कहा-

"यावकीव भंते ! तथागता लोके न उप्पज्जन्ति
"भंते ! जब तक संसार में बुद्ध उत्पन्न नहीं होते
ताव अञ्ञ तित्थिया परिब्बाजका सक्कता होन्ति गरुकता मानिता, पूजिता
दूसरे मत के साधू लोगों से सत्कार पाते हैं, पूजित और प्रतिष्ठित होते हैं।
लाभिनो होन्ति चीवर-पिंडपात-सयनासन-गिलान-पच्चयं।
चीवर, पिंड पात, शयनासयन और ग्लान-प्रत्यय के लाभी होते हैं।   
यतो भंते! तथागता लोके उप्पज्जन्ति 
भंते ! जब संसार में बुद्ध उत्पन्न होते हैं,  
अथ अञ्ञ तित्थिया परिब्बाजका असक्कता होन्ति गरुकता, मानिता, पूजिता
तब अन्य मत के साधु न सत्कार पाते हैं, न गौरंव, न मान, न पूजित होते हैं 
 न लाभिनो होन्ति चीवर-पिंडपात-सयनासन-गिलान-पच्चयं। 
 न चीवर, पिंडपात, शयनासयन और ग्लान-प्रत्यय के लाभ होते हैं।   
भगवा येव इदानि भंते ! सक्कतो होति गरुकतो--------लाभि गिलान-पच्चय।"
भंते ! भगवान ही इस समय लोगों से मान-सम्मान--- ग्लान -प्रत्यय के लाभी हैं। "

अथ खो भगवा एतद अत्थ विदित्वा इमं उदानं उदानेसि-
तब, इसका अर्थ जान भगवान के मुख से ये शब्द निकल पड़े-
"ओभासति ताव सो किमि, याव न उन्नमते पभंकरो।
"तभी तक खद्योत टिमटिमाते हैं, जब तक सूरज नहीं उगता
स वेरोचनम्हि उग्गते, हतप्पभो होति, न च अपि भासति।"
 सूरज के उगते ही, वे हतप्रभ होते हैं, और फिर,  न टिमटिमाते हैं।"
स्रोत-  उप्पज्जन्ति सुत्त : उदान

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