Monday, May 6, 2019

जच्चन्ध हत्थि कथा

जच्चन्ध हत्थि कथा 

भूतपुब्बं भिक्खवे, सावत्थियं एको राजा अहोसि।
बहुत पहले, भिक्खुओं, सावत्थी में एक राजा हुआ करता था। 
सो राजा अत्तनो मंतीं आमन्तेसि।
उस राजा ने अपने मंत्री को बुलाया।
"एहि मंती, यावत सावत्थियं जच्चन्धा सन्ति,
आओ मंत्री, सावत्थी में जितने जन्म से अंधे हैं,
ते सब्बे एकज्झ सन्निपातेहि।"
उन्हें सब को एकत्र जमा करो।
एवमेव सो मंती रञ्ञो पटिसुत्वा यावत सावत्थियं जच्चंधा
इस प्रकार, उस मंत्री ने राजा को सुन कर सावत्थी में जितने जन्मांध थे
ते सब्बे गहेत्वा येन राजा तेनुपसंकमि।
उन सब को पकड़ कर जहाँ राजा था, लाया।
उपसंकमित्वा तं राजानं एतद वोच-
जा कर उस राजा से ऐसा कहा-
"सन्निपतिता देव ! ते सब्बे जच्चन्धा।"
जमा हैं देव ! वे सब जन्मांध।
"तेन हि भणे, जच्चन्धानं राज-हत्थिं दस्सेहि।"
तो भणे,  जच्चंधों को राज-हत्थी दिखाओ.
एवमेव मंती तस्स रञ्ञो पटिसुत्वा
इस प्रकार  मंत्री ने उस राजा को सुन कर
जच्चन्धानं राज-हत्थिंं दस्सेसि।
जन्मान्धों को राज-हत्थी दिखाया।
अथ खो भिक्खवे, सो राजा येन ते जच्चन्धा तेनुपसंकमि।
और भिक्खुओ, वह राजा जहाँ जन्मांध थे, पहुंचा।
उपसंकमित्वा ते जच्चन्धे एतद वोच-
जा कर उन जन्म से अन्धों को यह बोला -
"दिट्ठो भणेे हत्थि ?"
देखा भणेे, हाथी ?
"आम,  देव ! दिट्ठो  हत्थि।"
हाँ, देव ! देखा हाथी।
"वदेथ भणे,  किदिसो सो हत्थि ?"
बताओ भणे, कैसा है वह हाथी ?
"सो, देव ! कुम्भो सदिसो।
वह देव ! घड़े जैसा है।
सो, देव ! सुप्पो सदिसो।
अनुक्कमेन खीलो,  नंगलो,  कोट्ठको, थूणो, समुज्जनि
अनुक्रम से कील, हल, कोठी, खम्बा, झाडू
सदिसा वदन्ति'ति येन हत्थिस्स दन्तं,
जैसे कहते रहे,  जिन्होंने हाथी का दांत,
सोंडं, कायं, पादं, वालधिंं फुसितंं आसुं।
सुंड, काया, पैर, पूंछ को छुआ ।

एवमेव भिक्खवे, अञ्ञ परिवाजका अन्धा, अचक्खुका सन्ति।
ऐसे ही भिक्खुओं, अन्य परिवाजक अन्धे, बिना आँख के हैं।
ते धम्मं अत्थं न जानन्ति
ते सधम्म का अर्थ नहीं जानते।
धम्मं अत्थं अजानन्ता विवादेन्ति, कलहाति-
सधम्म का अर्थ  न जान कर विवाद करते हैं, झगड़ते हैं
एदिसो धम्मो, तादिसो धम्मो ?
ऐसा सधम्म है, वैसा सधम्म है ?
स्रोत- नाना तित्थियं सुत्त : उदान
- अ ला ऊके  @amritlalukey.blogspot.com

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