Sunday, March 8, 2020

बुद्धि-कौशल

मतिमता
(बुद्धि-कौशल)

एकस्मिं वने,
एक जंगल में 
एको सीहो निवसति।
एक सिंह रहता था।  
तस्मिं येव वने 
उसी जंगल में 
एको ससो पि निवसति।
एक खरगोश भी रहता था। 

एकस्मिं दिने
(एक दिन) 
सीहो संस आह-
(सिंह ने खरगोश से कहा-) 
"अहं तुवं खादामि।"
(मैं तुमको खाता हूँ)

ससो वदति-
(खरगोश कहता है-)
"मिगराज, मा मं खाद।
(मृगराज, मुझको मत खा)
अस्मिं वने,
(इस जंगल में) 
अञ्ञो' पि सीहो निवसति ।
(एक दूसरा सिंह भी रहता है)  
सो पि ममं खादतुं इच्छति।
(वह भी मुझे खाना चाहता है) 

महाराज, सो सन्तिके
(महाराज! वह पास ही ) 
उदपाने वसति।
(जलाशय में रहता है) 

सीहो कोधेन पुच्छति- 
(सिंह क्रोध से पूछता है-)
"तं दस्सेतु ?"
(उसको दिखाओ?) 

सीहो ससेन 
(सिंह खरगोश के साथ) 
उदपाने गच्छति। 
(जलाशय पर जाता है) 
एवं उदपाने 
(एवं जलाशय में) 
अत्तनो छाया दिस्वा 
(अपनी छाया देख कर) 
सीहनाद नदित्वा 
(सिंह-गर्जना कर) 
तं अपरं सीहं हन्तुं 
(उस दूसरे सिंह को मारने) 
उदपाने पक्खन्दति।
(जलाशय में छलांग लगाता है)
एवं मरति।
(एवं मरता है) 

एवमेव
(इस प्रकार) 
दुब्बलेन मतिमता 
(कमजोर के बुद्धि-कौशल से)  
बलवा सीहो 
(बलवान सिंह का) 
घातितो।
(अंत होता है)

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