धम्म की हानि
एक खबर के अनुसार, पिछले दिनों 11 से 15 मई के दरमियान वियतनाम में सम्पन्न विश्व बौद्ध सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधि-मंडल उप राष्ट्रपति वैंकया नायडू के नेतृत्व में शरीक हुआ था.और यह कि वैंकया नायडूजी ने तकरीबन 40 मिनट अपनी स्पीच भी दी थी. अपनी स्पीच में वैंकया नायडू जी ने सम्राट अशोक से लेकर गांधीजी का जिक्र किया किन्तु उन्होंने बाबासाहब डॉ अम्बेडकर का नाम तक लेना उचित नहीं समझा ?
एक खबर के अनुसार, पिछले दिनों 11 से 15 मई के दरमियान वियतनाम में सम्पन्न विश्व बौद्ध सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधि-मंडल उप राष्ट्रपति वैंकया नायडू के नेतृत्व में शरीक हुआ था.और यह कि वैंकया नायडूजी ने तकरीबन 40 मिनट अपनी स्पीच भी दी थी. अपनी स्पीच में वैंकया नायडू जी ने सम्राट अशोक से लेकर गांधीजी का जिक्र किया किन्तु उन्होंने बाबासाहब डॉ अम्बेडकर का नाम तक लेना उचित नहीं समझा ?
इस प्रसंग में एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि वैंकया नायडूजी किस हैसियत से गए थे ? विश्व बौद्ध सम्मलेन में एक हिन्दू का क्या काम ? और फिर, उन्हें स्पीच देने का क्या औचित्य ? क्या यह सरकारी बाबुओं का सैर-सपाटा था, जिसे उपराष्ट्रपतिजी जस्टिफाई कर रहे थे ? और अगर था, तो किस कीमत पर ?
अथवा, क्या यह बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने बुद्ध की इस जन्म-भूमि में पुन एक बार जो धम्म का झंडा गाडा जिसे राहुल संकृत्यायन के शब्दों में; कोई हिला नहीं सकता, उखाड़ने का प्रयास है ?
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