विपस्सना: 'सेफ झोन'
विपस्सना से ही सिद्धार्थ गोतम सम्यक सम्बुद्ध हुए, इस प्रचार-प्रसार में सत्यनारायण गोयनकाजी और उनके सारे विपस्सना केंद्र देश और विदेश में कार्य-रत हैं. इन विपस्सना केन्द्रों की गद्दी पर बैठे विपस्सी इसे 'हिन्दू आतंक' के विरुद्ध 'रक्षा-कवच' के रूप में देखते हैं ! यही नहीं, दलित-बुद्धिस्ट अम्बेडकरवादी, जो स्लम एरिया से उठ कर शहरों के आलिशान बंगलों में शिफ्ट हो चुके हैं, इसे 'सेफ झोन' मान रहे हैं. और तो और, बुद्ध विहार में 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' का प्रत्येक रविवार को पाठ करने वाले बुद्धिस्ट धम्माचारी आधा घंटा विपस्सना कर, कर्म और पुनर्जन्म पर मजे से प्रवचन करते हैं ? निस्संदेह, गुरु गोयनकाजी और उनकी विपस्सना स्तुतीय है ?
साहेब जी, आपका सवाल ऐसे है, जैसे किसी नशे के विरुद्ध सतर्क करने वाले को कहना- 'क्या आपने इसका रस्वादन किया है ? सर, विपस्सना एक हीलिंग प्रक्रिया हो सकती है परन्तु,यह कहना कि विपस्सना से सिद्धार्थ को सम्बोधि प्राप्त हुई' -क्या है ? आप किस दिशा में लोगों को ले जा रहें है ? सिद्धार्थ ने 'किसी संवेग' में गृह-त्याग किया, ये सब क्या है ? सिद्धार्थ के न सिर्फ जीवन से सम्बंधित तमाम घटनाओं को बाबासाहब के उलट, काल्पनिक देवी-देवताओं के कथानकों से विश्लेषित किया रहा है वरन बुद्ध के आधारभूत उपदेशों को कर्म और पुनर्जन्म से जोड़ा जा रहा है ? हम चाहेंगे, लोग सत्य नारायण गोयनका जी के विपस्सना मार्ग पर नहीं बुद्ध के और वह भी बाबासाहब अम्बेडकर द्वारा विश्लेषित बुद्ध के मार्ग पर चलें.
'स्वानुभव' और 'परानुभव' में न उलझ कर मेरा सीधा सवाल है- बुद्ध के जीवन से सम्बंधित प्रमुख घटनाओं को वर्णन करने का तरीका बाबासाहब डॉ अम्बेडकर का सही है या गुरु गोयनकाजी जी का ? सनद रहे, बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने बुद्ध के जीवन से सम्बंधित तमाम घटनाओं को मानवीय पहलू से विश्लेषित किया है जबकि गोयनका जी उन्हें अलौकिक और दैवीय रूप, जैसे कि हिन्दू लेखक करते हैं, विश्लेषित करते हैं ? यही नहीं, गोयनकाजी, बुद्धिज़्म में 'हिन्दू जन्म और पुनर्जन्म' की फिलासफी घुसेड कर बुद्ध के उस मानवीय दर्शन की, एक तरह से हत्या करते हैं जिसके लिए बुद्ध जाने जाते हैं. बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' में न केवल विपस्सना और इस तरह के अभिधम्म की गर्हा की है वरन कर्म की निरंतरता को इसी जन्म तक सीमित कर उन सारे कयासों का मुंह बंद कर दिया है जो बुद्ध को हिन्दुइज्म का अंग सिद्ध करते हैं. तीसरे, हम 'हिन्दू आतंक' से क्यों डरें ? दलितों का नेतृत्व करने वाले महार और चमार, लडाका कौम हैं.
विपस्सना से ही सिद्धार्थ गोतम सम्यक सम्बुद्ध हुए, इस प्रचार-प्रसार में सत्यनारायण गोयनकाजी और उनके सारे विपस्सना केंद्र देश और विदेश में कार्य-रत हैं. इन विपस्सना केन्द्रों की गद्दी पर बैठे विपस्सी इसे 'हिन्दू आतंक' के विरुद्ध 'रक्षा-कवच' के रूप में देखते हैं ! यही नहीं, दलित-बुद्धिस्ट अम्बेडकरवादी, जो स्लम एरिया से उठ कर शहरों के आलिशान बंगलों में शिफ्ट हो चुके हैं, इसे 'सेफ झोन' मान रहे हैं. और तो और, बुद्ध विहार में 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' का प्रत्येक रविवार को पाठ करने वाले बुद्धिस्ट धम्माचारी आधा घंटा विपस्सना कर, कर्म और पुनर्जन्म पर मजे से प्रवचन करते हैं ? निस्संदेह, गुरु गोयनकाजी और उनकी विपस्सना स्तुतीय है ?
साहेब जी, आपका सवाल ऐसे है, जैसे किसी नशे के विरुद्ध सतर्क करने वाले को कहना- 'क्या आपने इसका रस्वादन किया है ? सर, विपस्सना एक हीलिंग प्रक्रिया हो सकती है परन्तु,यह कहना कि विपस्सना से सिद्धार्थ को सम्बोधि प्राप्त हुई' -क्या है ? आप किस दिशा में लोगों को ले जा रहें है ? सिद्धार्थ ने 'किसी संवेग' में गृह-त्याग किया, ये सब क्या है ? सिद्धार्थ के न सिर्फ जीवन से सम्बंधित तमाम घटनाओं को बाबासाहब के उलट, काल्पनिक देवी-देवताओं के कथानकों से विश्लेषित किया रहा है वरन बुद्ध के आधारभूत उपदेशों को कर्म और पुनर्जन्म से जोड़ा जा रहा है ? हम चाहेंगे, लोग सत्य नारायण गोयनका जी के विपस्सना मार्ग पर नहीं बुद्ध के और वह भी बाबासाहब अम्बेडकर द्वारा विश्लेषित बुद्ध के मार्ग पर चलें.
'स्वानुभव' और 'परानुभव' में न उलझ कर मेरा सीधा सवाल है- बुद्ध के जीवन से सम्बंधित प्रमुख घटनाओं को वर्णन करने का तरीका बाबासाहब डॉ अम्बेडकर का सही है या गुरु गोयनकाजी जी का ? सनद रहे, बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने बुद्ध के जीवन से सम्बंधित तमाम घटनाओं को मानवीय पहलू से विश्लेषित किया है जबकि गोयनका जी उन्हें अलौकिक और दैवीय रूप, जैसे कि हिन्दू लेखक करते हैं, विश्लेषित करते हैं ? यही नहीं, गोयनकाजी, बुद्धिज़्म में 'हिन्दू जन्म और पुनर्जन्म' की फिलासफी घुसेड कर बुद्ध के उस मानवीय दर्शन की, एक तरह से हत्या करते हैं जिसके लिए बुद्ध जाने जाते हैं. बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' में न केवल विपस्सना और इस तरह के अभिधम्म की गर्हा की है वरन कर्म की निरंतरता को इसी जन्म तक सीमित कर उन सारे कयासों का मुंह बंद कर दिया है जो बुद्ध को हिन्दुइज्म का अंग सिद्ध करते हैं. तीसरे, हम 'हिन्दू आतंक' से क्यों डरें ? दलितों का नेतृत्व करने वाले महार और चमार, लडाका कौम हैं.
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