अनिमित्तंं अञ्ञातं मच्चानं इध जीवितं
विशाखाय मिगारमातुया नत्ता कालंकत्ता होति।विशाखा मिगारमाता का नाती मर गया था।
अथ सा अल्ल-वत्था, अल्ल-केसा येन भगवा, तेनुपसंकमि।
वह भीगे कपड़ों और बालों में भगवान के पास आयी
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमंतं निसीदि।
पास आ भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गई।
अद्दसा खो भगवा मिगारमातुया एतद वोच-
मिगार माता को देख भगवान ने यह कहा-
"हन्द ! इदानि विसाखे ! अल्ल-वत्था, अल्ल-केसा कथं आगच्छसि इध वा ?"
"अरे ! विशाखे, भीगे बाल और कपड़ों से, यहाँ किसलिए आयी हो ?"
"नत्ता मे भंते ! पिया मनापा कालंकता।"
"भंते ! मेरा बड़ा प्यारा नाती मर गया है।"
"बहुवो मानुसा विसाखे ! पटिदिनं सावत्थियं कालं करोन्ति ?
"बहुत-से मनुष्य विशाखे ! सावत्थी में प्रति दिन मरते हैं ?
ते अपि त्वं पिया मनापा होन्ति ?"
क्या वे भी तुम्हें प्रिय होते हैं।"
"आम भंते ! ते पि मम पिया मनापा होन्ति। "
" हाँ भंते ! वे भी मुझे प्रिय होते हैं। "
"त्वं किं मञ्ञसि, विसाखे !
"तुम क्या समझती हो, विसाखे !
कदाचि त्वं अनल्ल वत्था, अनल्ल केसा भवेय्यासि ?"
तुम्हारे भीगे कपडे और बाल कभी सुख पाएंगे ?"
स्रोत - विसाखा सुत्त : उदान।
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