महासमुद्दो विय अट्ठ अच्छरिया अब्भुता धम्मा।
अट्ठिमे भिक्खवे, महासमुद्दे अच्छरिया अब्भुता धम्मा।आठ हैं भिक्खुओ, महासमुद्र में आश्चर्य-जनक अद्भूत धर्म।
इमस्मिंं धम्म विनये अपि अट्ठ अच्छरिया अब्भुता धम्मा।
इस धम्म-विनय में भी आठ आश्चर्य-जनक अद्भुत धर्म हैं।
1. यथा महासमुद्दो अनुपुब्ब निन्नो, अनुपुब्ब पोणो, अनुपुब्ब पब्भारो
जैसे महासमुद्र लगातार नीचा, गहरा, पर्वत जैसे और गहरा,
न आयतकेन एव पपातो।
नहीं आयतन से ही प्राप्त होता है ।
तथेव इमस्मिंं धम्म विनये
वैसे ही इस धम्म विनय में
अनुपुब्ब-सीक्खा, अनुपुब्ब-किरिया, अनुपुब्ब-पटिपदा।
शिक्षा-पद, किरिया और पटिपदा मार्ग हैं।
2. यथा महासमुद्दो ठित धम्मो,
जैसे महासमुद्र स्थिर धर्म/गुण है,
तथेव सावकानं सीक्खापदंं ठित धम्मो।
वैसे ही बुद्ध सावकों में सिक्खा-पद(शील) स्थिर धर्म/गुण है।
3. यथा महासमुद्दो न मतेन कुणपेन संवसति
जैसे महा समुद्र में मृतक, शव नहीं रह सकते,
यं होति मतं कुणपं,
जो मृतक, शव होते है,
तं खिप्पमेव तीरं वाहेति, थलं उस्सारेति।
उन्हें शीघ्र ही किनारे की ओर बहा देता है, उछाल देता है।
तथेव यो सो दुस्सीलो, पापधम्मो, असाधुचारी,
वैसे ही जो दुष्शील है, पापधर्मी, असाधुचारी,
असमणो, पटिछन्न कम्मन्तो,
असमण, ढके-कार्य वाला
न तेन संघो संवसति
उसके साथ संघ नहीं रहता,
अथ खो तं खिप्पमेव सन्निपतित्वा उक्खिपति।
उसे शीघ्र ही मिल-बैठ कर बाहर कर देता है।
4. या काचि महानदियो, ता सब्बा महासमुद्द पत्वा
जैसे बड़ी नदियां, वे सब महा समुद्र में गिर कर
जहन्ति पुरमानि नाम गोतानि।
पुराने नाम-गोत्र त्याग देती हैं
तथेव सब्बे मनुस्सा अगारस्मा अनगारियं
वैसे सभी मनुष्य घर से बेघर हो
पब्बजित्वा जहन्ति पुरमानि नाम गोतानि।
पब्बज्जित होकर पुराने नाम, गोत्र को त्याग देते हैं।
5. यथा या च सवन्तियो* लोके महासमुद्दंं अप्पेन्ति।
जैसे लोक में ये बहने वाले नहीं-नालें महा समुद्र में आ मिलते हैं
या च अन्तलिक्खा धारा महासमुद्दे पपतन्ति
अंतरिक्ष से मेघ-धारा महासमुद्र में गिरती है
न तेन महासमुद्दस्स ऊनत्तं वा पूरतं पञ्ञायति
न उससे महासमुद्र का घट-बढ़ होता है
तथेव परिनिब्बायन्तेे बहू भिक्खूहि,
वैसे ही बहुत भिक्खुओं के निब्बाण प्राप्त करने से
न तेन निब्बानं ऊनत्तं वा पूरतं पञ्ञायति
न उससे निब्बाण का घट-बढ़ होता।
6. यथा महासमुद्दो एकरसो, लोणरसो,
जैसे महा समुद्र का एक रस खारा पन होता है,
एवमेव धम्म विनयो एकरसो, निब्बान रसो.
उसी प्रकार धम्म विनय का एकरस निब्बाण रस होता है।
7. यथा महासमुद्दो बहु रतनो, अनेक रतनो।
जैसे महासमुद्र बहु-रत्न है, अनेक-रत्न है
तथेव इमस्मिंं धम्म विनये अट्ठङगिक मग्गो।
वैसे ही धम्म विनय में अट्ठङगिक मार्ग बहु/अनेक रत्न है।
8. यथा महासमुद्दो महत्तं भूतानं आवासो
जैसे महासमुद्र विशालकाय जीवों का आवास है
तथेव अयं धम्म विनयो महत्तंं अरहन्तानं आवासो।
वैसे ही धम्म विनय में महत्त अरहंतों का आवास है(सोण वग्गो: उदान)
- अ ला ऊके @ amritlalukey.blogspot.com
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अच्छरिया- आश्चर्य जनक। अब्भुता- अद्भुत। निन्नो - गहरा। पोणो/ पब्भारो - निरंतर गहरा होते जाना। कुणप- लाश। सवति - बहना। उस्सारेति - उछालना
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