अंतर्जातीय विवाह के मायने
दलित समाज के उच्च शिक्षित यूवा, शायद, बाबासाहब डॉ अम्बेडकर से प्रेरित होकर सीधे ब्राह्मण समाज की लड़की अथवा लडके से शादी करते देखे जाते हैं. इस यूवा सोच का यह कृत्य, अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन तो देता है किन्तु जातिय सामाजिक बंधनों को ढीला करने में प्रभावकारी भूमिका नहीं निभाता. अगर ये यूवा अपने ही अन्य दलित जातियों के बीच विवाह करते, तब अंतर्जातीय विवाह का परिणाम, जो बाबासाहब अम्बेडकर चाहते थे, अधिक प्रभावपूर्ण तरीके से उभर कर सामने आता।
दलित उच्च शिक्षण प्राप्त युवती के ब्राह्मण परिवार में जाने से दलित परिवार का भला हुआ हो, कहीं नहीं दिखता और न ही दलित युवक के ब्राह्मण युवती से विवाह करने से दलित परिवार समृद्ध होता है. बल्कि, उल्टा ही देखा गया है. न सिर्फ लडका परिवार से कट जाता है बल्कि समाज से भी वह खुद को 'पृथक' मानने लगता है।
यह ठीक है कि ब्राह्मण, दलित जातियों की बनिस्पत ज्यादा खुले दिमाग के हैं और वे उच्च शिक्षित दलित युवती अथवा युवक को जज्ब कर लेते हैं जबकि दलित जातियों के बीच हुआ यह 'ब्लड इन्फ्यूजन' कभी-कभी ब्लड केंसर के रूप सामने आता है किन्तु यही तो वह जातीय बांड है, जिसे ध्वस्त करना है। दलित जाति के इन उच्च शिक्षण प्राप्त यूवाओं को अपने उद्धारकर्ता बाबासाहब डॉ अम्बेडकर की सोच को अपने जीवन की आचार संहिता के रूप में लेना चाहिए, तभी वे जाति-पांति की बेड़ियों को ध्वस्त करने समर्थ हो सकते हैं .
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