सामाजिक नव-निर्माण का अवसर
असाधारण परिस्थितियां ही किसी नव-निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है, इतिहास साक्षी है. जहाँ-जहाँ सामाजिक परिवर्तन हुए हैं, वहां-वहां उसके पूर्व, असामान्य राजनैतिक परिस्थितियां निर्मित हुई है.
असाधारण परिस्थितियां ही किसी नव-निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है, इतिहास साक्षी है. जहाँ-जहाँ सामाजिक परिवर्तन हुए हैं, वहां-वहां उसके पूर्व, असामान्य राजनैतिक परिस्थितियां निर्मित हुई है.
सामान्य स्थिति में वह उर्जा ही नहीं होती कि वह कोई नव-निर्माण कर सकें. दरअसल, किसी नव-निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में उर्जा की जरुरत होती है, जो सामान्य स्थितियों में पैदा नहीं होती. दूसरे शब्दों में, असामान्य परिस्थितियां, नव-सृजन की पूर्वगामी हैं. वे घर्षण और प्रति-घर्षण के कारण आवश्यक वातावरण निर्माण करती है, क्रांति का सूत्रपात करती है.
यह एक मान्य तथ्य है कि दक्षिण ध्रुव होगा, तभी उत्तरी ध्रुव होगा. ध्रुवीकरण के लिए एक ध्रुव का होना पूर्व शर्त है. दक्षिणी ध्रुव बन चूका है. स्पष्ट है, उत्तरी ध्रुव का बनना तय है. आप उसे नहीं रोक सकते, क्योंकि यही प्रकृति का नियम है. आपको बस, इन उत्तर ध्रुवीय हवाओं का केंद्र बनकर एक प्रचंड चक्रवात में तब्दील होना है.
इस नव-सृजन की पीड़ा को एक गर्भवती स्त्री से अधिक कौन जान सकता है ? यह उसके जीने- मरने की स्थिति होती है. देश की दलित शोषित पीड़ित जातियां जीने-मरने की इस असामान्य स्थिति को अपनी सामाजिक लामबंदी के नव-निर्माण के लिए प्राप्त, एक अवसर के रूप में ले.
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