Monday, May 27, 2019

को फुस्सति ?

"भंते ! को  फुस्सति ?
भंते ! कौन स्पर्श करता है ?  -बौद्ध भिक्खु मोळिय फग्गुन ने भगवान से पूछा ।
एसो नो कल्लो पन्हो।
यह योग्य प्रश्न नहीं है, भगवान ने कहा।
फुस्सति,  अहं न वदामि।
स्पर्श होता है, मैंने नहीं कहता हूँ ।

फुस्सति च अहं वदेय्य,
स्पर्श करता है, यदि मैं कहता
तत्र अस्स कल्लो पन्हो-
तब वहां ऐसा प्रश्न होता-
भंते ! को फुस्सति ?
भंते ! कौन स्पर्श करता है ?
एवं अहं च न वदामि।
किन्तु मैं ऐसा नहीं कहता।

एवं मं अवदन्तं यो एवं पुछेय्य-
मेरे ऐसा बोलने पर कोई पूछता-
भंते ! किंं पच्चया फुस्सति ?
एसो कल्लो पन्हो।
यह योग्य प्रश्न है।
तत्र कालं वेय्याकरणं
तब उसका सही उत्तर होता -
सळायतन पच्चया फुस्सति ।
सळायतन होने से स्पर्श होता है।
फस्स पच्चया वेदना।
स्पर्श से वेदना होती है.

किं पच्चया भंते ! वेदना ?
किस के होने से वेदना होती है ?
फस्स पच्चया वेदना।
स्पर्श के होने से वेदना होती है।
वेदना पच्चया तण्हा।
वेदना को होने से तण्हा होती है।

किंं पच्चया भंते ! तण्हा ?
किस के होने से तण्हा होती है ?

तण्हा पच्चया उपादान
तण्हा के होने से उपादान होता है।
उपादान पच्चया भव।
उपादान के होने से भव होता है।
भव पच्चया जाति, जरा, मरण
भव के होने से जाति, जरा, मरण होता है।
एवं एतस्स केवलस्स दुक्ख-खंधस्स समुदयो होती।
और इस तरह, सारे दुक्ख-समुदय का उदय होता है।
स्रोत- मोळिय-फग्गुन सुत्त (12-2-2): संयुत्त निकाय: निदान वग्गो
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मोळिय-फग्गुन- भिक्खु का नाम । कल्ल- योग्य, दक्ष।

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