Saturday, May 11, 2019

अहो सुखं, अहो सुखं

एकं समयं भगवा अनुपियायं विहरति अम्ब वने।
एक समय भगवान अनुप्रिया के अम्बवन में विहर रहे थे।
तेन खो समयेन आयस्मा भद्दियो अरञ्ञं गतो पि रुक्ख मूले अभिक्खण उदानं उदानेसि-  अहो सुखं, अहो सुखं।उस समय आयु. भद्दिय अरण्य में वृक्ष के नीचे बैठे होकर भी उनके मुंह से बराबर यह शब्द निकल रहे थे- कितना सुख है ! कितना सुख है !!
अस्सोसुं खो सम्बहुला भिक्खूनं एतद अहोसि-
सुन कर कुछ भिक्खुओं को यह हुआ-
निस्संसयं आवुसो, आयस्मा भद्दियो अनभिरतो साधुचरियं चरति।
निश्चय ही आयु. भद्दिय बेमन से(अन-अभिरतो) साधु जीवन बिता रहे हैं।
येसं पुब्बे रज्ज सुखं, सो तं अनुस्सरमानो अरञ्ञगतो पि उदानं उदानेसि- अहो सुखं, अहो सुखं 'ति
 इसके पूर्व के राज-सुख को स्मरण कर वे अरण्य में होकर भी कह रहे हैं- कितना सुख है ! कितना सुख है !!
अथ ते भिक्खू येन भगवा तेनुपसंकमिन्सु। उपसंकमित्वा भगवन्त अभिवादेत्वा एकमंत निसीदिन्सुं।
तब वे भिक्खु भगवान के पास गए। पास जा कर भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गए।
एकमंत निसिन्ना खो ते भिक्खू भगवन्त एतद वोचुंं-
एक ओर बैठ कर उन भिक्खुओं ने भगवान को ऐसा कहा-
"आयस्मा भंते, भद्दियो अरञ्ञगतोपि  रुक्ख मूले अभिक्खणंं उदानं उदानेसि- अहो सुखं, अहो सुखं 'ति।
भंते ! आयु. भद्दिय अरण्य में जा कर भी वृक्ष के नीचे बैठे उनके मुख से शब्द निकल रहे हैं- कितना सुख है ! कितना सुख है !!
निस्संसयं खो भंते, आयस्मा भद्दियो अनभिरतो साधुचरियं चरति।
निस्संदेह, भंते! आयु. भद्दिय बेमन से साधु जीवन का पालन कर रहे हैं।
येसं पुब्बे रज्ज सुखं, सो तं अनुस्सरमानो अरञ्ञगतो पि उदानं उदानेसि- अहो सुखं, अहो सुखं 'ति।
इसके पूर्व के राज-सुख को स्मरण कर अरण्यगामी होकर भी कह रहे हैं- कितना सुख हैं ! कितना सुख है !!"
अथ खो भगवा अञ्ञतरं भिक्खुं आमन्तेसि।
तब भगवान ने एक भिक्खु को आमंत्रित किया।
"एहि त्वं भिक्खु, मम वचनेन भद्दियं भिक्खुं आमन्तेहि-  सत्था तं आवुसो, आमन्तेति"ति।
"यहाँ आओ तुम भिक्खु ! मेरी ओर से आयु. भद्दिय को कहो- सत्था आपको बुला रहे हैं। "
एवं भंते" ति सो भिक्खु भगवतो पटिसुत्वा येन आयस्मा भद्दियो तेनुपसंकमि.
"बहुत अच्छा, भंते !" कह वह भिक्खु भगवान को उत्तर दे, जहाँ आयु. भद्दिय भिक्खु थे, वहां गया।
उपसंकमित्वा भद्दियं एतद वोच-  "सत्था तं आवुसो भद्दिय आमंतेति। "
पास जा कर भिक्खु भद्दिय को ऐसा कहा-  "सत्था आपको बुला रहे हैं।"
एवं आवुसो"ति सो आयस्मा भद्दियो येन भगवा तेनुपसंकमि।
 "बहुत अच्छा, आवुस !"  कह,  वह आयु. भद्दिय जहाँ भगवान थे, वहां गया।
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमंत निसीदि।
जा कर भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गया।
एकमंत निसिन्नंं आयस्समंत भद्दियं भगवा एतद वोच-
एक और बैठे आयु. भद्दिय को भगवान ने यह कहा -
सच्चं किर भद्दिय, अरञ्ञं गतो पि रुक्ख मूले अभिक्खण उदानं उदानेसि-  'अहो सुखं, अहो सुखं'।"
"क्या यह सच है, भद्दिय ! अरण्य जाकर वृक्ष के नीचे बैठ कर भी बराबर तुम्हारे मुंह से ये शब्द निकला करते हैं- 'कितना सुख है ! कितना सुख है' !!
एवं भंते"ति।  "हाँ भंते !"
"कि पन त्वं भद्दिय अरञ्ञं गतो पि अभिक्खण उदानं उदानेसि-  अहो सुखं, अहो सुखं !"
"परन्तु भद्दिय! अरण्य जाकर तुम क्यों बराबर कहा करते हो- कितना सुख है ! कितना सुख है !!
"पूब्बे मे भंते,  अगारिय भूतस्स रज्ज कारेन्तस्स अन्तोपि अन्तेपुरे, बहिपि अन्तेपुरे , अन्तोपि नगरे, बहिपि नगरे, अन्तोपि जनपदे, बहिपि जनपदे, सुसंविहिता रक्खा अहोसि।
"भंते ! जब मैंने घर नहीं छोड़ा था, राज्य करते हुए अंतपुर के अन्दर भी, बाहर भी, नगर के अन्दर भी, बाहर भी, जनपद के अन्दर भी, बाहर भी अच्छे तरह से सुविहित सुरक्षा हुआ करती थी।
सो अहं भंते, एवं रक्खितो, गोपितो संतो, भीतो, उब्बिगो, उस्संकी विहासिंं।
भंते ! वैसी सुरक्षा, गुप्तचरों से घिरे होकर भी मैं भयभीत, उद्धिग्न और शंकालु रहता था।
एतरहि खो पन अहं, भंते ! अरञ्ञं गतो पि रुक्ख मूले अ-भीतो, अनुब्बिगो, अनुस्संकी, अप्पोस्सुको,  परदत्तवुत्तो, मिग भूतेन चेतसा विहरामि।
किन्तु इस समय अकेला ही अरण्य में वृक्ष मूल में बैठे अ-भय, अनुद्विग्न, शंका रहित और अनुत्सुक हो, शांत चित से दूसरों के दिए गए दान पर संतुष्ट रह, विहार करता हूँ
इमं खो अहं भंते ! उदानं उदानेसि-  अहो सुखं, अहो सुखं !
इसे देखते ही भंते ! मेरे मुंह से शब्द निकलते हैं- कितना सुख है ! कितना सुख है !!"
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अन-अभिरतो-  बेमन से। उब्बिगो- अशांत/उत्तेजित। उद्धिग्न(उब्बिग्ग)। उस्संकी- शंकालु/भयभीत। परदत्तवुत्तो-  दूसरों के दिए गए दान पर निर्भर रहने वाला। मिग भूतेन चेतसा- शांत चित से। 

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