नारी धर्म
एक लम्बे अन्तराल के बाद
अनायास,
जब मुलाकात हुई
तो बिस्तर की तरफ देखउसने कहा-
पिछले तीन वर्षों से,
बिस्तर पर पड़ा है
न उठ सकता है,
न चल सकता है
मैंने, तब भी
चुहलता से छेड़ा -
आखिर उसे, इस तरह
जिन्दा रखने की
क्या जरूरत है ?
प्रत्युत्तर में, उसने
मुझे
घूर कर देखा
और कहा-
मेरा पति है,वह
सुख-दुःख का साथ है
तन-मन से सेवा करना
मेरा धर्म है.
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विद्रोह
नहीं पढना,
मुझे अब मर्सिया
तुम्हारी संस्कृति और
सभ्यता पर
नहीं लिखना,
मुझे गीत और ग़ज़ल अब
तुम्हारे राष्ट्र और
देश-भक्ति पर
बल्कि,लिखूंगा
अब मुक्त-छंद मैं
अपनी बेबसी और
लाचारी पर
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कबीर
कबीर
शायद,
नहीं मिला-
तुझे कोई आम्बेडकर
जैसे,
मिला था
बुद्ध को
वर्ना,
बदलाव के
तेवर
कम नहीं,
तेरे पास
अब भी
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