घटना, सन 1940-50 की है, जब डा आम्बेडकर के नेतृत्व में सदियों से अछूत और नीच समझी जाने वाली जातियों का अपने स्वाभिमान और आत्म-सम्मान के लिए सवर्ण हिदुओं के साथ कड़ा संघर्ष चल रहा था। इससे दूर-दराज के गाँव भी अछूते नहीं थे। बालाघाट जिले के बकोड़ी गाँव में भी हिन्दू और महारों के बीच तनाव जोरों पर था। उच्च जात्याभिमानी पटेल और मालगुजार, गरीब महारों को पैसे के बदले भी अनाज दे नहीं रहे थे.
ऐसे ही तनाव के चलते गाँव के हिन्दू परिवारों के बीच मार-पीट हो गई। सामान्यत: तब, गाँव का कोटवार घटना की रिपोर्ट तुरंत थाने में करता है। मगर, गाँव के कोटवार 'सोमाजी बन्सोड' ने घटना की रिपोर्ट नहीं की। थानेदार ने सोमाजी बन्सोड को तलब किया । जवाब में कोटवार ने अपने स्तीफे का कागज थानेदार को देते हुए कहा-
"हजूर, मैंने अपने जाति-स्वाभिमान के कारण घटना की रिपोर्ट थाने में नहीं की. क्योंकि, हिन्दू हमारी जाति के लोगों को रूपये के बदले भी अनाज नहीं देते."(फर. 2010: भोरगढ़ निवासी टेकचंद कठाने के संस्मरण के आधार पर )
ऐसे ही तनाव के चलते गाँव के हिन्दू परिवारों के बीच मार-पीट हो गई। सामान्यत: तब, गाँव का कोटवार घटना की रिपोर्ट तुरंत थाने में करता है। मगर, गाँव के कोटवार 'सोमाजी बन्सोड' ने घटना की रिपोर्ट नहीं की। थानेदार ने सोमाजी बन्सोड को तलब किया । जवाब में कोटवार ने अपने स्तीफे का कागज थानेदार को देते हुए कहा-
"हजूर, मैंने अपने जाति-स्वाभिमान के कारण घटना की रिपोर्ट थाने में नहीं की. क्योंकि, हिन्दू हमारी जाति के लोगों को रूपये के बदले भी अनाज नहीं देते."(फर. 2010: भोरगढ़ निवासी टेकचंद कठाने के संस्मरण के आधार पर )
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