लोनावला विजिट के दौरान पता चला कि पास ही एक 'बुदिस्ट मेडीटेशन सेंटर' है, नेकी और पूछ-पूछ. हमनें फटाफट वहां की ट्रिप लगा दी.'बुद्धिस्ट मेडीटेशन सेंटर' पहुंचने का रास्ता बड़ा अजीब-सा लगा.यह उबड-खाबड़ और गिट्टी वाला कच्चा मार्ग है.अभी पक्का रास्ता नहीं बना है.भगवान बुद्ध के विचारों को देश और विदेश में फ़ैलाने की दिशा में प्रयासरत ख्यात प्राप्त 'त्रेलोक्य महासंघ' द्वारा संचालित यह 'मेडीटेशन सेंटर' लोनावला से ८-१० की.मी. दूर 'भाजा-कारला नामक गावों के घने जंगलों में पहाड़ियों के बीच बनाया गया है. यहाँ आने के लिए आप पुणे-मुंबई रेल मार्ग से लोनावला न उतर कर सीधे 'मलवली' नामक स्टेशन में भी उतर सकते हैं,जहाँ से ४-५ की मी पर ही यह बुद्धिस्ट सेंटर है. पहुँच मार्ग कि दुरुहता के बारे में मैंने अपनी चर्चा के दौरान बौद्ध मठ के संचालक से कही, जिस पर उन्होंने कहा कि फ़िलहाल वे नहीं चाहते कि लोग यहाँ विजिट करने आये,बल्कि सिर्फ वे ही लोग आये जो 'बुद्धिस्ट मेडीटेशन के प्रोग्राम' अटेंड करना चाहते हैं.
खैर, कार से हम मेडीटेशन सेंटर पंहुच गए. बौद्ध मठ के करीब आधा कि मी दूर ही हमें अपनी कार छोडनी पड़ी. मगर बौद्ध मठ देख कर सुखद एहसास हुआ. निपट घने जंगलों में पहाड़ों और झरनों के बीच निर्मित इस तरह के मेडीटेशन सेंटर में प्रकृति को आत्म-सात करते हुए बड़ा सुखद अहसास होता है. दिन के करीब ११ बज रहे होंगे. मठ के अंदर एक प्रशिक्षण शिविर चल रहा था,जिसमें Centre for Non Violence Communication* ग्रुप के प्रशिक्षक अनिरुद्ध सर 'Non Violence Communication' पर प्रशिक्षण दे रहे थे.करीब २०-२५ का ग्रुप होगा. दल में हर वर्ग और आयु के सदस्य थे जिनमें महिलाएं भी थी. प्रशिक्षण के दौरान पढाये गए उक्त टापिक पर प्रशिक्षक, एक्सपेरिमेंट के द्वारा समझाने का प्रयास कर रहे थे. भाषा मराठी थी. मराठी में मेरे साथ थोड़ी दिक्कत रहती है. मैंने अपनी व्यथा कही, मगर प्रशिक्षक शायद अपनी क्लास पर केन्द्रित थे.
काफ़ी बड़ा-सा बौद्ध मठ है. मेरे ख्याल से ३-४ एकड़ के एरिया में निर्माण होगा.पहाड़ को काट कर शायद बनाया गया हो. मगर, वहां के प्राकृतिक सोंदर्य से छेड़-छाड़ नहीं की गई थी.पर्यावरण कि दृष्टि से कतई कोई चीज नहीं चुभ रही थी. बहुत ही शांत लग रहा था. मठ, कुछ-कुछ पुराने ज़माने की अंग्रेजी शैली के भवनों की तर्ज निर्मित लगा .मठ के अंदर प्रवेश करते ही सामने भगवान बुद्ध की बड़ी-सी मूर्ति पद्मासन में विराजमान है. कक्ष काफ़ी बड़ा है. कक्ष के दोनों तरफ बैठने हेतु छोटी-छोटी गद्दियाँ रखी है जो अनायास आपका ध्यान खींचती करती है. आपसे अपेक्षा होती है कि बैठने के पूर्व ढेर से गद्दियाँ ले और फिर उस पर बैठे.मठ से लगी हुई और भी आवास-व्यवस्था हैं,जहाँ पर शिविर में भाग लेने वाले सदस्य ठहरते हैं.चूँकि,मठ पहाड़ियों के बीच बनाया गया है,अत आवासों का लेवल काफ़ी नीचे-ऊपर हैं.खाना बनाने और खाने के लिए हाल है.यहाँ प्रशिक्षनार्थी अपना लंच लेते दिखे.चर्चा के दौरान औपचारिकता-वश मठ के संचालक ने हमें लंच का आफर दिया था.
त्रेलोक्य महासंघ के संचालक रत्नसंभव बहुत ही सज्जन और मिलनसार लगे.जब मैंने मठ के हेड से मिलने कि इक्छा व्यक्त कि तो आप तुरंत उपस्थित हुए.आपने बतलाया कि यहाँ समय-समय पर बुद्धिस्ट साधना शिविर लगाये जाते है, जिस के लिए विशेषग्य बुलाये जाते हैं.शिविर ३ से ७-८ दिन का हो सकता है और इसमें भाग लेने वालों के लिए सभी आवश्यक व्यवस्था होती है.इसी बीच अनिरुद्ध सर भी पहुँच गए.आपने बताया कि वे भी मूलत: म प्र के जबलपुर से हैं.बड़ा अपनत्व लगा.
करीब २ घंटे इस साधना शिविर में हम ने बिताया. मगर, यह कभी न भूलने वाला अनुभव था.
.................................................
* To know futher,you may visit www.nvcindia.org
No comments:
Post a Comment