बाबा साहेब द्वारा दिए गए इस मन्त्र को जाने-अनजाने गलत उदृत करने से क्या-क्या अनर्थ हुए हैं,इसकी चर्चा अन्यत्र फिर कभी होगी.फ़िलहाल,हम इस मन्त्र के प्रथम अक्षर 'एजुकेट' पर आते हैं. मन्त्र में जिस तरह 'एजुकेट' शब्द प्रयुक्त हुआ है- का अर्थ 'शिक्षित करो' होना चाहिए न कि 'शिक्षित बनों',जैसे कि प्राय: अर्थ लगाया जाता है. अगर, बाबा साहब का आशय 'शिक्षित बनों' से होता तो वे 'Educate की जगह 'Be Educate' होने का आदेश देते. स्पष्ट है, बाबा साहब के आदेश का आशय 'शिक्षित करो' से ही है. मगर,हुआ यह कि जाने-अनजाने इसका अर्थ 'शिक्षित बनो' समझा गया.और जैसे कि परिणाम सामने है,बाबा साहेब के अनुयायियों ने अपना सारा ध्यान खुद के 'शिक्षित बनों' पर केन्द्रित कर दिया.
'शिक्षित करो' वर्सेस 'शिक्षित बनो' की विचारोत्तेजक बहस से बेंगलोर से प्रकाशित 'दलित वायस' के पाठक भली-भांति परिचित हैं.अब ये अलग बात है कि इसका फायदा उन्होंने कितना उठाया, मुझे ज्ञात नहीं. मगर, इस मन्त्र को अमली जामा पहना कर 'शिक्षा-धर्म' के प्रणेता: डा. आनंद ने आर एस एस के विद्या भारती द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मन्दिरों की श्रंखला की तर्ज पर पूरे देश में दलित-पिछड़ी जातियों के बीच 'परिवर्तन मिशन स्कूलों' की श्रंखला खोल कर 'शिक्षित करो' के कार्य का जो बीड़ा उठाया, वह स्तुतिय है. रोगी के रोग का निदान, रोग को पहचान कर किया जाता है.अगर, रोग की पहचान सही नहीं हुई तो गलत इलाज के चलते रोगी मर जाता है. अर्थात, रोग की पहचान असली जड़ है.मगर, दिक्कत यह है कि हमारे यहाँ बीमारी की पहचान(dignosis ) पर ध्यान नहीं दिया जाता.बस! इलाज किया जाता है.कुछ इसी तरह की व्यवस्था शिक्षा के क्षेत्र में डा. आनंद हमारे देश में देखते हैं.
डा. आनंद का जन्म १ नव. १९६५ को ग्राम एरई जिला दतिया (म.प्र.) में हुआ था. आपके पिता का नाम जागन सिंह और माता का नाम हरबो बाई है.प्रारम्भिक शिक्षा के बाद उन्होंने मेडिकल में दाखिला लेकर एम् बी बी एस किया. यही नहीं, तदन्तर उन्होंने एम् एस कर नेत्र रोग फेकल्टी में विशेषज्ञता हासिल की है.
समाज को किस तरह की शिक्षा दी जाये,खासकर बहुजन समाज को, इस पर डा. आनंद ने गंभीर चितन किया है. डा. आनंद कहते हैं कि वह समाज का कार्य चिकित्सा के क्षेत्र में रह कर उतना नहीं कर सकते थे. अत: आपने, आजीवन अविवाहित रहकर डा. बाबा साहब आम्बेडकर के अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लिया है- न मेरा कोई परिवार होगा न कोई निजी संपत्ति होगी. डा. आनंद के अनुसार, देश की शिक्षा जब तक बहुजन-विचारधारा पर आधारित नहीं होगी, तब तक बाबा साहब का सपना पूरा नहीं हो सकता.
डा. आनंद कहते हैं कि वे, गाँव के रहने वाले हैं तथा गावों में रहने वाले बहुजन समाज की दशा से अच्छी तरह परिचित हैं, जो कि मनुवादी-व्यवस्था के तहत ६००० से ज्यादा जातियों बटे है और जो अन्धविश्वास में जकड़े हैं.मनुवादी-व्यवस्था के वजह से ही ब्राह्मणवाद इनका शोषण कर रहा है. यह मनुवादी-व्यवस्था बहुजन समाज के लिए कोढ़ की बीमारी है और इस बीमारी का इलाज डा. आनंद के अनुसार,आम्बेद्करवादी-मिशनरी शिक्षा है.इसलिए जब तक यह शिक्षा लागू नहीं हो जाती है तब तक सामाजिक परिवर्तन बेमानी है.इस शिक्षा को बड़े पैमाने पर लागू करना होगा.मनुवादी समाज-व्यवस्था को समूल नष्ट करने के लिए बहुजन समाज के बच्चो के संस्कारों को बदलना होगा, तभी वे मान-सम्मान से जी सकेंगे.अन्यथा गुलामी की जिंदगी जीने बाध्य होंगे.
बहुजन समाज के शिक्षा-मिशन को कार्य रूप में परिणित करने डा.आनंद ने २४ जुलाई सन १९९६ को देश की राजधानी दिल्ली में 'The All India Dr Babasaheb Ambedkar Missionary Society की स्थापना की जिसे संक्षेप में BAMS (बाबासाहब आम्बेडकर मिशन सोसायटी) कहा जाता है. BAMS का केन्द्रीय कार्यालय F 1/187 Mangolpuri : New Delhi 110083 है. डा. आनंद अब तक कई प्रदेशों में 'परिवतन मिशन स्कूल' खुलवा कर शुरुआत से ही बच्चों को A for Ambedkar और B for Buddha के संस्कार सिखा रहे हैं.म.प्र.,उ.प्र.,महाराष्ट्र,छतीसगढ़,बिहार आदि प्रदेशों परिवर्तन मिशन स्कूल संचालित हो रहे हैं.इन में से कुछ स्कूल प्राथमिक विद्यालय से हाई स्कूल की कक्षा तक पहुँच चुके हैं.परिवर्तन मिशन स्कूलों की श्रंखला संचालित कर डा. आनंद बहुजन समाज से आव्हान करते हैं कि आप हमें अबोध बालक दे,हम आपको सुबोध नागरिक देंगे. डा. आनंद ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्स्थापित करने का बीड़ा उठाया है.
परिवर्तन मिशन स्कूलों के बच्चें |
सन १९९२ में, भारत सरकार द्वारा सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए ३ किलो गेहूं प्रति छात्र प्रति माह के हिसाब से बाँटने की योजना लागू की गई तभी, डा.आनंद समझ गए थे की सरकार, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षित नहीं करना चाहती बल्कि,उन्हें भिखारी बनाना चाहती है. डा. आनंद कहते हैं कि तब वे २७ वर्ष के थे और एम् एस कर रहे थे.सरकारी स्कूलों में पढने वाले बच्चों के प्रति सरकार की सोच देख कर उन्होंने फैसला लिया कि वे चिकित्सा-क्षेत्र में न जाकर कर बहुजन समाज के बच्चों की शिक्षा के लिए कार्य करेंगे.
८-९ नव.०८ को सारनाथ में संपन्न राष्ट्रीय शिक्षा-धर्म अधिवेशन में डा आनंद ने धर्मों की 'धुलाई' करते हुए कहा कि आदमी के विकास में धर्मों कि कोई जरूरत नहीं है. धर्मों ने आदमी को बांटा है. आदमी को हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,पारसी,यहूदी,जैन, बौद्ध आदि खानों में बांटकर एक-दुसरे के प्रति नफरत के बीज बोया है. धर्मों के कारण ही धरती पर सैकड़ों बार खून-खराबा हुआ है. नफरत,दुश्मनी, उंच-नीच की घृणा धर्मों ने दिया है.और इसलिए अब ऐसे धर्मों की जरुरत कतई नहीं रह गई है बल्कि, आवश्यकता है -शिक्षा-धर्म की.
धर्म के नाम पर लोग मरते हैं. 'हिन्दू' के नाम पर लोग मरते हैं. 'मुस्लिम' के नाम पर मरते हैं.आदमी जब तक 'हिन्दू' या 'मुस्लिम' रहेगा, धर्म के नाम पर मारा जाता रहेगा.
धर्म के नाम पर लोग मरते हैं. 'हिन्दू' के नाम पर लोग मरते हैं. 'मुस्लिम' के नाम पर मरते हैं.आदमी जब तक 'हिन्दू' या 'मुस्लिम' रहेगा, धर्म के नाम पर मारा जाता रहेगा.
धर्म आदमी के लिए खूंटे बन गये हैं.हर आदमी किसी न किसी खूंटे से बंधा है.कोई खूंटे से छूटने को राजी नहीं है और किसी तरह छुट भी जाये तो फिर, दूसरे खूंटे से बांध दिया जाता है.आदमी न हुआ,जानवर हो गया.
धर्मों ने मानव जाति का बड़ा नुकसान किया है.दुनिया को बाँटने का काम किया है.इन्सान-इन्सान की बीच दीवार बनाने का काम किया है. और इसका एक मात्र कारण है, वैज्ञानिक तरीके से दी जाने वाली शिक्षा का अभाव है. सभी धर्म वैज्ञानिक सोच को नकारते है.गैलेलियो को मारने वाले धर्म के ठेकेदार लोग थे.धर्म अज्ञानियों का होता है. ज्ञानियों का कोई धर्म नहीं होता..
'शिक्षा-धर्म' का सन्देश देते हुए डा आनंद कहते हैं कि मानव जीवन के विकास के लिए शिक्षा और विज्ञानं के आलावा और किसी की जरुरत नहीं है.किसी भी धर्म ने आज तक धरती पर किसी का भला नहीं किया.मानव का भला तो सिर्फ शिक्षा और विज्ञानं से हुआ है.शिक्षा और विज्ञानं से पूरी दुनिया का भला हुआ है.शिक्षा से आदमी समृद्ध हुआ वही विज्ञानं से समृद्धि सार्थक हुई.धर्म और विज्ञानं में एक बुनियादी फर्क है कि धर्म सिर्फ अंधों का होता है,ज्ञानी-विज्ञानी का कोई धर्म नहीं होता.आखिर २४ घंटों में आपको धर्म की कितनी आवश्यकता होती है कि आप बिना धर्म के जी न सकेंगे.वास्तव में २४ घंटों में आदमी को धर्मों की एक पल भी जरुरत नहीं पडती.जरुरत पडती है तो सिर्फ रोटी,कपड़ा और मकान की. और रोटी,कपड़ा और मकान सब विज्ञानं की देन है.
बाबा साहेब के अनुयायिओं को सम्बोधित करते हुए आपने कहा की 'बुद्ध' का मतलब है -ज्ञान की सर्वोच्च अवस्था. ज्ञान का शिखर,जहाँ पर जाकर आदमी सच्चाई को समझे.बुद्ध ने किसी 'धर्म' की बात नहीं की. बुद्ध ने ज्ञान के शिखर की बात की. मगर,लोगों ने बुद्ध को भगवान् बना कर पूजना शुरू कर दिया. डा. साहब ने कहा की देश में जितने भी बुद्ध विहार बने हुए हैं, उन सब में स्कूल चलाना चाहिए.क्योंकि, बुद्ध विहार का मतलब है-स्कूल. बुद्ध विहार का मतलब है, जहाँ बुद्धि का विचरण होता है.जहाँ बुद्धि का आना-जाना होता है,अर्थात शिक्षा का केंद्र. यही बुद्ध का दर्शन है. मेरी बात पर आप कहते हैं कि बच्चे यहाँ पढेंगे तो हम माथा पटकने कहाँ जायेंगे ? आपको माथा पटकने की आदत है. लम्बे समय से आपके पूर्वज माथा पटक-पटक कर मर गए. मगर क्या माथा पटकने और पूजा-पाठ करने से उनकी स्थति में सुधार हुआ ? छुआ-छूत की घृणा से मुक्ति मिली ? माथा पटकने से सिर्फ दिमाग ख़राब होता है.अगर आप माथा पटकना छोड़ स्कूल चलाएंगे तो यहाँ से हजारों बुद्ध पैदा होंगे, हजारों बिरसा, रामास्वामी और आम्बेडकर पैदा होंगे. हमारे दुखों का कारण है,अशिक्षा. हमको अशिक्षित कर दुखी बनाया गया है.हम बड़ी तादात में 'परिवर्तन स्कूल' खोल कर देश की सत्ता को हिला सकते हैं.
बहुजन समाज में पढ़े-लिखे अधिकारी-कर्मचारी जो अपने आप को बुद्धिस्ट और आम्बेद्करवादी कहते हैं,अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं.देश के सभी प्राइवेट स्कूल या तो हिदुओं के हैं या मुस्लिमों के या सिक्ख/ईसाईयों के. इन में से एक भी आम्बेडकरवादी नहीं है.बहुजन-सांस्कृतिक विचार धारा को ये सब के सब नकारते हैं. तो फिर, क्या ये बहुजन समाज के अधिकारी-कर्मचारी ५.५ से ६.० अरब रूपये अपने बच्चों की शिक्षा के नाम पर इन प्राइवेट स्कूलों में प्रति वर्ष जमा कर ब्राह्मणवादी शिक्षा और संस्कृति को ही मजबूत करने का काम नहीं कर रहे हैं ?
भारत सरकार द्वारा 'शिक्षा के अधिकार' के तहत बहुजनों के बच्चों को जो शिक्षा दी जा रही है,उस पर डा. आनंद कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में दलिया और खिचड़ी खिला कर शिक्षा दी जा रही है. मगर, क्या सरकार वास्तव में हमारे बच्चों को शिक्षा देना चाहती है ? स्कूलों में शिक्षा के नाम पर जो हो रहा है, उससे तो कतई ऐसा नहीं लगता.आठवी तक के बच्चों को ठीक से अ आ इ ई नहीं आता.स्कूलों में शिक्षा के नाम पर जो भिक्षा दी जाती है,उससे बच्चे शिक्षित कतई नहीं बन रहे हैं. हाँ, भिखारी जरुर बन रहे हैं.डा साहब भारत सरकार की दोहरी शिक्षा नीति का पर्दाफाश करते हुए कहते है कि उन्हें भिक्षा नहीं, शिक्षा चाहिए.हम अपने स्कूल खोल कर शिक्षा के मालिक बनना चाहते हैं.सरकारी स्कूलों में चूँकि,भिक्षा मिलती है,इसलिए जिसके पास थोडा बहुत पैसा है,वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते.क्योंकि, सरकारी स्कूलों में कापी,किताबे,पेन्सिल,खिचड़ी सब फ्री मिलाता है बस शिक्षा नहीं मिलती.और तो और प्राथमिक लेवल से हाई स्कूल स्तर तक फेल नहीं किया जाता.बच्चें स्कूल आये या न आये,उनका नाम रजिस्टर से नहीं काटा जाता. क्या ऐसे स्कूलों में पढाई हो सकती है? वास्तव में,सरकारी स्कूल बहुजन समाज को भिखारी बनाने के ट्रेनिंग सेंटर हैं.यह बहुजन समाज को लम्बे समय तक गुलाम बनाने का सुनियोजित षड्यंत्र है.सरकार नहीं चाहती कि बहुजन समाज अपने पैरों पर खड़ा हो.
किसी समय बहुजन समाज शिक्षा का मालिक था. नालंदा जैसे अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का यह बहुजन समाज संस्थापक था.नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया के महान विश्वविद्यालयों में सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय था.उस नालंदा विश्वविद्यालय की वजह से भारत विश्व का गुरु बना.जो समाज नालंदा जैसे विश्वविद्यालय का संस्थापक रहा हो,आज वह समाज शिक्षा का गुलाम बन बैठा.जिस समाज ने नालंदा जैसे विश्वविद्यालय बनाये हो,उस समाज में फिर से नई उर्जा पैदा करनी है.और यह कार्य गाँव-गाँव में 'परिवर्तन स्कूल खोल कर करना है.अगर गाँव-गाँव में 'परिवर्तन स्कूल' खोले जाये तो आज भी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हो सकती है. बहुजन समाज को अपने बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था स्वयं अपने बलबूते करनी होगी तभी उनकी अशिक्षा की बीमारी का निदान होगा.बाबा साहेब आम्बेडकर ने भारत के संविधान में लिख कर समता,स्वत्रंतता , न्याय और बंधुत्व पर आधारित समाज की रचना की थी.परन्तु ऐसा व्यव्हार में नहीं हो सका.अगर बहुजन समाज शिक्षा का मालिक बनेगा,तो बाबा साहेब का सपना पूरा हो सकता है.इसको शिक्षा के द्वारा ही अमली जामा पहनाया जा सकता है.बिना शैक्षणिक क्रांति के बहुजन समाज का उद्धार नहीं हो सकता.
'शिक्षा मिशन' के तहत गाँव -गाँव और शहर-शहर की अलख जगाते डा. आनंद |
'शिक्षा-धर्म' का मतलब बतलाते हुए डा साहब कहते हैं कि ऐसे लोगों को, जो धर्म की भाषा समझते हैं,उनके लिए 'धर्म' शब्द का इस्तेमाल किया है. धर्म का मतलब है धारण करना.'शिक्षा-धर्म' का अर्थ है-शिक्षा को धारण करना. बच्चों का धर्म है-शिक्षा लेना और माता-पिता का धर्म है-शिक्षा देना. शिक्षा लेना और देना दोनो हो धर्म है. और इसलिए हमने शिक्षा को धर्म बनाया है.अगर बहुजन समाज, शिक्षा को मात्र १० साल के लिए धारण कर लेगा तो इस देश का पाखंडपन और पण्डे-पुजारी सब ख़त्म हो जायेंगे.हम जिसके लिए मरे जा रहे हैं,जिनको समझाते-समझाते पीढियां गुजर गई,उनको समझाने की कोई जरुरत नहीं है.आने वाली पीढ़ी अपने-आप ठीक हो जाएगी.जो बीज धरती में दफन होता है वह निश्चित ही परिणाम देता है.हमारी आने वाली संतति निश्चित उस बीज का वृक्ष तैयार करेगी.यह ऐसी भावी पीढ़ी निर्माण करने का आन्दोलन है और इसका माध्यम शिक्षा है.
डा.आनद कहते हैं कि बहुजन समाज को जो अशिक्षित है,उसे शिक्षित करना है. जो शिक्षित हैं,उन्हें सुशिक्षित करना है.जो सुशिक्षित हैं,उन्हें संस्कारित करना है और जो संस्कारित हैं,उन्हें सुसंस्कारित कर शिक्षा का मालिक बनना है.
...........................................................................................
Note: Visiters may contact Dr Anand on address dranandbams @gmail.com
धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) की स्थापना करना ।
ReplyDeleteव्यक्तिगत (निजी) धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
धर्म संकट- जब सत्य और न्याय में विरोधाभास होता है, उस स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है ।
धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म, इत्यादि ।
धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिदेव) से लेकर इस क्षण तक ।
शिव (त्रिदेव) है तभी तो धर्म व उपासना है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाता है ।
कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjri
धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) ।
ReplyDeleteव्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
धर्म सनातन है भगवान शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं ‘उपासना द्वारा मोक्ष’ एक दूसरे आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है । ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjri