14 अक्टू पर विशेष-
14 अक्टू 1956 को नागपुर में जब धम्म-दीक्षा का कार्य-क्रम संपन्न हुआ तो सवर्ण उच्च जातियां तो उत्तेजित थी ही, देश-विदेश का मीडिया भी कम उत्तेजित नहीं था ! वे सांस रोके इस ऐतिहासिक क्षण को देख रहे थे।
इस अवसर पर परम्परागत बौद्ध भी कम आशंकित नहीं थे। बाबासाहेब ने नव. 1955 में 'बुध्द एंड हिज गॉस्पेल' नामक एक पुस्तिका लिख कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। अपने भाषणों में वे निरंतर अपने अनुयायियों को इस सम्बन्ध में अवगत करा रहे थे। कुछेक ने इस पर टीका-टिपण्णी भी की थी।
शायद, इसी बात पर एक पत्रकार ने जब बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर से पूछा कि आप कैसे बौद्ध होंगे, हीनयानी या महायानी ? इस पर बाबासाहेब ने मुस्कराते हुए जवाब दिया- हम बौद्ध होंगे, सिर्फ बौद्ध जिसका लिटमस टेस्ट होगा 'कालाम सुत्त'। कोई भी वचन जो वैज्ञानिक न हो, तार्किक न हो और लोक कल्याणकारी न हो, बुद्ध के सिर मढ़ा नहीं जा सकता।
14 अक्टू 1956 को नागपुर में जब धम्म-दीक्षा का कार्य-क्रम संपन्न हुआ तो सवर्ण उच्च जातियां तो उत्तेजित थी ही, देश-विदेश का मीडिया भी कम उत्तेजित नहीं था ! वे सांस रोके इस ऐतिहासिक क्षण को देख रहे थे।
इस अवसर पर परम्परागत बौद्ध भी कम आशंकित नहीं थे। बाबासाहेब ने नव. 1955 में 'बुध्द एंड हिज गॉस्पेल' नामक एक पुस्तिका लिख कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। अपने भाषणों में वे निरंतर अपने अनुयायियों को इस सम्बन्ध में अवगत करा रहे थे। कुछेक ने इस पर टीका-टिपण्णी भी की थी।
शायद, इसी बात पर एक पत्रकार ने जब बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर से पूछा कि आप कैसे बौद्ध होंगे, हीनयानी या महायानी ? इस पर बाबासाहेब ने मुस्कराते हुए जवाब दिया- हम बौद्ध होंगे, सिर्फ बौद्ध जिसका लिटमस टेस्ट होगा 'कालाम सुत्त'। कोई भी वचन जो वैज्ञानिक न हो, तार्किक न हो और लोक कल्याणकारी न हो, बुद्ध के सिर मढ़ा नहीं जा सकता।
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