Wednesday, October 24, 2018

धर्मान्तर, एक सामाजिक क्रांति

सन 1927 से 1956  का भारतीय इतिहास, दलित-शोषित और सदियों से हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत  पुरुष के हाथों पिस रही स्त्रियों के मुक्ति के संघर्ष हेतु बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर के जीवन-बलिदान के रूप में जाना जाता है। यहाँ तक कि सन 1932 में बाबासाहेब ने महात्मा गाँधी का जीवन बचाने अछूतों के पृथक निर्वाचन के अधिकार का बलिदान कर दिया था जबकि सिक्खों और मुस्लिम समुदाय को यह अधिकार प्राप्त हो गया था(डॉ  अम्बेडकर के आन्दोलन की भावी दिशा, पृ 38 : डॉ विमलकीर्ति)।

दूसरी ओर,  डॉ अम्बेडकर के संघर्ष का विरोध गांधीजी सहित कांग्रेस के तमाम नेता और हिन्दू महासभा के लोग पूरी शक्ति के साथ साम-दाम, दण्ड-भेद की नीति अपना कर रहे थे। सवर्ण हिन्दुओं ने उन पर मुकदमा चला कर उन्हें अभियुक्त तक ठहराया था(वही)।

 यह सुन कर आश्चर्य होगा कि डॉ अम्बेडकर की हत्या के लिए षड्यंत्र रचे गए थे जब वे छत्रपति शिवाजी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने रायगढ़ गए थे। आन्दोलन के सिलसिले में जब डॉ अम्बेडकर से प्रश्न पूछे गए तो उन्होंने कहा कि अछूतों का मुख्य लक्ष्य सामाजिक क्रांति का आव्हान करना है। यदि सामाजिक क्रांति के क्रम में धार्मिक क्रांति की जरुरत पड़े तो इसको भी ले चलाना चाहिए।  डॉ अम्बेडकर के धर्मान्तर का यही मूल आधार है (वही )।

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