Monday, September 2, 2019

अधिकार लोगों से मिलने चाहिए

अधिकार लोगों से मिलने चाहिए-
ऐसा मैंने सुना-
एक बार भगवान सावत्थी के जेतवन में अनाथपिंडक के आवास में विहर रहे थे।
एवं मे सुतं- एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे।
तब एसुकारी नामक ब्राह्मण, जहाँ भगवान थे,  वहां गया। जा कर भगवान के साथ कुशल क्षेम पूछ कर एक तरफ बैठ गया। एक और बैठे एसुकारी ब्राह्मण ने भगवान से यह कहा-
तेन खो पन समयेन एसुकारी बाहमणो येन भगवा तेनुपसंकमि। उपसंकमित्वा भगवता सद्धिं सम्मोदि। सम्मोदनीयं कथं वितिसारेत्वा एकमन्त निसीदि। एकमन्त निसिन्नो सो एसुकारी बाहमणो भगवन्तं एतद वोच-
‘‘हे गोतम! ब्राह्मण चार परिचर्या (सेवा धर्म) बताते हैं- ब्राह्मण, ब्राह्मण की परिचर्या करें; क्षत्री, ब्राह्मण की परिचर्या करें; वैश्य, ब्राह्मण की परिचर्या करें; शूद्र, ब्राह्मण की परिचर्या करें। इस प्रकार, गोतम, ब्राह्मण, बाह्मण की परिचरिया बताते हैं।
‘‘बाह्मणा भो गोतम, चतस्सो परिचरिया पञ्ञापेन्ति- बाह्मणा वा बाह्मणं  परिचरेय्य, खत्तिया वा बाह्मणं परिचरेय्य, वेस्सा वा बाह्मणं परिचरेय्य, सुद्दा वा बाह्मणं परिचरेय्य। इदं भो गोतम, बाह्मणा बाह्मणस्स परिचरियं पञ्ञापेन्ति।
वही हे गोतम, ब्राह्मण, क्षत्री की परिचर्या बतलाते हैं- क्षत्री, क्षत्री की परिचर्या करें, वैश्य, क्षत्री की परिचर्या करें। शूद्र, क्षत्री की परिचर्या करें।
तत्र इदं भो गोतम, बाह्मणा, खत्तियस्स पारिचरियं पञ्ञापेन्ति- खत्तियो वा खत्तियं परिचरेय्य। वेस्सो वा खत्तियं परिचरेय्य। सुद्दो वा खत्तियं परिचरेय्य।
उसी प्रकार गोतम, ब्राहमण, वैश्य की परिचर्या बतलाते हैं- वैश्य, वैश्य की परिचर्या करें, शूद्र वैश्य की परिचर्या करें।
तत्र इदं भो गोतम, बाह्मणा, वेस्सस्स पारिचरियं पञ्ञापेन्ति- वेस्सो वा वेस्सं परिचरेय्य, सुद्दो वा वेस्सं परिचरेय्य।
उसी प्रकार ब्राहमण, शूद्र की परिचर्या बतलाते हैं- शूद्र, शूद्र की परिचर्या करें। ब्राह्मण; हे गोतम! ये चार परिचर्या बतलाते हैं।
तत्र इदं भो गोतम, बाह्मणा, सुद्दस्स पारिचरियं पञ्ञापेन्ति- सुद्दो सुद्दं परिचरेय।
हे गोतम, ब्राह्मण ये चार प्रकार की परिचर्या बतलाते हैं। यहां गोतम, क्या कहते हैं?’’
बाह्मणा, भो गोतम, इमा चतस्सो परियाचरिया पञ्ञापेन्ति।  इध भवं गोतम, किं आह ?’’
‘‘किन्तु हे ब्राह्मण, क्या लोगों ने,  ब्राहमणों को ऐसी अनुमति दी है- कि इन परिचर्याओं को प्रज्ञापित करो?’’
‘‘किं पन बाहमण, सब्बो लोको बाहमणानं एतद अनुजानाति- इमा चतस्सो परिचरिया पञ्ञापेन्तु ?’’
‘‘हे गोतम, ऐसा नहीं है।’’
‘‘नो हि इदं भो गोतम।’’
सेय्याथापि, ब्राह्मण, पुरिसो दलिद्दो अस्सको अन-आळिहयो। तस्स अकामस्स बिलं ओलग्गेयुं- इदं ते, अभ्भो पुरिस, मंसं खादितब्बं, मूलं च अनुप्पदातब्बं।
‘‘जैसे, बाहमण! कोई अ-स्वक अन-आढ्य दरिद्र पुरुष हो। अनिच्छु होते भी उसे कहा जाए- हे पुरुष! यह मांस तुम्हे खाना है और इसका मूल्य चुकाना है।
इस प्रकार ब्राह्मण! समण-ब्राह्मणों की अनुज्ञा के बिना ही ब्राह्मणों का इन चार परिचार्याओं का प्रज्ञापन करना है।
एवं येव खो, ब्राह्मण! ब्राह्मणा अप्पटिञ्ञाय तेसं समण-ब्राह्मणानं  अथ च पन इमा चतस्सो परिचारिया  पञ्ञापेन्ति।
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एसुकारी सुत्त म. नि.- 96

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