Tuesday, September 3, 2019

ब्राह्मणों के 'गुरुकुल' विश्वविद्यालय क्यों नहीं ?

ब्राह्मणों के 'गुरुकुल' विश्वविद्यालय क्यों नहीं बने ?
एक समय नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, ओदन्तपूरी, जगद्दल, वल्लभी, जयेंद्र आदि विश्वविद्यालय बौद्धों के शिक्षा-संस्थान थे ? यहाँ बिना किसी भेदभाव के धर्म, दर्शन और राजनीति विषयों में शिक्षा दी जाती थी। इन शिक्षा-संस्थानों में दूर दूर, देश विदेश के विद्यार्थी पढ़ने आते थे। इन विश्वविद्यालयों ने एक से एक दार्शनिक प्रकांड विद्वान् दिए जिन्होंने अन्तराष्ट्रीय जगत में देश का नाम रोशन किया।
किसी समय इस देश में ब्राह्मणों के 'गुरुकुल' भी थे। यहाँ भी धर्म, दर्शन और राजनीति में शिक्षा दी जाती थी। यहाँ ऋषियों के मुख से वेद ऋचाएं निसृत होती थी। बड़ा स्वभाविक प्रश्न है, ये शिक्षा-संस्थान, विश्वविद्यालय क्यों नहीं बनें ? जो लोग शिक्षा की ठेकेदारी लिए बैठे थे, वे विना विश्वविद्यालयों के 'विश्वगुरु' कैसे बन गए ?
बात दरअसल यह है कि ब्राह्मणों के गुरुकुल, ब्राह्मणों के विद्या-केंद्र थे। वहां विधर्मी तो छोडिये, ब्राह्मणों के इतर अन्य स्वधार्मियों का कोई काम न था। अधिक-से अधिक क्षत्रियों के बच्चें वहां प्रवेश पा सकते थे, इसलिए कि सत्ता में क्षत्रियों का वर्चश्व था। वैश्य का इन विद्या-केन्द्रों से कोई लेना-देना नहीं था। शूद्रों के लिए गुरुकुलों के दरवाजें बंद थे।
अब जिन गुरुकुलों में स्वधार्मियों के साथ न सिर्फ भेदभाव किया जाता हो, वरन भेदभाव किये जाने की शिक्षा दी जाती हो, वे सर्व-जन के लिए शिक्षा के केंद्र कैसे हो सकते थे ? वेद का उच्चारण करने मात्र से जीभ काटने, सुनने से कान में पिघला सीसा भरने का आदेश देते हो, ऐसे मानवता-निषेध के विद्या केंद्र, विश्वविद्यालय कैसे हो सकते थे ? जो स्वधार्मियों से पशुओं से बदतर व्यवहार करने की शिक्षा देते हो, वहां गैर समाज और देशों के विद्या-व्यसनी कैसे आ सकते थे ?
इसके बावजूद भी ब्राह्मणों ने 'विश्वगुरु' का तमगा अपने सिर पर बांध लिया और जिन बौद्ध विश्वविद्यालयों के कारण वे विश्वगुरु कहलाए, उस बुद्ध को इस देश और उसकी जन्म भूमि से निकाल बाहर किया ! 

No comments:

Post a Comment