Monday, September 9, 2019

भीमस्तुति

उस दिन,  भंते जी बता रहे दे रहे थे-
बुद्ध विहारों में  'भीम स्तुति' का संगायन नहीं करना चाहिए।  फिर, स्वयं ही बताने लगे कि बुद्ध विहार ध्यान का केंद्र है और बाबासाहब अम्बेडकर एक राजनीतिक पुरुष हैं और इसलिए,  बुद्ध विहार में बाबासाहब अम्बेडकर की स्तुति उचित नहीं है !  'दिव्य प्रभ रत्न तू, साधु वरदान तू'  भीम गाथा में कई शब्द ऐसे हैं, जो भगवान बुद्ध के धर्म की मर्यादा के अनुकूल नहीं है !

अगले रविवार को जब मैं बुद्ध विहार गया तो देख कर आश्चर्यचकित रह गया कि साप्ताहिक बुद्ध वंदना के संगायन में भीम-स्तुति नहीं थी। मैंने जानना चाहा तो बुद्ध विहार समिति पदाधिकारियों ने भंतेजी तरफ संकेत किया। मैंने भंतेजी से पूछा कि बाबासाहब के प्रति उनकी यह सोच का आधार क्या है ? इस पर  भंते जी ने कहा कि उन्होंने अपने विचार रखे थे।

बेशक, बुद्ध हमारे आदर्श हैं, मार्गदाता हैं किन्तु वे हमारे मुक्तिदाता नहीं है। हमारे मुक्तिदाता बाबासाहब अम्बेडकर है। अगर बाबासाहब अम्बेडकर न होते तो हम, जो आज हैं,  न होते। हम आज भी सारे मानवीय अधिकारों से वंचित होते, मरे जानवरों को ढो रहे होते।  शिक्षा के दरवाजे हमारे लिए बाबासाहब अम्बेडकर ने खोले।  सम्मान के साथ जीना बाबासाहब अम्बेडकर ने सिखाया । और बुद्ध का मार्ग भी हमें बाबासाहब अम्बेडकर ने दिखाया। बुद्ध हमारे शास्ता हैं तो अम्बेडकर हमारे गुरु है। बुद्ध अगर दीपक है तो बाबासाहब आंबेडकर हमारी आँख है।

अगर बाबासाहब अम्बेडकर न होते तो बुद्ध भी न होते। बुद्ध को कौन जानता था उनकी इस मातृ-भूमि में ? यह बाबासाहब अम्बेडकर थे जिन्होंने बुद्ध को हमें जनाया। हमारे लिए बाबासाहब अम्बेडकर पहले हैं, बाद में बुद्ध।

बेशक,  बुद्ध के धम्म का केंद्र  मानवता है।  किन्तु इसकी जरुरत हमें नहीं,  हमारे शोषकों को अधिक है । क्यों हमारे शोषक बौद्ध भिक्खुओं के मार्फ़त बुद्ध और अम्बेडकर में भेद पैदा कर रहे हैं ? अब इसमें कोई छिपी बात नहीं है कि बौद्ध भिक्खुओं को बाकायदा प्रशिक्षित किया जा रहा है, बाबासाहब आंबेडकर के विरुद्द । आखिर कौन देता है, इन भिक्खुओं को इस तरह का विभेदकारी प्रशिक्षण ?  सनद रहे, ध्यान और आत्म-संयम के नाम पर देश में फैले ढेरों विपस्सना केन्द्रों में भिक्खुओं को चुन-चुन कर प्रशिक्षण दिया जाता है। क्या बुद्ध और अम्बेडकर के बीच विभेद के बीज यहाँ बोये जाते हैं ? 

भीम स्तुति में  बाबा साहब के प्रति किसी कवि की अतिरेक श्रद्धा पच नहीं रही है तो बुद्ध-वंदना और परित्राण पाठ में 'यक्खा देवा च ब्रह्मनो' में यक्ष, देव और ब्रह्मा का आव्हान कैसे पच रहा है ?  ब्रह्मा की स्तुति कैसे पच रही है। 'भवतु सब्ब मंगल, रक्खन्तु सब्ब देवता' में कौन-से देवता से रक्षा की कामना की जाती है ? 'अट्ठङग उपोसथ शील' में  'ब्रह्मचरिया वेरमणी' के क्या मायने है ? धम्म की वाणी में क्या यह साधुचरिया/बुद्धचरिया या विशुद्धचरिया वेरमणी नहीं हो सकती ? 

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