Thursday, September 12, 2019

नाना विविधानि पञ्हानि

पयोगा- को, का, किं, क़तर, कतम, कति, किदिस, किव, 
किवतिक, किवंत, कित्तक, कदा, कधा, कहं, कथं, कच्चि, 
कीवं, कित्तावता, कुतो, कुहिं, कुत्थ। 

तं किं मञ्ञसि ?
तुम क्या सोचते हो ?

किं त्वं इमं धम्म-विनयं अजानिस्ससि?
क्या तुम यह धम्म-विनय नहीं जानोगे  ?

अहू पन ते निगण्ठेन सद्धिं कोचिदेव कथा-सल्लापो ?
क्या तुमने निगंठ के साथ कोई संवाद किया था ?

इच्छेयाथ नो तुम्हे मारिसा, निमि राजनं दट्ठुं ?
मित्र,  क्या तुम, राजा निमि को देखना चाहते हो ?

को नु खो  हेतु, को पच्चयो भगवतो सितस्स पातुकम्माय ?
क्या कारण है, क्या हेतु है भगवान के मुस्कराने का ?

किं भवं रट्ठपालो, ञात्वा वा, दिस्वा वा, सुत्वा अगारस्मा अनगारियं पब्बज्जितो ?
महोदय रट्ठपाल, क्या जान, देख या सुनकर प्रव्रज्जित हुए ? 

कतमो सो परमो वण्णो ?
कौन-सा वंश/कुल उत्तम है ?

कथं च अरिय सावको सील सम्पन्नो होति ?
अरिय सावक कैसे शील-संपन्न होते हैं ?

कच्चि आवुसो, भगवा आरोगो च बलवा च ?
आवुस,  भगवा व्याधि मुक्त और स्वस्थ है न ?

कित्तावता नु खो गोतम, ब्राह्मणो होति,  कतमे च पन ब्राह्मणा कारका धम्मा ?
किस प्रकार हे, गोतम,  ब्राह्मण होता है और ब्राह्मण के कारक तत्व कितने होते हैं ?
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मारिस- संबोधन विशेष, मित्रवर. प्रियबंधु। 

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