जयकुलदीप(पालि)-
सभी धम्मबन्धुओं का शुक्रिया। अपनी बात को मैं स्पष्ट करता हूँ। मैंने कुछ समय एक ब्राह्मण आश्रम हरिद्वार में नोकरी की। वहां रहना free था। यात्री आते और जाते समय 100रु 50 रु की रसीद कटवा लेते। एक दिन महाराज ने रसीद बुक चैक की और बोला। 100 या 50 की रसीद मत काटा करो। हमेशा 101 या 51 की रसीद काटो। 100 50 का अर्थ है भाड़ा 101 51 का अर्थ है दान। भाड़ा देने वाला आपके सामने अकड़ के खड़ा होगा दान देने वाला झुक कर खड़ा होगा। मेरे विचार में यह सनातन धर्म है और यह धर्म सनातन है कहने में यही अंतर है। मुझे लगता है बुद्ध बोले अवैर से ही वैर शांत होता है ऐसा धर्म (नियम) सनातन है। आनंद कोशल्यायन और राहुल सांकृत्यायन का मैं आदर करता था लेकिन उन्होंने धम्म के साथ जो विश्वासघात किया उसके बाद मन से उनके प्रति आदर नहीं रहा। अब उनकी लिखी बात को बिना पड़ताल के मै नहीं मानता हूं
1. 'यह धर्म सनातन है' और 'यह सनातन धर्म है' के मध्य शब्द बलाघात के अलावा कोई अंतर नहीं है. इन दोनों वाक्यों से इतना ही स्पष्ट होता है कि कहने वाला किस पर जोर देना चाहता है. आम पाठक के लिए 'कद्दू के ऊपर चाक़ू' और 'चाकू के ऊपर कद्दू' एक ही है. ति-पिटकाधीन ग्रंथों में इस तरह के अबौद्ध शब्दावली का प्रयोग प्रचुर है.
2. बुद्ध हो या कबीर, इनके विचारों में हमारी वही तक सहमति है जहाँ तक वे सामाजिक मुक्ति के आन्दोलन में सहायक है. ति-पिटकाधीन ग्रंथों में इतना प्रदुषण है कि कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि यह बुद्ध के विचार है ? यद्यपि, बाबासाहब आंबेडकर ने एक पैमाना बनाया है, परखने का. हम दावा भी वही तक कर सकते हैं.
2. भदंत आनंद कोसल्यायन और राहुल सांस्कृत्यायन ने, बेशक, बौद्ध धर्म की, विशेष कर अम्बेडकर अनुयायियों की अपार क्षति की जिनकी मुक्ति के लिए बाबासाहब आंबेडकर धम्म की विरासत सौंप गए थे. हिन्दू धर्म रूपी दलदल से पार पाने उन्होंने धम्म की नाव दी थी किन्तु इन दोनों ब्राह्मणों ने उसमें छेद कर गहरे जल में डूबा दिया.
3. बात यही तक होती तो ठीक था. इन ब्राह्मणों के दफ़न हो जाने के बाद उनके किये पर विराम लग जाता. किन्तु इस देश का दुर्भाग्य कि ऐसा नहीं हुआ. गोयनका नाम के एक बनिए ने उनके छोड़े गए कार्य को पकड़ा. उसी विचारधारा के संवाहक डॉ. प्रफुल्ल गढ़पाल को हमने यह बतलाने की कोशिश की किन्तु अफसोस, ऐसा नहीं हो सका.
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