एक रोगी की सेवा
भिक्खुओं में यदि कोई बीमार होता तो बुद्ध उनके स्वास्थ्य के बारे उतने ही चिंतित होते थे जितना कि एक माँ बच्चे के बीमार पड़ने पर होती है. विनयपिटक के महावग्ग में एक कथानक दृष्टव्य है-
उस समय एक भिक्खु को पेट की बीमारी थी. वह अपने पेशाब-पाखाना में पड़ा हुआ था. जब बुद्ध को यह ज्ञात हुआ तो वे आनन्द को साथ लेकर उस भिक्खु के पास गए.
"भिक्खु तुझे क्या रोग है ?" -बुद्ध ने उस भिक्खु को पूछा.
"पेट की बीमारी है, भंते !"
"भिक्खु, तेरा कोई परिचारक है ?"
"नहीं भंते !"
"क्या दूसरे भिक्खु तेरी सेवा नहीं करते ?"
"भंते! मैंने किसी दूसरे भिक्खु की सेवा नहीं की."
"जाओ आनन्द, पानी लाओ. इसे हम नहालायेंगे."
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