Monday, April 5, 2021

एक रोगी की सेवा

एक रोगी की सेवा 

भिक्खुओं में यदि कोई बीमार होता तो बुद्ध उनके स्वास्थ्य के बारे उतने ही चिंतित होते थे जितना कि एक माँ बच्चे के बीमार पड़ने पर होती है. विनयपिटक के महावग्ग में एक कथानक दृष्टव्य है-

उस समय एक भिक्खु को पेट की बीमारी थी. वह अपने पेशाब-पाखाना में पड़ा हुआ था. जब बुद्ध को यह ज्ञात हुआ तो वे आनन्द को साथ लेकर उस भिक्खु के पास गए. 

"भिक्खु तुझे क्या रोग है ?" -बुद्ध ने उस भिक्खु को पूछा.

"पेट की बीमारी है, भंते !"

"भिक्खु, तेरा कोई परिचारक है ?"

"नहीं भंते !"

"क्या दूसरे भिक्खु तेरी सेवा नहीं करते ?"

"भंते! मैंने किसी दूसरे भिक्खु की सेवा नहीं की."

"जाओ आनन्द,  पानी लाओ. इसे हम नहालायेंगे."

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