धम्मपद पाठ
आजकल कुछ 'धम्म-प्रेमियों' को घर-घर 'रामचरित मानस' गायन की तर्ज पर धम्मपद का पाठ करते देखा जा सकता हैं. भोपाल के बुद्ध विहारों में बीते समय धम्मपद का पाठ होता था. किन्तु धीरे-धीरे लोग इस षडयंत्र को समझने लगे हैं. अब बुद्ध विहारों में धम्मपद का नहीं, बाबासाहब अम्बेडकर कृत 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' का पाठ होता है.
निस्संदेह, धम्मपद में नीतिपरक अच्छी-अच्छी बातें हैं. सुन्दर-सुन्दर शिक्षा-प्रद बातें कहीं गई हैं. किन्तु इसमें ब्राह्मणवाद का बखान भी है. ब्राह्मण को जघन्य पाप करने के बाद भी इसके परिणाम से मुक्त रखा गया है ! हम समता के पक्षधर है. हमें इस तरह की असंवैधानिक बातों का क्यों समर्थ करना चाहिए? या कि इन भेद भाव और अवांछित गाथाओं को निकाल बाहर करें अथवा इनमें संशोधन हो.
अनेक देशों में धम्मपद की जो प्रतियाँ मिलती हैं, उनमें भारी अन्तर है. कहीं कहीं तो कई वग्ग ही गायब हैं. अर्थात धम्मपद में संशोधन हुए हैं. भदंत आनंद कोसल्यायन हो या 'धम्मपद; गाथा और कथा' के लेखक प्रो. ताराराम; सभी ने स्वीकार किया है कि वर्तमान में प्राप्त धम्मपद में भारी बदलाव हुआ है. ऐसे में जो कुछ ति-पिटक में लिखा है, उसे 'बुद्धवचन' मानना न सिर्फ तथ्यों से परे हैं वरन ब्राह्मणवाद को अपने कन्धों पर ढोते रहना है.
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