धम्मपद में इंद्र ब्रह्मा आदि देवता और स्वर्ग-नरक
(1)
1. अप्पमादेन मधवा देवानं सेट्ठतं गतो.
अप्रमाद से ही इंद्र देवताओं में श्रेष्ठ बना. 30
2. यमलोकं च इमं सदेवकं.
इस यमलोक तथा इस पृथ्वी को. 44
3. अदस्सनं मच्चुराजस्स गच्छे
यमराज को न दिखाई देने वाला बने. 46
4. न देवो न गंधब्बो न मारो सह ब्रम्हुना.
न देवता, न गन्धर्व, न मार सहित ब्रह्मा ही. 105
5. सकुंतो जालमुत्तो व अप्पो सग्गाय गच्छति.
जाल से मुक्त पक्षियों की तरह कुछ ही स्वर्ग जाते हैं. 174
6. पठव्या एक रज्जेन सग्गस्स गमनेन वा.
पृथ्वी का अकेले राजा होने अथवा स्वर्ग जाने. 178
7. एतेहि तीहि ठानेहि गच्छे देवानं संतिके.
इन तीन बातों के करने से आदमी देवताओं के पास जाता है. 224
2.
अनेक जाति संसारं सन्धाविस्स अनिब्बिसं.
गहकारकं गवेसन्तो दुक्खा जाति पुनप्पुनं.
बारम्बार जन्म लेना दुक्ख है.
गृहकारक को ढूंढते हुए मैं अनेक जन्मों तक लगातार संसार में दौड़ता रहा. 153
देवापि तं पसंसति ब्रम्हुणा पि पसंसति.
देवता भी उसकी प्रशंसा करते है और ब्रह्मा भी.230
यम पुरिसा पि च ते उपतिट्ठा. तेरे पास यमदूत आ खड़े हैं. 235
अभूतवादी निरयं उपेति. असत्यवादी नरक में जाता है. 306
निन्दं ततियं निरयं चतुत्थं.
(प्रमादी पुरुष की गति)--- तीसरी निंदा, चौथी नरक. 309
निरया उपकंखति. तो नरक में ले जाया जाता है. 311
खाणातीता हि सोचन्ति निरयम्हि समप्पिता. 315
क्षण हाथ से निक़ल जाने के बाद नरक में पड़ कर शोक करना होता है.
यस्स गतिं न जानन्ति, देवा गंधब्ब मानुसा. 420
जिसकी गति को न देवता जानते हैं, न गन्धर्व न मनुष्य.
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