आमजन की चिंता
भिक्खु-संघ के कुछ नियमों को लेकर बुद्ध और देवदत्त के मध्य मतभेद थे. इसके चलते देवदत्त द्वारा बुद्ध पर प्राण-घातक चोट पहुँचाने का अंदेशा विनयपिटक के चुलवग्ग में आया है-
बुद्ध, राजगृह में विचरण कर रहे थे. जब वे गृधकूट पर्वत के नीचे से जा रहे थे, उनके सामने एक बड़ी चट्टान गिरी थी. सहस्त्र भिक्खु बुद्ध के आस-पास थे तब भी चट्टान की एक चिप्पी उनके पैर को लगी थी. कहीं देवदत्त हत्या न कर दे, इस आशंका से भिक्खुओं ने उनके आराम-स्थल के चारों ओर पहरा देना शुरू कर किया था. भिक्खुओं की हलचल देख बुद्ध ने आनन्द से पूछा-
"आनन्द! ये भिक्खु यहाँ क्यों घूम रहे हैं
" भंते! भगवान को कोई हानि न पहुचाने पाएं, इसलिए ये भिक्खु पहरा दे रहे हैं."
बुद्ध ने भिक्खुओं को बुला कर कहा -
" भिक्खुओं! मेरी चिंता छोड़ आम-जन की चिंता करो. उनके दुक्ख दूर करो"
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