असमंजस-
महाराष्ट्र के सेकेंडरी स्कूल पाठ्य-क्रम में सम्राट अशोक शिलालेखों की धम्मलिपि का समावेश किया गया। ब्राह्मण भाषाविदों को यह कृत्य अधर्म प्रतीत हुआ । स्मरण रहे, अभी तक इसे 'ब्राह्मीलिपि' के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। भाषा, साहित्य और इतिहास पर एकाधिकार रखने वालों को यह कैसे बर्दाश्त हो सकता है भला ? इन्हें 'ब्राह्मण संस्कृति' और 'राष्ट्र-भक्ति' खतरे में दिखने लगी।
धम्मलिपि जिसे स्कूल-कालेजों में अब तक 'ब्राह्मीलिपि' के रूप में पढ़ाया जाता रहा है, के इस मुद्दे पर बुद्धिस्ट /अम्बेडकर के अनुयायी, जो आरएसएस से संचालित सरस्वती स्कूलों और संस्कृत महाविद्यालयों/विश्व विद्यालयों में पढ़े हैं, बड़े असमंजस में दिखे. यह स्वाभिक भी है. इन शिक्षा-संस्थानों में पाठ्य-पुस्तकें ही इस प्रकार की होती है कि बच्चे/विद्यार्थी वैदिक संस्कृति से संस्कृति से संस्कारित और 'राष्ट्र-भक्ति' से सारोबार होते हैं।
बौद्ध-ग्रंथों में घुसे ब्राह्मण संस्कृति के प्रतीक/रक्षक /पोषक शब्दों को चिन्हित कर उनके स्थान पर बौद्ध संस्कृति के शब्द को स्थानापन्न किये जाने के प्रश्न पर वे सहमत नजर नहीं आये. उनका तर्क है, आप कितने शब्दों को हटाएंगे ? इससे तो एक बड़ा विवाद खड़ा हो जायेगा ? हम जो कुछ करना चाहते हैं, यह उसके विपरीत होगा ?
ति-पिटक ग्रंथों और दैनिक पाठ किये जाने वाले सुत्तों/गाथाओं में आने वाले इंद्र, ब्रह्म आदि ये शब्द हमारी धम्म और संस्कृति का अंग है ?
एक तरफ जहाँ ब्राह्मणवाद की चूलें हिल रहीं है, राजस्थान के हाई कोर्ट में वर्षों से स्थापित मनु की मूर्ति हटाई जा रहीं है, ऐसे में ब्राह्मण संस्कृति के पोषक हमारे साथियों को जागने की जरुरत है. हो सकता है, इससे उनकी प्रतिष्ठा और सम्बद्ध प्रतिष्ठानों पर सवाल खड़े हो, किन्तु हमारे मिशन में उनका सहयोग इस धरा पर बुद्ध शासन स्थापित करने में मददगार होगा। विश्व के लोग बुद्ध के इस धरती पर माथा टेकने आते हैं. आईये, हम उन्हें मूल बुद्धवचनों से परिचित कराये। सादर।
महाराष्ट्र के सेकेंडरी स्कूल पाठ्य-क्रम में सम्राट अशोक शिलालेखों की धम्मलिपि का समावेश किया गया। ब्राह्मण भाषाविदों को यह कृत्य अधर्म प्रतीत हुआ । स्मरण रहे, अभी तक इसे 'ब्राह्मीलिपि' के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। भाषा, साहित्य और इतिहास पर एकाधिकार रखने वालों को यह कैसे बर्दाश्त हो सकता है भला ? इन्हें 'ब्राह्मण संस्कृति' और 'राष्ट्र-भक्ति' खतरे में दिखने लगी।
धम्मलिपि जिसे स्कूल-कालेजों में अब तक 'ब्राह्मीलिपि' के रूप में पढ़ाया जाता रहा है, के इस मुद्दे पर बुद्धिस्ट /अम्बेडकर के अनुयायी, जो आरएसएस से संचालित सरस्वती स्कूलों और संस्कृत महाविद्यालयों/विश्व विद्यालयों में पढ़े हैं, बड़े असमंजस में दिखे. यह स्वाभिक भी है. इन शिक्षा-संस्थानों में पाठ्य-पुस्तकें ही इस प्रकार की होती है कि बच्चे/विद्यार्थी वैदिक संस्कृति से संस्कृति से संस्कारित और 'राष्ट्र-भक्ति' से सारोबार होते हैं।
बौद्ध-ग्रंथों में घुसे ब्राह्मण संस्कृति के प्रतीक/रक्षक /पोषक शब्दों को चिन्हित कर उनके स्थान पर बौद्ध संस्कृति के शब्द को स्थानापन्न किये जाने के प्रश्न पर वे सहमत नजर नहीं आये. उनका तर्क है, आप कितने शब्दों को हटाएंगे ? इससे तो एक बड़ा विवाद खड़ा हो जायेगा ? हम जो कुछ करना चाहते हैं, यह उसके विपरीत होगा ?
ति-पिटक ग्रंथों और दैनिक पाठ किये जाने वाले सुत्तों/गाथाओं में आने वाले इंद्र, ब्रह्म आदि ये शब्द हमारी धम्म और संस्कृति का अंग है ?
एक तरफ जहाँ ब्राह्मणवाद की चूलें हिल रहीं है, राजस्थान के हाई कोर्ट में वर्षों से स्थापित मनु की मूर्ति हटाई जा रहीं है, ऐसे में ब्राह्मण संस्कृति के पोषक हमारे साथियों को जागने की जरुरत है. हो सकता है, इससे उनकी प्रतिष्ठा और सम्बद्ध प्रतिष्ठानों पर सवाल खड़े हो, किन्तु हमारे मिशन में उनका सहयोग इस धरा पर बुद्ध शासन स्थापित करने में मददगार होगा। विश्व के लोग बुद्ध के इस धरती पर माथा टेकने आते हैं. आईये, हम उन्हें मूल बुद्धवचनों से परिचित कराये। सादर।
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