'कच्चायन व्याकरण' प्राचीनतम है। इसके रचियता कच्चायन है। इनके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती है। सनद रहे, बुद्ध(600-500 ई. पू.) के 80 महासावक शिष्यों में एक महाकच्चान भी थे। 'नेतिप्पकरण' और 'पेटकोपदेस' के रचियता भी 'कच्चायन' थे।
कुछ भाषाविद कच्चायन व्याकरण के प्रणयनकार को महान अट्ठकथाकार बुद्धघोस(350 -450 ईस्वी) और धम्मपाल(600 ईस्वी ) के बाद का बताते हैं। कुछ 500 -600 ईस्वी का बताते हैं। कच्चायन व्याकरण के बाद सिंहलद्वीप में ही वहां के शासक पराक्रमबाहु प्रथम (1153-1186) के समय 'मोग्गल्लान व्याकरण' लिखी गई थी.
सम्राट अशोक(राज्यकाल 272 -232 ई. पू. ) के समय 'धम्मलिपि' में लेख लिखे जाते थे, जो उनके शिलालेखों से प्रमाणित है। निस्संदेह, बुद्धकाल में भी लिपि रही होगी। यद्यपि दुरूह और खर्चीली तकनिकी के चलते चलन में न हो।
बौद्ध सम्राट कनिष्क(80-150 ईस्वी ) के समय चतुर्थ बौध्द संगति कनिष्कपुर (वर्तमान में काश्मीर का कनिस्पुर) में हुई थी। इसमें सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक की अट्ठकथाओं को पीतल के पट्टों पर उत्कीर्ण करवा कर पत्थरों के बक्सों में रख एक स्तूप में रखवा दिया गया था (एशिया के महान बौध्द सम्राटः डाॅ. भिक्षु सांवगी मेधंकर )। यह अभी तक अप्राप्त है। यह किस लिपि में लिखा था, खोज का विषय होगा।
पालि साहित्य के अभिलेख साहित्य की काल-सीमा 300 ई. पू से 1500 ईस्वी है। इस में प्रमुख रूप से अशोक के शिलालेख, साँची और भारहुत के अभिलेख, सारनाथ के कनिष्क कालीन अभिलेख, मोंगन(बर्मा) के 2 स्वर्ण पत्र लेख, बोबोगी पेगोडा(बर्मा) के खंडित शिलालेख, प्रोम के स्वर्ण पत्र, पेगन के 1442 ईस्वी के अभिलेख तथा कल्याणी अभिलेख का समावेश किया जाता है(पालि साहित्य का इतिहास: कोमलचन्द्र जैन)।
कुछ भाषाविद कच्चायन व्याकरण के प्रणयनकार को महान अट्ठकथाकार बुद्धघोस(350 -450 ईस्वी) और धम्मपाल(600 ईस्वी ) के बाद का बताते हैं। कुछ 500 -600 ईस्वी का बताते हैं। कच्चायन व्याकरण के बाद सिंहलद्वीप में ही वहां के शासक पराक्रमबाहु प्रथम (1153-1186) के समय 'मोग्गल्लान व्याकरण' लिखी गई थी.
सम्राट अशोक(राज्यकाल 272 -232 ई. पू. ) के समय 'धम्मलिपि' में लेख लिखे जाते थे, जो उनके शिलालेखों से प्रमाणित है। निस्संदेह, बुद्धकाल में भी लिपि रही होगी। यद्यपि दुरूह और खर्चीली तकनिकी के चलते चलन में न हो।
बौद्ध सम्राट कनिष्क(80-150 ईस्वी ) के समय चतुर्थ बौध्द संगति कनिष्कपुर (वर्तमान में काश्मीर का कनिस्पुर) में हुई थी। इसमें सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक की अट्ठकथाओं को पीतल के पट्टों पर उत्कीर्ण करवा कर पत्थरों के बक्सों में रख एक स्तूप में रखवा दिया गया था (एशिया के महान बौध्द सम्राटः डाॅ. भिक्षु सांवगी मेधंकर )। यह अभी तक अप्राप्त है। यह किस लिपि में लिखा था, खोज का विषय होगा।
पालि साहित्य के अभिलेख साहित्य की काल-सीमा 300 ई. पू से 1500 ईस्वी है। इस में प्रमुख रूप से अशोक के शिलालेख, साँची और भारहुत के अभिलेख, सारनाथ के कनिष्क कालीन अभिलेख, मोंगन(बर्मा) के 2 स्वर्ण पत्र लेख, बोबोगी पेगोडा(बर्मा) के खंडित शिलालेख, प्रोम के स्वर्ण पत्र, पेगन के 1442 ईस्वी के अभिलेख तथा कल्याणी अभिलेख का समावेश किया जाता है(पालि साहित्य का इतिहास: कोमलचन्द्र जैन)।
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