ताकि सनद रहे-
1. धम्म, जो बाबासाहब अम्बेडकर ने जो दिया, हमें उस पर गर्व है।
2. धर्मान्तरण का हेतु सामाजिक परिवर्तन है।
3. बुद्ध का धम्म, जैसे कि बाबासाहब अम्बेडकर ने स्थापित किया, एक सामाजिक- सांस्कृतिक आन्दोलन था।
4. धम्म का केंद्र मनुष्य न होकर समाज है। कोई मनुष्य अगर किसी निर्जन स्थान में रहता है, तो उसे धम्म की आवश्यकता नहीं है।
5. बुद्ध ने हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत ही नहीं दी, एक अनुपम, समता, स्वतंत्रता और भातृत्व पर केन्द्रित मानव कल्याण का दर्शन दिया।
6. इसमें अन्धविश्वास, व्यक्तिपूजा और चमत्कार के लिए कोई स्थान नहीं है।
7. विपस्सना, जो कि गोयनकाजी का कंसेप्ट है और जिसे उन्होंने बर्मा आदि देशों से लाये थे, बुद्ध और उनकी देशना से कोई सम्बन्ध नहीं है। अधिक-से- अधिक इसे शारीरिक-मानसिक बिमारियों को दुरुस्त करने का इलाज कहा जा सकता है।
8. बुद्ध ने तप, काया-क्लेश आदि विधियों को तरजीह नहीं दी। यह कहना कि विपस्सना से 'निब्बान' की प्राप्ति होती है, बुद्ध और उनके धम्म का दुष्प्रचार है।
9. पञ्ञा, करुणा, मेत्ता, निब्बान, परिनिब्बान और महापरिनिब्बान, पटिच्च-सम्मुत्पाद आदि शब्द/शब्दावली धम्म की धरोहर है। यह हमारी भाषा और संस्कृति की पहचान है। हरेक शब्द की व्युत्पत्ति और इतिहास होता है। बुद्ध ने नया और अनुत्तर धम्म ही विश्व को नहीं दिया, वरन अपनी बात रखने के लिए उन्हें कई नए शब्द गढ़ने पड़े।
1. धम्म, जो बाबासाहब अम्बेडकर ने जो दिया, हमें उस पर गर्व है।
2. धर्मान्तरण का हेतु सामाजिक परिवर्तन है।
3. बुद्ध का धम्म, जैसे कि बाबासाहब अम्बेडकर ने स्थापित किया, एक सामाजिक- सांस्कृतिक आन्दोलन था।
4. धम्म का केंद्र मनुष्य न होकर समाज है। कोई मनुष्य अगर किसी निर्जन स्थान में रहता है, तो उसे धम्म की आवश्यकता नहीं है।
5. बुद्ध ने हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत ही नहीं दी, एक अनुपम, समता, स्वतंत्रता और भातृत्व पर केन्द्रित मानव कल्याण का दर्शन दिया।
6. इसमें अन्धविश्वास, व्यक्तिपूजा और चमत्कार के लिए कोई स्थान नहीं है।
7. विपस्सना, जो कि गोयनकाजी का कंसेप्ट है और जिसे उन्होंने बर्मा आदि देशों से लाये थे, बुद्ध और उनकी देशना से कोई सम्बन्ध नहीं है। अधिक-से- अधिक इसे शारीरिक-मानसिक बिमारियों को दुरुस्त करने का इलाज कहा जा सकता है।
8. बुद्ध ने तप, काया-क्लेश आदि विधियों को तरजीह नहीं दी। यह कहना कि विपस्सना से 'निब्बान' की प्राप्ति होती है, बुद्ध और उनके धम्म का दुष्प्रचार है।
9. पञ्ञा, करुणा, मेत्ता, निब्बान, परिनिब्बान और महापरिनिब्बान, पटिच्च-सम्मुत्पाद आदि शब्द/शब्दावली धम्म की धरोहर है। यह हमारी भाषा और संस्कृति की पहचान है। हरेक शब्द की व्युत्पत्ति और इतिहास होता है। बुद्ध ने नया और अनुत्तर धम्म ही विश्व को नहीं दिया, वरन अपनी बात रखने के लिए उन्हें कई नए शब्द गढ़ने पड़े।
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