बुद्धिस्ट दो प्रकार के होते हैं-
एक वे जो बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म का स्थानापन्न समझते हैं. उनके लिए बुद्ध वैसे ही 'पूज्य' है, जैसे पहले राम और कृष्ण थे। राम या कृष्ण अथवा हनुमान मंदिर के स्थान में वे अब बुद्धविहार जाते हैं। इनके लिए स्वर्ग-नरक और पाप-पुण्य वैसे ही है, जैसे पहले थे।
दूसरे बुद्धिस्ट वे हैं, जो धर्मांतरण को 'सामाजिक परिवर्तन' के रूप में देखते हैं। वे बुद्ध को असमानता के विरुद्ध समता का, ऊंच-नीच की घृणा के विरुद्ध मैत्री, करुणा और बंधुत्व-भाव का प्रतीक देखते हैं। इनके लिए, बाबासाहब डॉ अम्बेडकर द्वारा दिखाया गया धम्म का मार्ग सामाजिक परिवर्तन का एक आंदोलन है।
पहले प्रकार के बुद्धिस्ट शांत और आत्म-केन्द्रित होते हैं। ये विपस्सना केन्द्रों में सम्बद्ध होते हैं। आन्दोलन या परिवर्तन जैसे शब्द उन्हें 'अस्थिर चित्त के कार्य ' लगते हैं. उनका लक्ष्य अच्छी नौकरी और परिवार होता है।
जबकि दूसरे प्रकार के बुद्धिस्ट परिवर्तन चाहते हैं. अपने विचारों में परिवर्तन, समाज की रहनी-गहनी में परिवर्तन, उनके जीवन जीने में परिवर्तन। लोक-व्यवहार में परिवर्तन, देश में परिवर्तन।
एक वे जो बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म का स्थानापन्न समझते हैं. उनके लिए बुद्ध वैसे ही 'पूज्य' है, जैसे पहले राम और कृष्ण थे। राम या कृष्ण अथवा हनुमान मंदिर के स्थान में वे अब बुद्धविहार जाते हैं। इनके लिए स्वर्ग-नरक और पाप-पुण्य वैसे ही है, जैसे पहले थे।
दूसरे बुद्धिस्ट वे हैं, जो धर्मांतरण को 'सामाजिक परिवर्तन' के रूप में देखते हैं। वे बुद्ध को असमानता के विरुद्ध समता का, ऊंच-नीच की घृणा के विरुद्ध मैत्री, करुणा और बंधुत्व-भाव का प्रतीक देखते हैं। इनके लिए, बाबासाहब डॉ अम्बेडकर द्वारा दिखाया गया धम्म का मार्ग सामाजिक परिवर्तन का एक आंदोलन है।
पहले प्रकार के बुद्धिस्ट शांत और आत्म-केन्द्रित होते हैं। ये विपस्सना केन्द्रों में सम्बद्ध होते हैं। आन्दोलन या परिवर्तन जैसे शब्द उन्हें 'अस्थिर चित्त के कार्य ' लगते हैं. उनका लक्ष्य अच्छी नौकरी और परिवार होता है।
जबकि दूसरे प्रकार के बुद्धिस्ट परिवर्तन चाहते हैं. अपने विचारों में परिवर्तन, समाज की रहनी-गहनी में परिवर्तन, उनके जीवन जीने में परिवर्तन। लोक-व्यवहार में परिवर्तन, देश में परिवर्तन।
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