पराभव सुत्त
Parâbhava Sutta*
एवं मे सुतं-
एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे। अथ खो अञ्ञतरा अरहन्ता अभिक्कन्ताय रत्तिया अभिक्कन्तवण्णा केवलकप्पं जेतवनं ओभासेत्वा, येन भगवा तेनुपसंकमि;
Evañ me sutañ-
Ekañ samayañ Bhagavâ Sâvatthiyam viharati, Jetavane Anâthapiòdikassa ârâme. Atha kho aòòatarâ Arahantâ abhikkantâya rattiyâ abhikkantavaòòâ kevalkappañ Jetavanañ obhâsetvâ yena bhagavâ tenupasañkami.
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्त अट्ठासि। एकमन्त ठिता खो सो अरहन्ता भगवन्तं गााथाय अज्झभासि-
Upasañkamitvâ Bhagavantañ abhivâdetvâ ekamantam atthâsi. Ekamaantam thitâ kho sâ Arahantâ Bhagavantañ gâthâya ajjhabhâsi-
अरहन्ता -
‘‘पराभवन्तं पुरिसं मयं, पुच्छाम गोतमं
“Parâbhavantañ purisañ mayañ, pucchâma Gotamañ
‘‘पराभव(पतन) को प्राप्त मनुष्यों के बारे में हम(मयं) पूछते हैं(पुच्छाम), गौतम
“About man’s downfall, asking thee, O’ Gotama! we
भगवन्तं पुट्ठमागम्म, किं पराभवतो मुखं
Bagavantañ putthamâgamma, kiñ parâbhavato mukhañ ?”
भगवान के पास पूछने के लिए आए हैं(पुट्ठ-आगम्म) कि पराभव के क्या कारण(कि) हैं, बतलाएं ?
Have come here with our question; Pray, tell us what the causes of man’s downfall are ?”
भगवा .
सुविजानो भवं होति, अविजानो पराभवो
Suvijâno bhavañ hoti, avijâno parâbhavo
सहज बुद्धि-गम्य(सुविजानो) की वृद्धि(भवं) होती है, असहज बुद्धि-गम्य(अविजानो) का पराभव
Righteousness person is the progressive one, un-righteousness is the decline one
धम्मकामो भवं होति, धम्मदेस्सी पराभवो ।।1।।
Dhammakâmo bhavañ hoti, Dhammadessî parâbhavo.
धम्म-प्रेमी की भव(वृद्धि) होती है और धम्म-देस्सी(द्वेषी) का पराभव होता है।
He who loves Dhamma is progresses, he who is averse to it; declines.
असन्तस्य पिया होन्ति, सन्ते न कुरुते पियं
Asantassa piyâ honti, Sante na kurute piyañ
असन्त(दुष्टों) का प्रिय होना, सन्त(सज्जनों)का प्रिय न होना(न कुरुते पियं)
The wicked are dear to him, with the virtuous he finds no delight.
असतं धम्मं रोचेति, तं पराभवतो मुखं।। 2।।
Asantañ dhammañ roceti, tañ parâbhavato mukham.
असन्तो के धम्मं(आचरण) में रुचि, यह(तं) पराभव(विनाश) का कारण है।
He approves the teachings of the wicked, this is the cause of man’s downfall.
निद्दासीली सभासीली, अनुट्ठाता च यो नरो
Niddâsîlî sabhâsîlî, Anutthâtâ ca yo naro
निद्रालु(निद्दासीली), भीड़-भाड़ पसन्दी(सभासीली), अनुद्योगी(अनुट्ठाता) जो ऐसा नर है
Fond of sleep and company, inactive and lazy,
Parâbhava Sutta*
एवं मे सुतं-
एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे। अथ खो अञ्ञतरा अरहन्ता अभिक्कन्ताय रत्तिया अभिक्कन्तवण्णा केवलकप्पं जेतवनं ओभासेत्वा, येन भगवा तेनुपसंकमि;
Evañ me sutañ-
Ekañ samayañ Bhagavâ Sâvatthiyam viharati, Jetavane Anâthapiòdikassa ârâme. Atha kho aòòatarâ Arahantâ abhikkantâya rattiyâ abhikkantavaòòâ kevalkappañ Jetavanañ obhâsetvâ yena bhagavâ tenupasañkami.
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्त अट्ठासि। एकमन्त ठिता खो सो अरहन्ता भगवन्तं गााथाय अज्झभासि-
Upasañkamitvâ Bhagavantañ abhivâdetvâ ekamantam atthâsi. Ekamaantam thitâ kho sâ Arahantâ Bhagavantañ gâthâya ajjhabhâsi-
अरहन्ता -
‘‘पराभवन्तं पुरिसं मयं, पुच्छाम गोतमं
“Parâbhavantañ purisañ mayañ, pucchâma Gotamañ
‘‘पराभव(पतन) को प्राप्त मनुष्यों के बारे में हम(मयं) पूछते हैं(पुच्छाम), गौतम
“About man’s downfall, asking thee, O’ Gotama! we
भगवन्तं पुट्ठमागम्म, किं पराभवतो मुखं
Bagavantañ putthamâgamma, kiñ parâbhavato mukhañ ?”
भगवान के पास पूछने के लिए आए हैं(पुट्ठ-आगम्म) कि पराभव के क्या कारण(कि) हैं, बतलाएं ?
Have come here with our question; Pray, tell us what the causes of man’s downfall are ?”
भगवा .
सुविजानो भवं होति, अविजानो पराभवो
Suvijâno bhavañ hoti, avijâno parâbhavo
सहज बुद्धि-गम्य(सुविजानो) की वृद्धि(भवं) होती है, असहज बुद्धि-गम्य(अविजानो) का पराभव
Righteousness person is the progressive one, un-righteousness is the decline one
धम्मकामो भवं होति, धम्मदेस्सी पराभवो ।।1।।
Dhammakâmo bhavañ hoti, Dhammadessî parâbhavo.
धम्म-प्रेमी की भव(वृद्धि) होती है और धम्म-देस्सी(द्वेषी) का पराभव होता है।
He who loves Dhamma is progresses, he who is averse to it; declines.
असन्तस्य पिया होन्ति, सन्ते न कुरुते पियं
Asantassa piyâ honti, Sante na kurute piyañ
असन्त(दुष्टों) का प्रिय होना, सन्त(सज्जनों)का प्रिय न होना(न कुरुते पियं)
The wicked are dear to him, with the virtuous he finds no delight.
असतं धम्मं रोचेति, तं पराभवतो मुखं।। 2।।
Asantañ dhammañ roceti, tañ parâbhavato mukham.
असन्तो के धम्मं(आचरण) में रुचि, यह(तं) पराभव(विनाश) का कारण है।
He approves the teachings of the wicked, this is the cause of man’s downfall.
निद्दासीली सभासीली, अनुट्ठाता च यो नरो
Niddâsîlî sabhâsîlî, Anutthâtâ ca yo naro
निद्रालु(निद्दासीली), भीड़-भाड़ पसन्दी(सभासीली), अनुद्योगी(अनुट्ठाता) जो ऐसा नर है
Fond of sleep and company, inactive and lazy,
अलसो कोध पञ्ञाणो, तं पराभवतो मुखं।। 3।।
Alaso kodha paòòâòo, tañ parâbhavato mukhañ.
और जो आलसी(अलसो), क्रोधी (क्रोध-पञ्ञाणो) होता है, तो यह उसके पराभव का कारण है।
And manifesting anger, this is the cause of man’s downfall.
यो मातरं वा पितरं वा, जिण्णकं गतयोब्बनं
Yo mâtarañ vâ pitarañ vâ, jiòòakañ gatayobbanañ
माता अथवा पिता का, जो(यो) जीर्ण(जिण्णकं) एवं गत-यौवन(गत-योब्बनं) को प्राप्त हैं
Mother or father, who are old and past their youth;
पहू सन्तो न भरति, तं पराभवो मुखं।। 4।।
Pahû santo na bharati, tañ parâbhavato mukhañ.
समर्थ होते हुए(पहू-सन्तो) भी न(नहीं) भरण-पोषण करता, तो यह उसके पराभव का कारण है।
Being affluent, one does not support; this is the cause of man’s downfall.
यो याचकं वा समणं वा, अञ्ञं वापि वनिब्बकं
Yo yâcakañ vâ samaòañ vâ, aòòañ vâpi vanibbakañ
जो(यो) याचक, समण या अन्य दूसरे(अञ्ञं वा-अपि) वनिब्बकं(दरिद्र) को
To a beggar or ascetic or any other mendicant
मुसावादेन वञ्चेति, तं पराभवो मुखं ।। 5।।
Musâvâdena vaòceti, Tañ parâbhavato mukhañ.
मुसावादेन अर्थात झूठ बोलकर धोखा देता(वञ्चेति) है, तो यह उसके पराभव का कारण है.
If he deceive by falsehood; this is the cause of man’s downfall.
पहूत-वित्तो पुरिसो, स-हिरञ्ञो स-भोजनो
Pahûta-vitto puriso, sa-hiraòòo sa-bhojano
बहुत धनवान(पहूत-वित्तो) पुरुष, जो स्वर्ण(स-हिरञ्ञो) और भोजन से सम्पन्न(स-भोजनो) है
Having passes much wealth and abundance of gold and food
एको भुञ्जति सादूनि, तं पराभवो मुखं ।। 6।।
Eko bhuòjati sâdûni, tañ parâbhavato mukhañ.
अकेले ही सुस्वादि(सादूनि) पदार्थों का भोग करता है, तो यह उसके पराभव का कारण है।
He enjoy delicacies all by himself; this is the cause of man’s downfall.
जातित्थद्धो धनत्थद्धो, गोत्तत्थद्धो च यो नरो
Jâtitthaddho dhanatthaddho, gottatthaddho ca yo naro
जाति-अहंकार(जातित्थद्धो), धन-अहंकार,(धनत्थद्धो) और गोत्र-अहंकारी(गोतत्थद्धो) जो नर
To be proud of one’s birth, wealth and clan
स-ञातिं अतिमञ्ञे ति, तं पराभवो मुखं ।। 7।।
Sañ òâtiñ atimaòòeti, tañ parâbhavato mukhañ.
सजातीय बंधु-बांधवों का निरादर(अति-मञ्ञे ति) करता है, तो यह उसके पराभव का कारण है।
And to despise one’s own kinsmen,this is the man’s downfall.
इत्थिधुत्तो सुराधुत्तो, अक्खधुत्तो च यो नरो
Itthidhutto surâdhutto, akkhadhutto ca yo naro
स्त्री में धुत(रत), शराब में धुत(सुराधुत्तो) और अक्ख(जुएं का खेल) में धुत जो नर
A man who is addicted to women, a drunkard, a gambler
लद्धं लद्धं विनासेति, तं पराभवो मुखं ।। 8।।
Laddhañ laddhañ vinâseti, tañ parâbhavato mukhañ.
लब्ध अर्थात प्राप्त(लद्धं) धन का विनाश करता है, तो यह उसके पराभव का कारण है।
Given to a life of indulgence in immoral pleasures; this is the cause of man’s downfall.
सेहि दारेहि असन्तुट्ठो, बेसियासु पदिस्सति
Sehi dârehi asantuttho, vesiyâsu padissati
जो स्व-पत्नि(दारेहि) से असंतुष्ट रहता है, वेश्याओं(बेसियासु) के साथ दिखाई देता(पदिस्सति) है,
Not to be contented with wife and to be seen with whores
दिस्सति परदारेसु, तं पराभवो मुखं ।। 9।।
Dissati paradâresu, tañ parâbhavato mukhañ.
और पराई स्त्रियों(परदारेसु) के साथ दिखता(दिस्सति) है, तो यह उसके पराभव का कारण है।
And the wives of others, this is the cause of man’s downfall.
अतीत-योब्बनो पोसो, आनेति तिम्बुरुत्थनिं
Atîta-yobbano poso, âneti timburuthaniñ
यौवन बीत जाने पर(अतीत-योब्बनो) तिम्बुरुत्थनिं(तिंबरु वृक्ष के फल सदृश्य छोटे स्तन वाली अर्थात नवयुवती) को (ब्याह कर) लाता(आनेति) है
Being past one’s youth, to take a young wife
तस्सा इस्सा न सुपति, तं पराभवो मुखं ।।10।।
Tassâ issâ na supati, tañ parâbhavato mukhañ.
और उसकी ईष्या(इस्सा) से नहीं सो पाता(सुपति), तो यह उसके पराभव का कारण है।
And to be unable to sleep for jealously of her; this is the cause of man’s downfall.
इत्थि सोण्डिं विकिरणिं, पुरिसं वा’पि तादिसं
Itthi soòdiñ vikiraòiñ, purisañ vâ'pi tâdisañ
किसी शराबी(सोण्डिं) विकिरणिं(खा-पी कर उड़ाने वाली स्त्री) या वैसे ही(तादिसं) पुरुष को
To place in authority a women given to drink and squandering
इस्सरियस्मिं ठापेति, तं पराभवो मुखं ।।11।।
Issariyasmiñ thâpeti, tañ parâbhavato mukhañ
ऐश्वर्य के स्थान पर(इस्सरियस्मिं) स्थापित करता(ठापेति) है, तो यह उसके पराभव का कारण है।
Or a man of similar behavior; this the cause of man’s downfall.
अप्प भोगो महातण्हो, खत्तिये जायते कुले
Appabhogo mahâtaòho, khattiye jâyaate kule
अल्प भोग(धन) वाला, क्षत्रीय(उच्च) कुल में पैदा(जायते), महा लालची(महातण्हो) नर
To be of noble birth, with vast ambition and of slender means
सो’ध रज्जं पत्थयति, तं पराभवो मुखं ।।12।।
So'dha rajjañ patthayati, tañ parâbhavato mukhañ
वह यहां राज्य(रज्जं) पाने की इच्छा करता(पत्थयति) है, तो यह उसके पराभव का कारण होता है।
And to crave here for ruler ship, this is the cause of man’s downfall.
एते पराभवे लोके, पण्डितो समवेक्खिय
Ete parâbhave loke, paòdito samavekkhiya
जो विद्वान इस लोक के पराभवों(विनाश-मूलक धर्मों) को भली-भांति समझकर(समवेक्खिय)
These causes of man’s downfall in the world, who realize fully
अरियो दस्सन सम्पन्नो, स लोकं भजते जीवति
Ariyo dassana-sampanno, sa lokañ bhajate jivati.
अीरय(श्रेष्ठ) दृष्टि से सम्पन्न होते हैं, वे लोक में सुखपूर्वक जीवन जीते हैं।
The noble sage, endowed with Ariyan insight, lives happily in the world.
-- पराभव सुत्तं निट्ठितं --
-------------------------------------------
*Ref- 1. Suttanipata; Khuddaka Nikaya. 2. www: budhanet.net
3. महापरित्राण सूत्रपाठः भदन्त धर्मकीर्ति महाथेरो. 4. सुत्तनिपातः धर्मानन्द कोसम्बी, संपादक- पु. वि. बापट
विशेष-
‘धम्मपदः गाथा और कथा’ में दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग के रीडर डाॅ. संघसेनसिंह लिखते हैं कि ब्राह्मण-वग्ग में ब्राह्मण शब्द को पारिभाषिक पद के रूप में व्याख्यायित किया गया है। पूरे वग्ग में ब्राह्मण शब्द एक-दो स्थानों को छोड़कर सर्वत्र ‘अरहन्त’ के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है। अरहन्त-पद(स्थान) प्रारम्भिक बौद्ध धर्म में सर्वश्रेष्ठ पद है, निब्बान(निर्वाण) है, मोक्ष है(प्राक्कथन पृ. 14-15)। परित्तं-गाथाओं में देवता के स्थान पर ‘अरहन्त’ शब्द हमें पढ़ने को मिलता है, यथाः ‘अरहन्तानं च तेजेन, रक्खं बन्धामि सब्ब सो’ आदि। किन्तु बाद के पाठों में कई स्थानों पर ‘देवता’ शब्द खटकता है। लेखक द्वय अ. ला. ऊके और प्रो हेमलता महिस्वर के द्वारा सम्पादित ग्रन्थ 'धम्म-परित्तं' में इस तरह के अबौद्ध शब्दावली को दुरुस्त करने का प्रयास किया गया है। आखिर, कब तक हम ‘भवन्तु सब्ब मंगलं, रक्खन्तु सब्ब देवता’ का पाठ करते रहेंगे ?
Appabhogo mahâtaòho, khattiye jâyaate kule
अल्प भोग(धन) वाला, क्षत्रीय(उच्च) कुल में पैदा(जायते), महा लालची(महातण्हो) नर
To be of noble birth, with vast ambition and of slender means
सो’ध रज्जं पत्थयति, तं पराभवो मुखं ।।12।।
So'dha rajjañ patthayati, tañ parâbhavato mukhañ
वह यहां राज्य(रज्जं) पाने की इच्छा करता(पत्थयति) है, तो यह उसके पराभव का कारण होता है।
And to crave here for ruler ship, this is the cause of man’s downfall.
एते पराभवे लोके, पण्डितो समवेक्खिय
Ete parâbhave loke, paòdito samavekkhiya
जो विद्वान इस लोक के पराभवों(विनाश-मूलक धर्मों) को भली-भांति समझकर(समवेक्खिय)
These causes of man’s downfall in the world, who realize fully
अरियो दस्सन सम्पन्नो, स लोकं भजते जीवति
Ariyo dassana-sampanno, sa lokañ bhajate jivati.
अीरय(श्रेष्ठ) दृष्टि से सम्पन्न होते हैं, वे लोक में सुखपूर्वक जीवन जीते हैं।
The noble sage, endowed with Ariyan insight, lives happily in the world.
-- पराभव सुत्तं निट्ठितं --
-------------------------------------------
*Ref- 1. Suttanipata; Khuddaka Nikaya. 2. www: budhanet.net
3. महापरित्राण सूत्रपाठः भदन्त धर्मकीर्ति महाथेरो. 4. सुत्तनिपातः धर्मानन्द कोसम्बी, संपादक- पु. वि. बापट
विशेष-
‘धम्मपदः गाथा और कथा’ में दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग के रीडर डाॅ. संघसेनसिंह लिखते हैं कि ब्राह्मण-वग्ग में ब्राह्मण शब्द को पारिभाषिक पद के रूप में व्याख्यायित किया गया है। पूरे वग्ग में ब्राह्मण शब्द एक-दो स्थानों को छोड़कर सर्वत्र ‘अरहन्त’ के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है। अरहन्त-पद(स्थान) प्रारम्भिक बौद्ध धर्म में सर्वश्रेष्ठ पद है, निब्बान(निर्वाण) है, मोक्ष है(प्राक्कथन पृ. 14-15)। परित्तं-गाथाओं में देवता के स्थान पर ‘अरहन्त’ शब्द हमें पढ़ने को मिलता है, यथाः ‘अरहन्तानं च तेजेन, रक्खं बन्धामि सब्ब सो’ आदि। किन्तु बाद के पाठों में कई स्थानों पर ‘देवता’ शब्द खटकता है। लेखक द्वय अ. ला. ऊके और प्रो हेमलता महिस्वर के द्वारा सम्पादित ग्रन्थ 'धम्म-परित्तं' में इस तरह के अबौद्ध शब्दावली को दुरुस्त करने का प्रयास किया गया है। आखिर, कब तक हम ‘भवन्तु सब्ब मंगलं, रक्खन्तु सब्ब देवता’ का पाठ करते रहेंगे ?
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