राहुल संकृत्यायन को बुद्ध और उनका दर्शन पर बुद्ध की बात सामने रखनी थी, बुद्ध की भाषा बोलनी थी. अफसोस, पालि-पंडित ब्राह्मणवाद से मुक्त नहीं हो सकें. बाबासाहब अम्बेडकर के उलट राहुलजी ने पुनर्जन्म, प्रत्युत-समुत्पाद सहित कई सिद्धांतों पर बुद्ध को गड-मड्ड किया. भदंत आनंद कोसल्यायन को समझा जा सकता है किन्तु राहुलजी मार्क्सवादी होकर भी बुद्ध को पुनर्जन्म से मुक्त नहीं कर सकें. समर्थ न होते हुए भी, हमें उनकी इस असमर्थता पर गहन क्षोभ है.
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