15 लाख का सवाल
ताज़ा चुनावी आंकड़ों के अनुसार, बीजेपी सत्ता से खिसकती दिख रही है. अगर ऐसा है, तो उस 15 लाख का क्या होगा जो मोदीजी हमारे खाते में डालने वाले थे ? बात मेरे अकेले की नहीं है, मेरे जैसे देश के करोड़ों मतदाताओं की है, जो आज भी आस लगाए बैठे हैं. क्या सुप्रीम कोर्ट 'सुओ-मोटो' इसका संज्ञान लेगा ? अथवा झूठ बोलने के लिए कोई गाइड लाइन जारी करेगा ?
कुछ लोग इसे 'चुनावी जुमला' कहते हैं. किन्तु क्या ऐसे जुमलों से, जहाँ लोग इसे अपने सुनहरे भविष्य से जोड़ते हैं, झूठ बोला जाना चाहिए ? चुनाव में अपार धन खर्च होता है, जनबल लगता है. क्या ऐसे खर्चीले चुनाव झूठ बोल कर लड़ा जाना चाहिए ?
दरअसल, संवैधानिक प्रावधानों के तहत राजनैतिक पार्टियों को आम जनता के सामने आगे आने वाले पांच वर्षों के लिए अपना एक्शन प्लान रखना होता है, उसके तकनीकी पहलुओं पर डिस्कशन करना होता है, न की झूठ बोलना. झूठ बोलना और बाद में उसे 'चुनावी जुमला' बताना निस्संदेह गैर जिम्मेदाराना और आम जनता के पैसों से खिलवाड़ करना है ?
और फिर, चुनाव के समय कही गई बातें चुनावी जुमलें ही हैं तो लोग किस राजनैतिक पार्टी का विश्वास करेंगे ? जनता कौनसी पार्टी उसके हित में हैं, कौनसी नहीं है, कैसे तय करेगी ? इन झूठ के जुमलों से ही चुनाव लड़ा जाना है तो फिर इसमें देश की जनता के गाढ़ी कमाई का अरबों रूपया और मानव-समय क्यों खर्च हों ?
ताज़ा चुनावी आंकड़ों के अनुसार, बीजेपी सत्ता से खिसकती दिख रही है. अगर ऐसा है, तो उस 15 लाख का क्या होगा जो मोदीजी हमारे खाते में डालने वाले थे ? बात मेरे अकेले की नहीं है, मेरे जैसे देश के करोड़ों मतदाताओं की है, जो आज भी आस लगाए बैठे हैं. क्या सुप्रीम कोर्ट 'सुओ-मोटो' इसका संज्ञान लेगा ? अथवा झूठ बोलने के लिए कोई गाइड लाइन जारी करेगा ?
कुछ लोग इसे 'चुनावी जुमला' कहते हैं. किन्तु क्या ऐसे जुमलों से, जहाँ लोग इसे अपने सुनहरे भविष्य से जोड़ते हैं, झूठ बोला जाना चाहिए ? चुनाव में अपार धन खर्च होता है, जनबल लगता है. क्या ऐसे खर्चीले चुनाव झूठ बोल कर लड़ा जाना चाहिए ?
दरअसल, संवैधानिक प्रावधानों के तहत राजनैतिक पार्टियों को आम जनता के सामने आगे आने वाले पांच वर्षों के लिए अपना एक्शन प्लान रखना होता है, उसके तकनीकी पहलुओं पर डिस्कशन करना होता है, न की झूठ बोलना. झूठ बोलना और बाद में उसे 'चुनावी जुमला' बताना निस्संदेह गैर जिम्मेदाराना और आम जनता के पैसों से खिलवाड़ करना है ?
और फिर, चुनाव के समय कही गई बातें चुनावी जुमलें ही हैं तो लोग किस राजनैतिक पार्टी का विश्वास करेंगे ? जनता कौनसी पार्टी उसके हित में हैं, कौनसी नहीं है, कैसे तय करेगी ? इन झूठ के जुमलों से ही चुनाव लड़ा जाना है तो फिर इसमें देश की जनता के गाढ़ी कमाई का अरबों रूपया और मानव-समय क्यों खर्च हों ?
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