Tuesday, April 9, 2019

आदिवासी 'बनवासी' कैसे ?: एस आर दानापुरी

आदिवासी 'बनवासी' कैसे ?
आदिवासी 'वनवासी' नहीं हैं। आरएसएस उनकी आदिवासी की पहचान खत्म करने के लिये उन्हें जानबूझ कर वनवासी कहती है ताकि उन्हें हिन्दुत्व की विचारधारा में शामिल किया जा सके।

अपनी संस्कृति और परम्पराओं को ना भूलें-
संविधान में हमें आदिवासी ना लिखकर अनुसूचित जनजाति लिखा हुआ है । आदिवासी का मतलब होता है -
आदिकाल के निवास करने वाली ~जातियां आदिवासी का मतलब होता है ~ देशज , प्रथम राष्ट्र, यहाँ की धरती पर आदिकाल से निवास करने वाले लोग l 


आदिवासी का मतलब होता है ~इंडिजिनस पीपुल्स । लेकिन संविधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि जनजाति ही आदिवासी है l अनुसूचित जनजाति का मतलब~ ऐसी जातियां जो अनुसूची में कभी भी शामिल किया जा सकता है और कभी अनुसूची से बाहर किया जा सकता है ।

अनुसूची में शामिल करने के लिए संविधान में जो पांच विशेष मापदंड तय किये है ~
• विशेष संस्कृति,
•आदिम विशेषतायें,
•दुसरो के संपर्क में आने से हिचक,
•भौगोलिक अलगाव
• सामाजिक शैक्षणिक पिछड़ेपन


जिनके आधार पर संविधान ने हमें अनुसूचित जनजाति कहा है अगर अनुसूचित जनजाति के इन पैमानों पर हम खरा नहीं उतरते है तो राष्ट्रपति को विशेष अधिकार है कि वह हमें कभी भी अनुसूचित जनजाति से बाहर कर सकता है l
जैसे -गुजरात में राठवा समुदाय, *छत्तीसगढ़ में भारिया जनजाति और झारखंड के तमाड़िया को अनुसूचित जनजाति से बाहर कर दिया गया है l क्योंकि उनकी धार्मिक परम्परायें जनजातीय समुदाय से मेल नहीं खाकर हिन्दू समुदाय से मेल खा रही थी* इसलिए अपनी संस्कृति और धार्मिक परम्पराओं को ना छोड़े l अन्यथा अनुसूचित जनजाति से भी बाहर किया जा सकता है l इसलिए अनुसूचित क्षेत्रो में किसी भी गैर आदिवासी धार्मिक संगठनो को रोके l ये हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं पर सीधे सीधे हमला कर रहे है और जैसे- जैसे आप अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक, परम्पराओं को छोड़कर गैर जनजातीय परम्पराओं को अपनायेंगे तो हमारी संस्कृति व परंपरा दूर हटते जाएगी । अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं को ना भूलें जिससे हमारे आने वाली पीढ़ियों के भविष्य सुरक्षित हो। 

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