आतंक
आतंक के मूल में असुरक्षा की भावना है. आदमी स्वभाव-वश क्रूर नहीं है, असुरक्षा की चिंता ही उसे क्रूरता की हद तक ले जाती है. समाज, जहाँ वह रहता है, से अगर सुरक्षित महसूस करें तो उसे आतंक पैदा करने की जरुरत ही न पड़े. दरअसल, कमजोर व्यक्ति ही आतंक का सहारा लेता है.
आतंक के मूल में असुरक्षा की भावना है. आदमी स्वभाव-वश क्रूर नहीं है, असुरक्षा की चिंता ही उसे क्रूरता की हद तक ले जाती है. समाज, जहाँ वह रहता है, से अगर सुरक्षित महसूस करें तो उसे आतंक पैदा करने की जरुरत ही न पड़े. दरअसल, कमजोर व्यक्ति ही आतंक का सहारा लेता है.
व्यक्ति हो या देश, अगर वह आतंक पैदा करता है अथवा आतंक को समर्थन देता है, निस्संदेह वह किसी असुरक्षा से भयभीत है. हमें इस तारतम्य में बुद्ध का शांति सन्देश आतंक को निर्मूल करने आश्वस्थ करता है. 'वैर से वैर कभी शांत नहीं होता', इस दिशा में मार्ग प्रशस्त करता है.
बलशाली व्यक्ति को चाहिए कि वह कमजोर व्यक्ति का सम्मान करें. 'जिओ और जीने दो' पर अमल करे. नैतिकता का प्रदर्शन न कर उसे व्यवहार में लाए.
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