अम्बेडकर, क्या मुस्लिम-एकता के विरोधी थे ?
अम्बेडकर; 'दलित-मुस्लिम एकता के विरोधी थे'. -यह कोई धार्मिक दंगा भड़काने के नीयत से ही बोल सकता है. अफ़सोस कि यह उ प्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बोल रहे थे. योगी आदित्यनाथ, जैसे कि इनकी छवि है, जातिगत वैमनस्यता फैलाने की. सांप्रदायिक दंगा करवाने की और इन मुद्दों पर सामाजिक-धार्मिक ध्रुवीकरण करने की .और सबसे बड़ी बात, यह बांटने की राजनीति ये भगवा वस्त्र पहन कर करते है. हिन्दू मठाधीश होकर करते हैं, सूबे का बतौर मुख्यमंत्री करते हैं ! अगर हिन्दू मठ के अधीन राजसत्ता हो तो क्या हो सकता है, योगी अवैद्यनाथ इसके उदहारण है !
आरएसएस विचारधारा जो योगी अवैद्यनाथ की सोच और उनके कृत्य को दर्शाती हैं, देशभक्ति की बात करती है. राष्ट्रभक्ति का दंभ भरती है. इन्हें भारत से नहीं, हिंदुस्तान से प्रेम है. देश का संविधान इन्हें अपने मंजील की ओर बढ़ने में बाधा दिखता है ? सदियों से सिंची और पल्लवित गंगा-जमनी की तहजीब इन्हें नागवार लगती है. और सबसे बड़ी बात,70-75 वर्षों में ये लोग युवाओं की लम्बी फ़ौज अपने पीछे खड़ा कर देते हैं ! और ये फ़ौज में खड़े युवा 'मोदी-मोदी' के नारे लगाते हैं ?
हमें हिटलर को, उसके राष्ट्रभक्ति के जज्बे को और उसके पीछे उन्मादी भीड़ को नहीं भुलना करनी चाहिए. हमने बाबाओं के पीछे मरने-मारने पर उतारू खड़ी भीड़ को देखा है. बाबा तो अपने कुकर्मों से सलाखों के पीछे चले गए मगर, भीड़ तो वही है ?
अम्बेडकर; 'दलित-मुस्लिम एकता के विरोधी थे'. -यह कोई धार्मिक दंगा भड़काने के नीयत से ही बोल सकता है. अफ़सोस कि यह उ प्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बोल रहे थे. योगी आदित्यनाथ, जैसे कि इनकी छवि है, जातिगत वैमनस्यता फैलाने की. सांप्रदायिक दंगा करवाने की और इन मुद्दों पर सामाजिक-धार्मिक ध्रुवीकरण करने की .और सबसे बड़ी बात, यह बांटने की राजनीति ये भगवा वस्त्र पहन कर करते है. हिन्दू मठाधीश होकर करते हैं, सूबे का बतौर मुख्यमंत्री करते हैं ! अगर हिन्दू मठ के अधीन राजसत्ता हो तो क्या हो सकता है, योगी अवैद्यनाथ इसके उदहारण है !
आरएसएस विचारधारा जो योगी अवैद्यनाथ की सोच और उनके कृत्य को दर्शाती हैं, देशभक्ति की बात करती है. राष्ट्रभक्ति का दंभ भरती है. इन्हें भारत से नहीं, हिंदुस्तान से प्रेम है. देश का संविधान इन्हें अपने मंजील की ओर बढ़ने में बाधा दिखता है ? सदियों से सिंची और पल्लवित गंगा-जमनी की तहजीब इन्हें नागवार लगती है. और सबसे बड़ी बात,70-75 वर्षों में ये लोग युवाओं की लम्बी फ़ौज अपने पीछे खड़ा कर देते हैं ! और ये फ़ौज में खड़े युवा 'मोदी-मोदी' के नारे लगाते हैं ?
हमें हिटलर को, उसके राष्ट्रभक्ति के जज्बे को और उसके पीछे उन्मादी भीड़ को नहीं भुलना करनी चाहिए. हमने बाबाओं के पीछे मरने-मारने पर उतारू खड़ी भीड़ को देखा है. बाबा तो अपने कुकर्मों से सलाखों के पीछे चले गए मगर, भीड़ तो वही है ?
प्रसिद्द अम्बेडकराईट और दलित चिन्तक कँवल भरती के शब्दों में; ये ज़ाहिल लोग हैं, जो न इतिहास को पढ़ते हैं और न समझते हैं। आरएसएस इनको जो रटवाता है, ये रट्टू तोते की तरह वही सब जगह दोहराते हैं।
डॉ. आंबेडकर ने मुस्लिम लीग की आलोचना की थी, जो एक राजनीतिक दल की आलोचना थी, मुसलमानों की नहीं। यह सत्ता हस्तांतरण के समय की बात है, जब सत्ता का बंटवारा कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हो रहा था, और दलित वर्गों को हिन्दू फोल्ड में मानकर हाशिए पर डाल दिया गया था। डॉ. आंबेडकर ने इस बंटवारे का विरोध किया था, और दलित वर्गों को सत्ता का तीसरा केंद्र बनाने की लड़ाई लड़ी थी। इस लड़ाई में सर्वहारा की बात करने वाले कम्युनिस्ट और समाजवादी भी आंबेडकर के विरोध में थे और सत्ता के हिन्दू केंद्र बने हुए थे। गोलमेज़ सम्मेलन में डॉ. आंबेडकर और मुस्लिम नेताओं ने मिलकर अल्पसंख्यक वर्गों की लड़ाई लड़ी थी। मुहम्मद शौक़त अली और डॉ. आंबेडकर की सम्मान यात्रा एक ही गाड़ी में बम्बई में निकली थी। परेल में दोनों की संयुक्त सभा हुई थी। और ज़ाहिल लोग कह रहे हैं कि आंबेडकर मुस्लिम विरोधी थे.
डॉ. आंबेडकर ने मुस्लिम लीग की आलोचना की थी, जो एक राजनीतिक दल की आलोचना थी, मुसलमानों की नहीं। यह सत्ता हस्तांतरण के समय की बात है, जब सत्ता का बंटवारा कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हो रहा था, और दलित वर्गों को हिन्दू फोल्ड में मानकर हाशिए पर डाल दिया गया था। डॉ. आंबेडकर ने इस बंटवारे का विरोध किया था, और दलित वर्गों को सत्ता का तीसरा केंद्र बनाने की लड़ाई लड़ी थी। इस लड़ाई में सर्वहारा की बात करने वाले कम्युनिस्ट और समाजवादी भी आंबेडकर के विरोध में थे और सत्ता के हिन्दू केंद्र बने हुए थे। गोलमेज़ सम्मेलन में डॉ. आंबेडकर और मुस्लिम नेताओं ने मिलकर अल्पसंख्यक वर्गों की लड़ाई लड़ी थी। मुहम्मद शौक़त अली और डॉ. आंबेडकर की सम्मान यात्रा एक ही गाड़ी में बम्बई में निकली थी। परेल में दोनों की संयुक्त सभा हुई थी। और ज़ाहिल लोग कह रहे हैं कि आंबेडकर मुस्लिम विरोधी थे.
और अगर अम्बेडकर, मुस्लिम एकता के विरोधी थे तो आरएसएस के लोग क्यों उन्हें प्रात: वन्दनीय मानते हैं ? क्यों उनकी फोटों सामने रख कर जुलुस निकालते हैं ? क्यों संसद भवन; जो विभिन्न जाति, धर्म और सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व करता है, की छाती पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हैं ?
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