जातिगत घृणा
जातिगत घृणा आरोपित है. इसमें हिनता की कोई बात नहीं है. महार, चमार, भंगी आदि घृणास्पद शब्द नहीं हैं. घृणा इन जातियों से जोड़ दी गई है. ऊँच-नीच की घृणा आरोपित है. घृणा इन जातियों से चिपका दी गई है. और, कालांतर में ये जातियां, घृणा की पर्यायवाची बना दी गई। सवाल है कि ये जातियां क्या करें ?
दलितों के मसीहा बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने इसका तोड़ दे दिया है. और वह है, उच्च शिक्षा और धर्मांतरण। निस्संदेह, डॉ अम्बेडकर के आन्दोलन की वजह से इन जातियों ने गंदे व्यवसायों को त्याग दिया है और उच्च शिक्षा प्राप्त कर उस आरोपित घृणा को नकार दिया है.
सनद रहे, इस सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन में, दलितों के बौद्ध-धर्मांतरण ने एक महत्ती भूमिका निभायी है. आप बुद्धिज्म को अपना कर एक तरह जहाँ अवैज्ञानिक बातों को त्याग कर वैज्ञानिक सोच विकसित करते हैं, वहीँ दूसरी तरफ अपनी जड़ों और परम्पराओं(अवैदिक संस्कृति) से भी जुड़े रहते हैं.
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