Monday, April 29, 2019

भिक्खु-संघ

भिक्खु-संघ
यह सही है कि अधिकांश भिक्खु विनय-पालन में प्रमाद करते हैं और यही कारण है कि उनके प्रति लोगों के आदर-भाव में उत्तरोत्तर कमी हो रही है. परन्तु इसके लिए हम भी कम जिम्मेदार नहीं हैं ?
धम्म-प्रचार, भिक्खु का धर्म है. किन्तु यह सरलता व सहजता से कर सकें, क्या हम यह सुनिश्चित करते हैं ? अंतत: भिक्खु समाज पर आश्रित है. बदली हुई परिस्थितियों में उसे कैसे रहना चाहिए ? क्या हमने इस पर विचार किया है, तत्संबंधित नियम बनाए हैं ? और, उन नियमों का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया है ? यह ठीक है कि विनय सम्बन्धी नियम बनाना भिक्खु-संघ का कार्य है, वे नियम पालन किए जा रहे हैं या नहीं, यह देखना भी भिक्खु-संघ का कार्य-क्षेत्र है. किन्तु भिक्खु-संघ अंतत: समाज पर ही तो निर्भर है न ?
भिक्खुओं की रहनी-गहनी पर उंगली उठाना सरल है. गलतियाँ हो सकती हैं. विनय को लेकर बुद्ध के ज़माने से विवाद होते रहे हैं. जरुरत है, समाधान खोजने की. हम उंगली उठा कर अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते ?

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