Saturday, March 2, 2019

दी बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया बनाम डॉ. मिलिंद जीवने वाद

 दि बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया बनाम डॉ. मिलिंद जीवने वाद

मा. सहाय्यक धर्मादाय आयुक्त (०१), बृहन्मुंबई विभाग, महाराष्ट्र राज्य, मुंबई ४०००१८
-इनके समक्ष डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य'' नागपुर इन्होंने दिनांक ३०/११/२०१८ को किये गये शिकायत पर,
चल रही सुनवाई में सादर किया हुआ "लिखित युक्तिवाद" ( Written Notes of Argument)...!

शिकायत क्रमांक - १८४६/१८
सुनावणी दिनांक - ०२/०३/२०१९

शिकायतकर्ता: डॉ. मिलिंद पं. जीवने
             ५८४, जीवक सोसायटी परिसर
             नया नकाशा, स्वस्तिक स्कुल के पास
             लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७ म. रा.
             मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
              ई मेल -  dr.milindjiwane@gmail.com

गैर अर्जदार: -
१. राजरत्न अशोक आंबेडकर(स्वयं घोषित अध्यक्ष) - जी २२६, दुसरी मंजील, बी एम सी बिल्डिंग, स्टेशन रोड, भांडुप (पश्चिम), मुंबई ४०००७८ मो. न. ७६६६७६१३५८
२. चंद्रभान उर्फ चंद्रबोधी पाटील(स्वयं घोषित अध्यक्ष) ३/४, इंशा हटमेंट, आजाद मैदान, फोर्ट, मुंबई ४००००१ मो. न. ७५०७६६४८६
३. विश्वनाथ शामराव मोखले(स्वयं घोषित अध्यक्ष) ब्लॉक न. डी / ७, भीमकृपा सी एच एस, भवानी नगर, मुरबाड रोड, कल्याण (पश्चिम) जिला - ठाणे
४. आसाराम नारनवरे(स्वयं घोषित अध्यक्ष) नागसेन नगर, भीम चौक के पास, नागपुर ४४००२६
५. मीराताई यशवंत आंबेडकर(स्वयं घोषित अध्यक्ष) एवं भीमराव आंबेडकर(स्वयं घोषित कार्याध्यक्ष) १७/ए, डॉ. आंबेडकर भवन, गोकुळदास पास्ता रोड, दादर, मुंबई ४०००१४
निवास - राजगृह, हिंदु कॉलोनी, दादर (पुर्व) मुंबई ४०००१४

महोदय,
उपरोक्त विषय संदर्भ में आप का पत्र क्र. जसअ/९८८/१९ दिनांक ०२/०२/२०१९ अंतर्गत मुझे, दिनांक ०२/०३/२०१९ को दोपहर ३.०० बजे सुनवाई के लिए मुंबई बुलाया गया. अत: मैने "दि बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया " के स्वयं घोषित अध्यक्षों द्वारा किये गये गैर प्रकार के सबूत, आपके सामने प्रस्तुत किये है. साथ ही मेरे Written Notes of Arguments दे रहा हूँ ....!

१. भारतीय संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने " दि बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया " - इस धार्मिक संघटन का पंजीकरण ४ मई १९५५ को, समस्त भारतीय बौध्दिक के हित को ध्यान में रखते हुये, " महाराष्ट्र सोसायटी एक्ट  १८६०" के अधीन कर, "मेमोरंडम ऑफ असोशिएशन एवं नियमावली " भी उसी कानून के अधीन मंजुर की थी, तथा ओरिजिनल संविधान में "पॅरा IV एवं पॅरा IX" अंतर्गत सभी भारतीय बौद्धों को सभासद बनने का अधिकार दिया था. पंरतु तत्कालीन संस्था के पदाधिकारी वर्ग में अपने स्वार्थवश " सदर सोसायटी का पंजीकरण एवं नियमावली को निरस्त कर, ६ जुलै १९६२" को, सदर नाम से ही धार्मिक संघटन को "दि बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट "अंतर्गत पंजीकरण करवाया. और वे लोग मरते दम तक संस्था के ट्रस्टी बन गये. दुसरे अर्थो में वे संस्था के मालिक बन गयेे और लोकशाही पद्धती से, समस्त भारतीय बौद्धों को सदस्य/पदाधिकारी बनने का अधिकार छिन लिया गया. क्योंकि इस में बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा ओरिजिनल संविधान में लिखे गये General Council को पूर्णत:  हटाया गया. इतना ही नही, समस्त भारत में "दि बुद्धिस्ट  सोसायटी ऑफ इंडिया की कोई शाखाएं स्थापित करने का व कोई पदाधिकारी बनने का, उस ट्रस्ट में कोई प्रावधान ही नही है." भारत में उन लोगों द्वारा स्थापित समस्त शाखाएं ये अनधिकृत दिखाई देती है. यह तो प. पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और समस्त बौद्ध समुदाय के साथ बहुत बड़ा धोखा है. फिर भी यह सब अनैतिक प्रकार को बढ़ावा देने का काम, इन गैर अर्जदार क्र. १ से ५ इन्होंने करने से, वे नये स्किम के नियम क्रमांक ४ अंतर्गत दोषी पाये जाते है. अत: उन सभी स्वयं घोषित पदाधिकारियों की सदस्यता रद्द करते हुये, उन सभी स्वयं घोषितो पर फौजदारी केस करना बहुत ही जरुरी हो गया है. जिसके लिखित सबूत मेरे शिकायत में दिये गये है.

२. जब "दि बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट अंतर्गत - कोई शाखाएं स्थापित करने का व कोई पदाधिकारी बनने का, उस ट्रस्ट में कोई प्रावधान ही नही है," तो इन गैर अर्जदार क्र. १ से ५ इन्होंने किस नियम के आधार पर, स्वयं को राष्ट्रीय अध्यक्ष वा कार्याध्यक्ष घोषित किया है? समस्त भारत में संस्था की शाखाएं खोली है? बौद्ध समुदायों से लाखों रुपये चंदा जमा किया है? समस्त भारत में संस्था के बैंक खाते खोले गये है? संस्था के बैनर के अंतर्गत धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है?  धम्म दीक्षा प्रमाणपत्र वितरित किये है? "अशोक आंबेडकर की मृत्यु ८/१२/२०१७ को होने के उपरांत भी, उनकी सही होनेवाला प्रमाणपत्र भारतीय बौद्धों को दिनांक ८/०३/२०१८ को वितरित किये गये है. इतना ही नहीं, उन पैसों का हिसाब, आपके कार्यालय में वो स्वयं घोषित पदाधिकारी, किस नियम के तहत जमा कर पायेंगे?" यह तो प. पु. बाबासाहेब आंबेडकर और समस्त बौद्ध समुदाय के साथ बहुत बड़ा धोखा है. अत: उन सभी स्वयं घोषित पदाधिकारियों सदस्यता रद्द करते हुये, उन पर फौजदारी केस दाखल करना बहुत जरूरी हो गया है. जिसका सबूत मेरे शिकायत में दिया गया है.

३. महत्वपूर्ण  बात यह कि किसी भी संस्था का "महाराष्ट्र सोसायटी एक्ट  १८६०" के अधिनियम पंजीकरण करने के बाद, सदरहू संस्था को कानूनन  "दि बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट अंतर्गत पंजीकरण " मिल जाता है.  परंतु संस्था यह " महाराष्ट्र सोसायटी एक्ट  १८६०" के अधिन बनाये गये, "मेमोरंडम ऑफ असोसिएशन एवं नियमावली " से चलती है और उस संविधान के अंतर्गत निहित कालावधी खत्म होने के उपरांत, चुनाव कराने की व्यवस्था होती है. परंतु तत्कालीन संस्था के पदाधिकारियों ने तो, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी द्वारा " महाराष्ट्र सोसायटी अॅक्ट १८६०" के अधिन "सदर सोसायटी का पंजीकरण एवं नियमावली को ६ जुलै १९६२ को निरस्त कर, दि बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट अंतर्गत नया पंजीकरण कर डाला." और वे लोग संस्था के मालिक बन बैठे थे. जिसका दुष्परिणाम  पिछले ३५ सालों तक, यह संस्था कोर्ट कचेरी में फसने का कारण रही है. अत: हम सदरहू सोसायटी का "महाराष्ट्र सोसायटी एक्ट  १८६०" के अधिन नियमावली में सुधार करने की मांग करते है. और "दि बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट अंतर्गत मंजूर स्किम को निरस्त करने की मांग करते है." अत: हम संस्था मे निम्न सुधार की मांग करते है.

४. अत: "दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया " में चुनाव प्रक्रिया करने हेतु और " महाराष्ट्र सोसायटी एक्ट " अंतर्गत सुधार/बदल (Amendment) करने हेतु, " दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया " पर, प्रशासक (Administrator) बिठाने की विनंती की जाती है. और निम्न रुप से पदों का निर्माण किया जाए. अध्यक्ष - १ पद, कार्याध्यक्ष - १ पद,  उपाध्यक्ष - ३ पद,  महासचिव - १ पद, सचिव - ३ पद, कोषाध्यक्ष - १ पद और कार्यकारिणी सदस्य - ५ पद, नामोनित सदस्य - २ पद... "ऐसे कुल १७ सदस्यों की केंद्रीय कार्यकारिणी को मंजूरी दी जाए." वही राज्य स्तर पर - जिला स्तर पर - तालुका स्तर पर उसी अनुपात में शाखा के गठन का अंतर्भाव हो. तिन सदस्यीय चुनाव समिती का गठन किया जाएं. जिसमें से एक सदस्य वकिल होना जरूरी है. अन्य दो सदस्य अनुभवी हो, एवं उन तिनों में सें एक सदस्य प्रभारी सदस्य हो. जो सभी चुनाव प्रक्रिया का व्यवहार कर सके. "यह चुनाव प्रक्रिया हेतु राष्ट्रीय/राज्य/जिला/तालुका स्तरीय अधिवेशन में, यह कार्यकारीणी गठित हो. सदस्यता यादी बनाने का दायित्व संबंधित कार्यकारिणी का रहेगा." वह यादी चुनाव समिती को सादर की जाएगी. जिस पर सदस्यों की आपत्ती हेतु नोटीस बोर्ड पर प्रकाशित की जाएगी. और अंतिम निर्णय चुनाव समिती का रहेगा. "सदस्य के प्रकार भी चार प्रकार के होंगे. १. देणगीदार सदस्य २. आजीवन सदस्य ३. साधारण सदस्य ४. सहयोगी सदस्य." संबंधित हर सदस्य के फी राशी का निर्धारण भी बौद्ध विद्वान या बौद्ध भिख्खू के साथ साथ विचार विमर्श करते हुये लेना, उचित होगा. सहयोगी सदस्य यह चुनाव में खडा रह नही सकेगा. परंतु उसे मत देने का अधिकार होगा. "चुनाव हर पाच सालों में होगा." कुछ कारणवश हुये रिक्त पद भरने का अधिकार, संबंधित कार्यकारिणी का होगा. तथा दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया को दिशा आदि देने के लिए, "९ सदस्यीय सल्लागार समिती " का गठन हो, जिसमें से एक व्यक्ति प्रभारी रहे. ता कि उस समिती का उचित व्यवहार हो सके. " उपरोक्त सभी का अंतर्भाव करने हेतु Society Act के तहत,  ना कि The Bombay Public Trust Act के स्किम तहत... अत: दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया में, सुधार ( Amendment) की मांग की जाती है." क्योंकि इस संघटन का निर्माण बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी ने, सोसायटी एक्ट के तहत किया था. महत्त्व की बात यह कि, सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकरण करने से, BPT Act का भी पंजीकरण मिल जाता है. परंतु नियम यह सोसायटी एक्ट के ही लागू होते है. ताकि, यह बौद्धों का समूह/सोसायटी राष्ट्र निर्माण एवं योग्य समाज निर्माण में अपना दायित्व निभाए...!

-मै बौद्ध समाज का एक घटक होने के रुप में, यह मांग कर रहा हूँ जो मेरा अधिकार है.

नागपुर
दिनांक २५/०२/२०१९
                                                        आपका,
                                    डॉ. मिलिन्द पं. जीवने

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डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर इन्हें मा. सहाय्यक धर्मादाय आयुक्त (०१), बृहन्मुंबई विभाग, वरली मुंबई का पत्र मिलने के पश्चात "६ पेज की याचिका एवं ६१ पेज के डाकुमेंट्स और सबुत (कुल - ६७ पेजेस)" की याचिका भेजी गयी. और उपरोक्त लिखित युक्तिवाद यह उसी आधार पर, धर्मायुक्त को सादर किया गया है. ६१ पेजेस की वह अनुक्रमणिका इस प्रकार है.

* दस्तऐवजों की सुचीं

१. सोसायटी की ओरीजनल मेमोरेंडम की प्रत
२. सोसायटी की ओरीजनल नियमावली की प्रत
३. बीपीटी एक्ट अंतर्गत आयुक्त का पारीत आदेश प्रत
४. बीपीटी एक्ट अंतर्गत मंजुर नयी स्किम प्रत
५. सोसायटी की ओरीजनल बाय लॉज की मराठी प्रत
६. सोसायटी के ओरीजनल अॅक्ट अधिन कोरम जानकारी प्रत
७. भिमराव आंबेडकर - चंद्रबोधी पाटील का कार्यक्रमों में सहभागी पत्रक
८. मीराताई आंबेडकर द्वारा दी गयी दान रसिद
९. अशोक आंबेडकर के श्रध्दांजली सभा की नोटीस
१०. राजरत्न आंबेडकर द्वारा स्वयं को अध्यक्ष घोषित सभा पत्रक
११. राजरत्न आंबेडकर के सही के कोरे धम्म दीक्षा प्रमाणपत्र
१२. राजरत्न आंबेडकर द्वारा बैक मे पैसे भरने की जानकारी
१३. राजरत्न आंबेडकर द्वारा दी गयी दान रसिद
१४. राजरत्न आंबेडकर ने बैंक में जमा किये पैसों की स्लीप
१५. राजरत्न आंबेडकर का धम्म दीक्षा समारोह पत्रक
१६.  -"-
१७. राजरत्न आंबेडकर द्वारा की गयी पदाधिकारी नियुक्ती पत्रक
१८. चरणदास नगराला का ग्रुप में डाला हुआ पत्रक
१८अ. अशोक आंबेडकर मरने के पश्चात उनके और राजरत्न के सही का धम्म दीक्षा प्रमाणपत्र
१९. राजरत्न आंबेडकर का WFB Thailand में नियुक्ती का पत्रक
२०. बंडू रामटेके द्वारा प्रकाशित राजरत्न आंबेडकर का पत्रक
२१. चंद्रबोधी पाटील को विदेश बोलावे का पत्र
२२. चंद्रबोधी पाटील द्वारा आयोजित अस्तिधातु कार्यक्रम पत्रक
२३. चंद्रबोधी पाटील द्वारा आयोजित जागतिक धम्म परिषद पत्रक
२४. चंद्रबोधी पाटील द्वारा दी गयी दान रसिद
२५. चंद्रबोधी पाटील द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन पत्रक
२६. चंद्रबोधी पाटील द्वारा प्रकाशित पत्रक
२७. व्ही एम मोखले द्वारा स्वयं को अध्यक्ष घोषित पत्रक

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 आज दिनांक २/०३/२०१९ ला नवनाथ खांडेकर, एल.के. धवन गुरुजी, सदाशिव कांबळे ह्यांनी सहा. धर्मादाय आयुक्त ह्यांचे कडे "सह-तक्रारदार" म्हणून अर्ज दाखल केला.
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प्रिय धम्म मित्रो....!
      हमारा सदर याचिका डालने का उद्देश, यह किसी पदाधिकारी वर्ग को बदनाम करना या अपना नाम कमाना, यह बिलकुल ही नही है." सदर "लिखित युक्तीवाद" पढने के उपरांत, आप समझ गये होंगे कि, "हमारा उद्देश्य केवल उन पदाधिकारी वर्ग को इकठ्ठा लाना", तथा संस्था में सुधार कर, "सोसायटी अॅक्ट के अधिन संस्था को लाना है." दि बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट के तहत, तत्कालीन ट्रस्टीओं ने, "सोसायटी अॅक्ट के मेमोरेंडम तथा नियमावली" को निरस्त करने से, संस्था का आज का गंभिर विवाद, हमे कारक दिखाई देता है. अत: हमे बीपीटी अॅक्ट अंतर्गत स्किम को निरस्त कर, " सोसायटी अॅक्ट के अंतर्गत नयी नियमावली को बनाना" यह एकमेव उपाय है. और "लिखित युक्तिवाद" मे लिखे गये पॅरा ४ को लागु करना भी जरुरी है. इसके पहले के हमारे प्रयासो़ को, वे स्वयं घोषित पदाधिकारी वर्ग, कोई तवज्जो नही देते थे. और वे अपने मदमस्ती में रहने के कारण, हमे कानुन की सहारे "संस्था को सशक्त और एकसंध बनाना," यह एकमात्र उपाय हमे दिखाई दिया है.
     अगर वे सभी पदाधिकारी वर्ग, उपरोक्त बिंदुओं से सहमत हो तो, उन सभी पदाधिकारी वर्ग को, हमे साथ लेकर, नागपुर में "कुछ मान्यवर बौद्ध विद्वान - वकिल साथी - तथा कार्यकर्ता को निमंत्रित कर, एक बडे "सहभाग सत्र" का आयोजन किया जा सकता है."  जहां सभी बैठकर मध्यम मार्ग से, संस्था को दिशा देने का, एक अच्छा धोरण बनाया जाएगा...! इस मिशन में जो भी मान्यवर, वकिल साथी, कार्यकर्ता हम से जुड़ा चाहते है, वे हम से संपर्क करें...!!!

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