Friday, March 22, 2019

होली

होली 
रंगों के त्यौहार' के रूप होली मनाने में कोई आपत्ति नहीं हैं. किन्तु इसमें जो पौराणिक कथानक जोड़ा गया है, दिक्कत उससे है, सड़ांध उससे आती है . दरअसल, त्यौहार समाज के इतिहास और संस्कृति को बतलाते हैं. वे उन आदर्शों को रेखांकित करते हैं, जिन्हें वह मानता और तदनुरूप आचरण करता है. 

दुर्भाग्य से हिन्दुओं के आदर्श, उनके महापुरुष, उनके त्यौहार;  दलितों को अपमानित करते हैं, प्रताड़ित करते हैं और उन्हें घृणित बतलाते हैं जबकि, दूसरी ओर, ब्राह्मण को 'भूदेवता' सिद्ध करते हैं,  पूज्य बतलाते हैं ! अगर दैत्य,  'राक्षस' आदि के कथानक काल्पनिक भी मान लिए जाएँ तो आए दिन जो दलितों के साथ होता है, वह क्या है, क्यों है ? 

क्या हिन्दुओं के आचार-विचार अपने उन आदर्शों से अभिप्रेरित नहीं हैं ? क्या दलित या किसी स्त्री को जिन्दा जलाने में उनके ये पौराणिक आदर्श उन्हें आवश्यक बल प्रदान नहीं करते ? क्या एक आम हिन्दू को अपनी खुद की बीबी के चरित्र पर संदेह करते समय, उनके आदर्श पुरुष भगवान राम का सीता वाला कथानक उसे बल प्रदान नहीं करता ?

आज, मुसलमानों के विरुद्ध घृणा फैलायी जा रही है। इतनी घृणा हिन्दुओं में कहाँ से आ रही है ? कौन है इसका स्रोत ?  कुछ प्रगतिशील हिन्दू इसका विरोध करते हैं तो उन्हें गोलियों से भून दिया जाता है ? एक समाज के आदर्श पुरुष दूसरे समाज के विरुद्ध घृणा कैसे फैला सकते हैं ?  - अ ला ऊके  @amritlalukey.blogspot.com

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