Sunday, March 3, 2019

बामसेफ

BAMCEF से अभिप्राय: 

B से बैकवर्ड,
A
से एंड,
M
से माइनरटीज,
C
से कम्युनिटी,
E
से इम्प्लाइज,
F
से फेडरेशन !

बैकवर्ड का मतलब होता है सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, और राजनीतिक रूप से पिछड़ा होना, तो बैकवर्ड शब्द में ही ओबीसी, एससी, एसटी तीनों की गणना की जाती है।
माइनरटीज में मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध, क्रिश्चियन, लिँगायत आदि धर्मपरिवर्तित अल्प संख्यक जातियों को लिया गया है। बामसेफ ओबीसी, एससी, एसटी एवं धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक समाज से आनें वाले सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन है। बामसेफ संगठन की खासियत यह है कि यह अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन होते हुए भी इनके व्यक्तिगत लाभ के लिए काम न करके उस समाज के हकअधिकार की लड़ाई लड़ रहा है, जिस समाज से ये अधिकारी एवं कर्मचारी लोग आते हैं। बामसेफ अधिकारियों एवम् कर्मचारियों का संगठन होने के कारण गैर-राजनैतिक, असंघर्षशील तथा सभी धर्मों के लोग जुड़े होने के कारण गैर-धार्मिक संगठन है।

Image may contain: 1 person, sitting

बामसेफ संगठन के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब बनाये गए थे। साथियों जब बामसेफ का गठन किया गया था, उस समय यह तय हुआ था कि 20 वर्षों तक बिना किसी राजनीतिक पार्टी का गठन किये हुए हम लोग केवल मूलनिवासी समाज को जगाने का कार्य करेंगे। लेकिन बिना संघर्ष किये हुए अधिकार मिल नहीं सकते, इसलिए 3 वर्ष बाद डीएस 4 नामक लड़ने वाले संगठन का निर्माण किया गया।

डीएस 4 का ही नारा था ठाकुर, बाभन, बनियाँ छोड़ बाकी सब हैं डीएस 4 था इसके गठन के तीन साल बाद ही मान्यवर कांशीराम साहब नें 1984 में बसपा नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया।

चूँकि मूलनिवासी समाज उस समय पूर्ण रूप से जागृत नहीं हो पाया था। इसलिए बसपा नें अविकसित बच्चे की तरह जन्म लीया। जब बसपा नामक पार्टी बनीं तो मान्यवर कांशीराम साहब इसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। जब मान्यवर कांशीराम साहब बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें तो उन्होंने बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिए।

साथियों ऐसी घटना घटित होनें के कारण जब हमारी बसपा के रूप में राजनैतिक क्रांति शुरू हुई तो बामसेफ रूपी सामाजिक क्रांति कमजोर पड़ गई। मान्यवर कांशीराम साहब नें बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से त्याग पत्र इस लिए दिया क्योंकि कोई भी राजनीतिक व्यक्ति बामसेफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बन सकता है।

तो बामसेफ के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर डी.के. खापर्डे साहब को बनाया गया। काफी मेहनत करके मान्यवर डीके खापर्डे साहब नें सामाजिक क्रांति को जगाने का कार्य किये। इसी बीच बामसेफ के तीसरे संस्थापक सदस्य मान्यवर दिनाभाना साहब हमारे बीच नहीं रहे। मान्यवर दिनाभाना साहब की पत्नी सुमन दादी अब भी बामसेफ में समर्पित होकर व्यवस्था परिवर्तन करनें के अपनें पति के सपनों को साकार करनें में लगी हुई हैं।

अब वर्तमान में; बामसेफ के तीसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर वामन मेश्राम साहब नें अपनें अथक प्रयास द्वारा बामसेफ संगठन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संगठन बना दिए हैं। वर्तमान में बामसेफ नें अपनें 55 सहयोगी संगठनों का निर्माण कर बामसेफ की ताकत को कई गुना बढ़ानें का कार्य किया है।
साथियों मूलनिवासी समाज के प्रत्येक महापुरुषों नें स्वयं द्वारा की गई गलतियों को स्वीकार किया है। ऐसे लोगों नें अपनी गलती इस लिए स्वीकार किये हैं कि हमारी आगे आने वाली पीढ़ी उस गलती को दुबारा न दुहराये।

बाबा साहब जैसे महान व्यक्ति नें भी अपनी गलती स्वीकार की है कि मैनें अपनें समाज के लिए पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी लेकिन एक गलती मैनें भी की जो दूसरा अम्बेडकर पैदा नहीं किया। जो हमारे मिशन को आगे ले जानें का कार्य करता।

इसी प्रकार, मान्यवर कांशीराम साहब नें भी अपनी गलती को स्वीकार किया है कि मैनें हाँथी (बसपा, राजनीतिक पार्टी) तो पैदा कर दिया और खुद हाँथी बन बैठा और महावत (बामसेफ) का पद छोड़कर महावत पैदा करना छोड़ दिया। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, मुझे महावत ही बनें रहना चाहिए था। जिससे हाँथी को कण्ट्रोल कर सकता।

साथियों मान्यवर वामन मेश्राम साहब नें इन महापुरुषों द्वारा महशूस की गलतियों से सबक लेते हुए संकल्प लिया है की मैं स्वयं हाँथी कभी नहीं बनूगां। मैं केवल महावत का ही काम करूँगा और मूलनिवासी समाज में इतना मजबूत नेतृत्व पैदा कर दूँगा कि आने वाले समय मे मूल निवासी समाज अपनी खोयी हुयी सत्ता वापस प्राप्त कर सके। ताकि आने वाली पीढी के हक-अधिकार सुरक्षित रह सके।
--------------------------------
वामन मेश्राम गुट के लोगो को ये तथ्य जानने की जरूरी है कि आपने 1987 में बामसेफ को रजिस्टर्ड तो करवा लिया, पर ओ कोनसी वजह थी , जिससे सबसे पहले तेजिंदर सिंह झल्ली अलग हुआऔर नई बामसेफ बनाई , उसके बाद बी. डी. बोरकर अलग हुआ और नई बामसेफ बनाई, उसके बाद पानतावने अलग हुआ और नई बामसेफ बनाई , उसके बाद मधुकर मेश्राम अलग हुआ और पी एस आई  (peolpe social institute) बनाई । और भी कई लोगो का बामसेफ से अलग होने का सिलसिला थमा नहीं । क्या कारण थे ? लोग जानना चाहते है इनकी वजह ।


मा दीना भाना साहब(28 फरवरी 1928 - 29 अगस्त 2006)
Image may contain: 1 personबहुजन नायक मान्यवर कांशी राम साहब के साथ बामसेफ संगठन के स्थापना मे महत्वपूर्ण योगदान करने वाले और बामसेफ के संस्थापको मे शुमार मा दीना भाना साहब का आज जन्म दिन है। पुणे रक्षा प्रतिष्ठान की एक घटना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योकि इस घटना ने मा कांशीराम साहब और मा खापर्डे साहब के मन एक अखिल भारतीय संगठन का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। नेगोशिएबल इन्स्ट्रुमेंट ऐक्ट 1881 के अनुसार, संस्थान के प्रमुख को कैलेंडर वर्ष प्रारम्भ होने के पूर्व में संस्थान की सभी यूनियनों की बैठक करके पूरे वर्ष के लिए छुट्टियां तय करना होता है। तदनुसार पुणे रक्षा संस्थान के प्रमुख ने बैठक बुलाई। छत्तीस वर्ष के एक व्यक्ति ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ का प्रतिनिधित्व किया। अन्य दूसरी सभी यूनियनों जिनमे से ज्यादातर का प्रतिनिधित्व ब्राह्मणों द्वारा किया जा रहा था, ने या तो अपने पूर्वजों की जयंती पर या हिंदू, ईसाई और इस्लामी त्योहारो के अवसरों पर छुट्टियों के लिए अनुरोध किया। बैठक के कार्यवाही 'मिनट रजिस्टर' में दर्ज कि गई और हर किसी को रजिस्टर में हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया। जब इस आदमी (अर्थात चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ के प्रतिनिधि) की बारी आई, तो उन्होने रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। जब संस्थान के प्रमुख ने पूछा कि वह रजिस्टर मे हस्ताक्षर क्यों नहीं कर रहें है तो वे बोले कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ के सदस्यो के लिए छुट्टियाँ घोषित करने के बारे मे उनसे पूछा ही नहीं गया। उन्होंने कहा कि वह 14 अप्रैल, जो कि डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का जन्मदिन है के अवसर पर छुट्टी चाहते है। संस्थान प्रमुख, जो एक महाराष्ट्रियन ब्राह्मण था, ने कहा कि तुम महाराष्ट्रियन नहीं हो, तुम्हें डॉ आंबेडकर से क्या लेना है? उस आदमी ने कहा कि, वह मेरे बाबासाहेब है और मैं रजिस्टर मे हस्ताक्षर नहीं करूंगा, जब तक कि डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के जन्मदिन पर छुट्टी घोषित नहीं की जाती है। उनको धमकी दी गई कि या तो रजिस्टर मे हस्ताक्षर करो वरना सेवा से हटा दिया जाएगा। संस्थान प्रमुख की धमकी के वावजूद भी वह आदमी नहीं झुका और कहा कि जो करना है करो लेकिन मै ऐसे हस्ताक्षर नहीं करूंगा। उन्होंने बैठक छोड़ दिया और मा खापर्डे साहब से मुलाकात की और उनको पूरी घटना सुनाई। मा खापर्डे साहब ने उनको मा कांशीराम के पास लेकर गये। तीनों ने मिलकर संघ की ताकत के साथ एकजुट होकर प्रबंधन के साथ लड़ाई लड़ी और डॉ बाबासाहेब अंबेडकर के जन्मदिन पर छुट्टी घोषित करवाई और बाकी इतिहास है जिसने कि बामसेफ के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। वह आदमी कोई और नहीं, मा दीना-भाना साहब ही थे जो अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए पूरे साहस के साथ प्रबंधन के विरोध मे खड़े हुये। वह हम सभी के लिए एक प्रेरणाश्रोत है। हम उनके जन्म दिन पर आज उनको याद करते है और नमन करते है और शपथ लेते है कि उनके द्वारा चलाये गए मिसन को हासिल करने के लिए अपना तन मन धन अर्पित कर देंगे। बामसेफ संगठन ने दीना भाना साहब के जीवन एवं बिचार के ऊपर एक पुस्तक प्रकाशित की है
बामसेफ संगठन के संस्थापक सदस्य मा यशकाई डी के खापर्डे साहब का परिनिर्वाण 29 फरवरी 2000 को पुना मे हुआ। बामसेफ संगठन को संस्थागत बनाने मे खापर्डे साहब का योगदान बेमिशाल है। बामसेफ संगठन के गठन से लेकर अपने परिनिर्वाण तक खापर्डे साहब बामसेफ को फुले-अंबेडकरी विचारधारा का मिशनरी संगठन बनाने मे पूरी मेहनत एवं ईमानदारी के साथ पूरे जी जान से लगे रहे। हम डी के खापर्डे साहब के परिनिर्वाण दिवस पर आज उनको याद करते है और नमन करते है और शपथ लेते है कि कि उनके द्वारा चलाये गए मिसन को हासिल करने के लिए अपना तन मन धन अर्पित कर देंगे। यशकाई डी के खापर्डे साहब की याद मे बामसेफ श्री डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट का गठन वर्ष 2001 मे बामसेफ द्वारा किया गया। ट्रस्ट का उद्देश्य मूलनिवासी बहुजन समाज मे जन्मे महापुरुषों द्वारा पोषित सामाजिक क्रांति के लिए आवस्यक मानव संसाधन को प्रशिक्षित करना और भौतिक संसाधनों को प्रदान करना है।
यशकाई डी. के. खापर्डे (13 मई 1939-29 फरवरी 2000)
बामसेफ संगठन के संस्थापको मे से एक यशकाई डी. के. खापर्डे का जन्म 13 मई 1939 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनकी पूरी शिक्षा नागपुर में ही हुई थी। पढाई के बाद उन्होंने डिफेन्स में नौकरी ज्वाइन कर ली थी। नौकरी के दौरान जब वे पुणे में थे, तभी माननीय दीना भाना और मान्यवर कांशीराम उनके सम्पर्क में आये। माननीय दीना भाना ने मान्यवर कांशीराम जी को यशकाई डी के खापर्डे से मिलवाया था फिर खापर्डे साहब ने ही मान्यवर कांशीराम को डा. आंबेडकर और उनके आन्दोलन के बारे में विस्तृत रूप से बताया था और बाबा साहब की लिखी प्रसिद्ध पुस्तक जाति भेद का उच्छेद (Annihilation of Caste) पढ़ने के लिए दी। इन तीनों महापुरुषों ने समाज के अन्य जागरुक साथियो के साथ मिल कर विचार किया कि अनुसूचित जतियों/ अनुसूचित जन जतियों और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग और उनसे धर्मांतरित अल्पसंख्यक समाज का अखिल भारतीय स्तर पर एक 'थिंक टेंक' होना चाहिए जिसमें इस समाज के नौकरी पेशा कर्मचारी और अधिकारी हों और जो लम्बी प्लानिंग के साथ मूलनिवासी बहुजन समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए, 'फुले-अम्बेडकरी विचारधारा' के तहत सामाजिक चेतना का काम करे। इसी के तहत ये तीन महापुरुषो ने समाज के और जागरूक साथियों के साथ मिलकर समाज की गैर राजनैतिक जड़े अर्थात सामाजिक जडे मजबूत करने के लिए बामसेफ की अवधारणा 6 दिसम्बर 1973 को पूना मे किया और 6 दिसम्बर 1978 को दिल्ली मे इसे मूर्त रूप दिया और तय किया कि “बामसेफ को समाज के दिमाग (Brain) का काम करना चाहिए और समाज से गाइड होने के बजाय उन्हे समाज को गाइड करना चाहिए”।
बाद मे इसी संगठन से 1981 मे डीएस-4 का जन्म हुआ। इसके बाद मान्यवर कांशी राम ने 1984 राजनीति के क्षेत्र मे कदम रखा और तब खापर्डे साहब और मान्यवर कांशीराम मे मतभेद हो गया। जहा मान्यवर कांशीराम ने, राजनीति को महत्व दिया कि राजनीतिक सत्ता समस्त सामाजिक प्रगति की कुंजी है। वही खापर्डे साहब और मान्यवर कांशीराम साहब के कुछ अन्य साथी इस सोच के थे कि पहले सामाजिक आन्दोलन को इतना सशक्त बनाया जाये कि उसकी परिणति, जो निश्चित रूप से व्यवस्था परिवर्तन है, को रोका न जा सके। इसके बाद मान्यवर जहां आजीवन राजनीति के क्षेत्र मे सक्रिय रहें वही खापर्डे साहब अपने जीवन के अंतिम क्षणो तक सामाजिक आंदोलन को स्थापित करने और उसे मजबूत करने के प्रति आजीवन समर्पित रहे। यद्द्पि कि दोनों आंदोलनो का उद्देश्य व्यवस्था परिवर्तन है।
खापर्डे साहब के सामाजिक आंदोलन के महत्व को बाबा साहब के कथन से समझ सकते है जैसा कि बाबा साहब ने कहा है कि “राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक समाज सुधारक जो सामाजिक अत्याचार को चुनौती देता है वो राजनीतिक अत्याचार करने वाली सरकार को चुनौती देने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं -Political tyranny is nothing compared to the social tyranny and a reformer who defies society is a more courageous man than a politician who defies Government.”
यशकाई डी. के. खापर्डे ने 1987 मे अपने समान विचारधाराओं के साथियों के साथ व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य को लेकर को स्वतन्त्र रूप से बामसेफ को चलाने की योजना बनायीं और उन्होंने डिफेन्स की अपनी नौकरी से रिजाइन कर दिया। तब से, उन्होंने अपना पूरा समय संगठन को दिया और उनके नेतृत्व में देश के कोने-कोने में कैडर केम्प आयोजित किये गए और संगठन के लिए काम करने वाले कार्य-कर्ता का एक बड़ा नेट वर्क तैयार किया। मैंने भी 1998 मे उनका दो दिवसीय कैडर कैंप जो वाराणसी शहर मे आयोजित किया था मे सहभाग लिया। लोग पूछते थे कि बामसेफ ने क्या किया तो खापर्डे साहेब का उत्तर था कि “ऐसा मानव संसाधन तैयार करना जो की फुले-आंबेडकर की विचार धारा के अनुरूप सोच सके, अपने आप मे रिवोलुसन है और बामसेफ यही कार्य अपने स्थापना काल से सफलता पूर्वक कर रहा है और देश मे बहुत से लोगो को तैयार किया है जो आज समाज जीवन मे घटने वाली दिन-प्रतिदिन की घटनाओ की व्याख्या फुले-अंबेडकरी विचारधारा से कर रहें है।“ नि;संदेह, बामसेफ ने सामाजिक आन्दोलन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है और खास कर नौकरी-पेशा एससी, एसटी, ओबीसी, और इनसे धर्मांतरितअल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारी-अधिकारीयों को पे बैक टू सोसायटी के लिए एक मंच दिया है। बाबा साहेब डा. आंबेडकर ने इन नौकरी-पेशा लोगों से जो अपेक्षा की थी, उस अपेक्षा पर यह संगठन काम रहा है और इसके लिए खापर्डे साहेब का योगदान महान है और निश्चय ही स्मरणीय है।
व्यवस्था परिवर्तन के बारे मे खापर्डे साहब ने 1996 मे बामसेफ के 13वे राष्ट्रीय अधिवेशन मे बोलते हुये बताया कि “व्यवस्था परिवर्तन का मतलब क्या है? व्यवस्था परिवर्तन मतलब देश की सत्ता संरचना मे बदलाव। सत्ता संरचना का स्वरूप न बदलने से व्यवस्था परिवर्तन नहीं हो रहा है। यह सब कैसे होगा? इसके लिए सबसे जरूरी है सामाजिक परिवर्तन, उसके बाद राजनीतिक परिवर्तन और अंत मे व्यवस्था परिवर्तन। यही व्यवस्था परिवर्तन का क्रम है। सामाजिक परिवर्तन का मतलब है जिन शोषित और शासित जातियो को व्यवस्था परिवर्तन चाहिए उनमे आपसी संबंधो का पुनर्निर्धारण और पुनर्स्थापना करना। ब्राह्मण-वाद एक व्यवस्था है और उसकी एक विचार धारा है, जिसके आधार पर यह व्यवस्था खड़ी है। अतः ब्राह्मण-वाद की व्यवस्था को बदलना है तो अपने लोगो कि विचार धारा बदलनी होगी। ब्राह्मण-वादी विचार धारा के अनुसार शोषित एवं शासित जातियो के आपसी संबंध आज निर्धारित है। इसका आधार है क्रमिक असमानता। जब तक इन शोषित एवं शासित जातियो के आपसी संबंधो मे, जो क्रमिक असमानता के आधार पर बने हुये है, बदलाव लाकर यह संबंध समानता के आधार पर स्थापित नहीं होते तब तक सामाजिक परिवर्तन नहीं हो सकता। और जब तक सामाजिक परिवर्तन नहीं होगा तब तक राजनीतिक परिवर्तन नहीं होगा। क्योकि इस गैरबरबरी की वजह से शोषितो एवं शासितो का राजनीतिक आचरण अलग-अलग और कभी-कभी तो परस्पर विरोधी होता है। इस आपसी सामाजिक संबंधो के पुनर्निर्धारण और पुनर्स्थापना से शोषित एवं शासित जातियां एक समाज के रूप मे उभर पाएँगी और तब इंका राजनीतिक आचरण एक जैसा होगा। इससे राजनीतिक परिवर्तन होगा और इसके उपयोग एवं प्रयोग से व्यवस्था परिवर्तन होगा।
व्यवस्था परिवर्तन के लिए चार पूर्व शर्ते है। जब तक यह पूर्व शर्ते पूरी नहीं होती व्यवस्था परिवर्तन मुमकिन नहीं है। सबसे पहली पूर्व शर्त है जिन शोषित और शासित जातियो को व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है उनका एक समान उद्देश्य (Common Objective) होना। आज उनका समान उद्देश्य नहीं है, यह एक कड़वी सच्चाई है। दूसरी पूर्व शर्त है एक विचारधारा (Common Ideology) और यह विचारधारा गांधीवाद, लोहिया वाद, साम्यवाद या मार्क्स वाद नहीं हो सकती है। केवल फुले-अंबेडकरवाद ही हो सकती है। शोषित और शासित जातियो की अभी देश मे एक विचारधारा बनी नहीं है लेकिन बनने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। इन जातियो को हर हाल मे फुले-अंबेडकरवाद की विचारधारा पर लाना होगा। तीसरी पूर्व शर्त है इन जतियों मे लीडरशिप निर्माण करना। इसमे भी जो जतियां ज्यादा पिछड़ी है, अत्याधिक पिछड़ी है जैसे कि अनुसूचित जतियां/ जनजतियां और MBC(Most Backward Caste-अति पिछड़े वर्ग) मे नेतृत्व का निर्माण करना। आज इस समाज मे बहुत से नेता है लेकिन वे व्यवस्था परिवर्तन के लिए कार्यरत नहीं है। और आखिरी शर्त है अनुसूचित जतियों जतियों और अन्य पिछड़े वर्ग का ध्रुवीकरण। एससी (SC) और ओबीसी(OBC) के ध्रुवीकरण का शेष शोषित और शासित जातियो पर जैसे जनजातियों आदि पर असर होता है और वह जातियाँ इस ध्रुवीकरण मे शामिल हो जाती है धर्मांतरित अल्पसंख्यक लोग भी इस ध्रुवीकरण से न केवल प्रभावित होते है बल्कि उनकी यह मांग भी है। इस ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा परिणाम सत्ता संरचना पर होता है। जो शोषक और शासक जातियाँ आज सत्ता संरचना को नियंत्रित कर रही है इस ध्रुवीकरण से सत्ता संरचना पर से उनका नियंत्रण हट जाता है। और सत्ता संरचना पर शोषित और शासित जातियो का नियंत्रण स्थापित हो जाता है। सत्ता संरचना समाज संरचना का प्रतिबिंब मात्र है।“
आज राजनीतिक सत्ता मे बड़े पैमाने पर ओबीसी के लोग आयें है लेकिन फिर भी व्यवस्था परिवर्तन नहीं हो रहा है क्योकि इस राजनीतिक सत्ता का प्रयोग व्यवस्था बदलने के लिए नहीं बल्कि उसे कायम रखने के लिए ही किया जा रहा है। खापर्डे साहब का मानना था कि विचार में परिवर्तन हुए बिना आचरण में परिवर्तन संभव नहीं है और यदि विचार में परिवर्तन नहीं होता है तो हमारा आदमी भी यदि पोजीसन ऑफ़ पावर पर पहुचता है तो वह ब्राह्मणवादी एजेंडा को ही आगे बढ़ाने में लगा रहता है.
खापर्डे साहब ने कार्य कर्ताओ के बारे मे बोलते हुये बताया कि कार्य कर्ताओ का जीवन खुले आईने की तरह स्वच्छ/ट्रांस्परेंट होना चाहिए और उनमे सामूहिक चरित्र का निर्माण होंना चाहिए। अगर अपना आचरण हम छुपाने का प्रयास करते है तो हमारे आस-पास के लोग उतने ही अधिक तेज स्वरूप से हमारे अंदर झाकने का प्रयास करते है। इस लिए कर्ताओ का जीवन खुले आईने की तरह साफ होना चाहिए। खापर्डे साहब ने बताया कि फुले-अंबेडकरी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने मे तीन बांते आवस्यक होती है
1- बौद्धिक योग्यता 2- ईमानदारी 3- सामाजिक प्रतिबद्धता
उनका यह भी कहना था कि अच्छे विचार, अच्छे गुण और अच्छा चरित्र यह तीन बांते जो लोग खुद मे निर्माण करेंगे वही लोग आंदोलन को चला संकेंगे। आदमी के काबिल होने के साथ उसका ईमानदार होना भी जरूरी है। बेईमान आदमी कितना भी होशियार हो पर कभी-न कभी तो धोखा कर ही देता है।
खापर्डे साहब ने संगठन मे अपने को आगे बढ़ाने कि बजाय योग्य और सक्षम कार्यकर्ताओ को आगे बढ़ाया और उनके नेतृत्व मे खुद एक कार्य करता बन कर पूरे लगन, मेहनत और ईमानदारी के साथ कार्य किया। बामसेफ और उसके सहयोगी सभी संगठन केवल मेरे ही नेतृत्व या नियंत्रण मे चले ऐसा कुत्सित प्रयास उन्होने कभी नहीं किया। संगठन मे व्यक्तिवाद के स्थान पर संस्थागत समूहिक नेत्रत्व मे उनका विश्वास था। बामसेफ संगठन खापर्डे साहब का परिनिर्वाण 29 फरवरी 2000 को पुना मे हुआ।
बामसेफ संगठन यशकाई डी. के. खापर्डे के परिनिर्वाण पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके मिसन को आगे बढ़ाने की प्रेरणा लेता है। उनकी याद मे बामसेफ संगठन नागपुर – अमरावती रोड पर रींगना बाड़ी मे 25 एकड़ के जमीन डी. के. खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट का गठन किया है और वहाँ पर राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले सामाजिक क्रांति संस्थान निर्माण किया है। बामसेफ का कई राष्ट्रीय अधिवेशन डी. के. खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट परिसर स्थिति राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले सामाजिक क्रांति संस्थान मे सम्पन्न हो चुके है। राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले सामाजिक क्रांति संस्थान के प्रशासनिक भवन का निर्माण एवं हास्टल ब्लॉक के प्रथम फ्लोर का निर्माण सम्पन्न हो चुका है। शेष हास्टल ब्लॉक का निर्माण जारी है।

जय भीम – जय मूलनिवासी
www.bamcef.org.in

No comments:

Post a Comment