पालि सुत्तों को संक्षेप में देने का हमारा उद्देश्य धम्म के साथ पालि से परिचय कराना है।
उत्सुक पाठकों से अनुरोध है कि वे बस, इन्हे पढ़ते जाएं-
संसार बिना सिरे का
एक समय भगवान सावत्थि में
एकं समयं भगवा सावत्थियं
अनाथपिंडक के आराम जेतवन में विहार करते थे।
विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे।
वहां भगवान ने भिक्खुओं को आमंत्रित किया -" भिक्खुओं !"
तत्र खो भगवा भिक्खू आमन्तेसि- "भिक्खुओ !"
"भदंत " -कह कर भिक्खुओं ने भगवान को उत्तर दिया।
"भदन्त" इति ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं।
भगवन ने ऐसा कहा-
भगवा एतद वोच-
"यह संसार बिन सिरे के है ।
"अनमतग्गायं भिक्खवे, संसारो।
पूर्व-कोटि का पता नहीं लगता।
पुब्बा कोटि न पञ्ञञायति।
भिक्खुओं! जैसे कोई पुरुष सारे जम्बूद्वीप के
सेय्यथापि भिक्खवे, पुरिसो यं इमस्मिं जम्बुद्वीपे
घास, लकड़ी, डाली, पत्ते को तोड़ कर एक जगह जमा कर दे
तिण कट्ठ साखा पलासं तछेत्वा एकज्झंं संहरित्वा
और चार-चार अंगुली भर के टुकडे करके फैंकता जाए-
चतु अंगुलं चतु अंगुलं घटीकं कत्वा निक्खिपेय्य-
यह मेरी माता हुई, यह मेरी माता की माता हुई
अयं मे माता, तस्सा मे मातुया माता 'ति
उसकी माता, माता की माता का यह सिलसिला समाप्त नहीं होगा
अपरियादिन्नाव भिक्खवे, तस्स पुरिसस्स मातु मातरो अस्सु
किन्तु यह सारे जम्बू द्वीप के
अथ इमस्मिं जम्बुदीपे
घास, लकड़ी, डाली और पत्ते समाप्त हो जाएँगे
तिण्ण कट्ठ साखा पलासं परिक्खयं परियादानं गच्छेय्य
सो क्यों भिक्खुओं !
तं किस्स हेतु ?
क्योंकि यह संसार बिन सिरे के है ।
अनमतग्गोयं भिक्खवे, संसारो।
पूर्व-कोटि का पता नहीं लगता।"
पुब्बा कोटि न पञ्ञञायति।"
स्रोत - तिणकट्ठ सुत्त(14-1-1) : संयुक्त निकाय भाग 1
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अनमतग्ग- जिसके प्रारम्भ(सिरे) का पता नहीं। अपरियादाति - खाली कर देना
-अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com
उत्सुक पाठकों से अनुरोध है कि वे बस, इन्हे पढ़ते जाएं-
संसार बिना सिरे का
एक समय भगवान सावत्थि में
एकं समयं भगवा सावत्थियं
अनाथपिंडक के आराम जेतवन में विहार करते थे।
विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे।
वहां भगवान ने भिक्खुओं को आमंत्रित किया -" भिक्खुओं !"
तत्र खो भगवा भिक्खू आमन्तेसि- "भिक्खुओ !"
"भदंत " -कह कर भिक्खुओं ने भगवान को उत्तर दिया।
"भदन्त" इति ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं।
भगवन ने ऐसा कहा-
भगवा एतद वोच-
"यह संसार बिन सिरे के है ।
"अनमतग्गायं भिक्खवे, संसारो।
पूर्व-कोटि का पता नहीं लगता।
पुब्बा कोटि न पञ्ञञायति।
भिक्खुओं! जैसे कोई पुरुष सारे जम्बूद्वीप के
सेय्यथापि भिक्खवे, पुरिसो यं इमस्मिं जम्बुद्वीपे
घास, लकड़ी, डाली, पत्ते को तोड़ कर एक जगह जमा कर दे
तिण कट्ठ साखा पलासं तछेत्वा एकज्झंं संहरित्वा
और चार-चार अंगुली भर के टुकडे करके फैंकता जाए-
चतु अंगुलं चतु अंगुलं घटीकं कत्वा निक्खिपेय्य-
यह मेरी माता हुई, यह मेरी माता की माता हुई
अयं मे माता, तस्सा मे मातुया माता 'ति
उसकी माता, माता की माता का यह सिलसिला समाप्त नहीं होगा
अपरियादिन्नाव भिक्खवे, तस्स पुरिसस्स मातु मातरो अस्सु
किन्तु यह सारे जम्बू द्वीप के
अथ इमस्मिं जम्बुदीपे
घास, लकड़ी, डाली और पत्ते समाप्त हो जाएँगे
तिण्ण कट्ठ साखा पलासं परिक्खयं परियादानं गच्छेय्य
सो क्यों भिक्खुओं !
तं किस्स हेतु ?
क्योंकि यह संसार बिन सिरे के है ।
अनमतग्गोयं भिक्खवे, संसारो।
पूर्व-कोटि का पता नहीं लगता।"
पुब्बा कोटि न पञ्ञञायति।"
स्रोत - तिणकट्ठ सुत्त(14-1-1) : संयुक्त निकाय भाग 1
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अनमतग्ग- जिसके प्रारम्भ(सिरे) का पता नहीं। अपरियादाति - खाली कर देना
-अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com
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