परलोक के पचड़े
अमेरिकी राजनीतिज्ञ और दार्शनिक कर्नल रॉबर्ट जी इंगरसोल(1833-99 ) अज्ञेय वादी थे। वे पर-लोक के पचड़ों से दूर थे। जिस तरह बुद्ध, पर-लोक को, उससे सम्बंधित चर्चा को, एक अच्छा जीवन जीने के लिए असम्बद्ध मानते थे, कर्नल इंगरसोल भी उसे बेमतलब की और टाइम-पास चर्चा समझते थे। उनका मत था कि चूँकि हम नहीं जानते कि कोई पर-लोक है या नहीं; फिर, इस पर माथा-पच्ची क्यों होना चाहिए ?
कर्नल इंगरसोल के विरोधी, 'तू लोगों का पर-लोक नष्ट करता है', कह कर उसकी आलोचना करते थे। इस पर कर्नल इंगरसोल का उत्तर होता था- 'मैं किसी का भी पर-लोक नष्ट करने नहीं जाता। लेकिन बहुत-से लोग हैं जो गरीब किसानों का, दरिद्र मजदूरों का, अनाथ स्त्रियों और असहाय बच्चों का इह-लोक नष्ट करने पर उतारूं हैं। ऐसे पण्डे-पुरोहितों से, ऐसे पादरियों से, ऐसे मुल्लाओं से मैं उन असमर्थ लोगों के इह-लोक को बचाए रखने का प्रयास करता हूँ(स्रोत- दर्शन, वेद से मार्क्स तक : भदन्त आनंद कौसल्यायन)। प्रस्तुति- अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com
अमेरिकी राजनीतिज्ञ और दार्शनिक कर्नल रॉबर्ट जी इंगरसोल(1833-99 ) अज्ञेय वादी थे। वे पर-लोक के पचड़ों से दूर थे। जिस तरह बुद्ध, पर-लोक को, उससे सम्बंधित चर्चा को, एक अच्छा जीवन जीने के लिए असम्बद्ध मानते थे, कर्नल इंगरसोल भी उसे बेमतलब की और टाइम-पास चर्चा समझते थे। उनका मत था कि चूँकि हम नहीं जानते कि कोई पर-लोक है या नहीं; फिर, इस पर माथा-पच्ची क्यों होना चाहिए ?
कर्नल इंगरसोल के विरोधी, 'तू लोगों का पर-लोक नष्ट करता है', कह कर उसकी आलोचना करते थे। इस पर कर्नल इंगरसोल का उत्तर होता था- 'मैं किसी का भी पर-लोक नष्ट करने नहीं जाता। लेकिन बहुत-से लोग हैं जो गरीब किसानों का, दरिद्र मजदूरों का, अनाथ स्त्रियों और असहाय बच्चों का इह-लोक नष्ट करने पर उतारूं हैं। ऐसे पण्डे-पुरोहितों से, ऐसे पादरियों से, ऐसे मुल्लाओं से मैं उन असमर्थ लोगों के इह-लोक को बचाए रखने का प्रयास करता हूँ(स्रोत- दर्शन, वेद से मार्क्स तक : भदन्त आनंद कौसल्यायन)। प्रस्तुति- अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com
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