Tuesday, November 20, 2018

आचार्य शांतिदेव

आचार्य शांतिदेव
आचार्य शान्तिदेव संभवतया 7 वी सदी में हुए थे । तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ(एम विंटरनिट्ज : ए हिस्टरी ऑफ़ इंडियन लिटरेचर Vol II,  P 365-366)  के अनुसार ये गुजरात के किसी राजा के पुत्र थे और कुछ समय तक ये राजा पञ्चसिंह के राज्य में मंत्री रहे थे। किन्तु उन्हें दुनियादारी और झंझट पसंद नहीं आए और इसलिए वे गृह त्याग कर भिक्खु हो गए थे(भूमिका :बोधिचर्यावतार : अनुवादक शांति भिक्षु शास्त्री )।

आचार्य शान्तिदेव महायान शाखा के दार्शनिक थे। उन्होंने अपने दार्शनिक सिद्धांतों में महायान के अन्य प्रत्ययों के साथ-साथ शुन्यता का प्रतिपादन किया। बताया जाता है कि शान्तिदेव ने आचार्य जयदेव से प्रवज्या ग्रहण की थी। उस समय वे नालंदा  महाविहार के पीठ स्थविर धर्मपाल के उत्तराधिकारी थे। प्रव्रज्या ग्रहण करने बाद आचार्य शान्तिदेव ने नालंदा महाविहार में रह कर ही अध्ययन किया और वही पर रहकर अध्यापन भी (डॉ धर्मकीर्ति: महान बौद्ध दार्शनिक पृ 391)।

आचार्य शान्तिदेव के तीन ग्रन्थ बतलाएं जाते हैं-
1. शिक्षा समुच्चय। 2. बोधिचार्यवातर।  3. सूत्र समुच्चय।
सूत्र-समुच्चय, वर्तमान में अनुपलब्ध है। शिक्षा समुच्चय और बोधिचर्यावतार का विषय एक ही है। भेद केवल निरूपण और व्याख्या शैली का है। बिना काव्य का प्रयत्न किए ही आचार्य ने उसे धर्म का काव्य बना दिया। दूसरे, बोधिचर्यावतार और शिक्षा-समुच्चय दोनों एक दूसरे के पूरक है। बोधिचर्यावतार में शून्यवाद का प्रतिपादन किया गया है जबकि शिक्षा समुच्चय में उसका नाम कीर्तन मात्र है। शिक्षा समुच्चय सूत्रों के उध्दरणोँ से विपुल ग्रंथ हो गया है जबकि बोधिचर्यावतार में सूत्रों का यत्र-तत्र संकेत ही है{वही,  पृ 397 : डॉ धर्मकीर्ति )।

बोधिचर्यावतार-
यह किसी समय बहुत ही लोकप्रिय ग्रन्थ था। इस कारण  इस पर अनेकों विद्वानों ने इस पर  टिकाएं लिखी थी।  भोट देश में इस ग्रन्थ का पाठ आज भी होता है। इसके पाठ को बहुत ही पवित्र कार्य और धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है। महायान धर्म और दर्शन को समझने के लिए यह उत्तम ग्रन्थ है। जिस समय आचार्य शान्तिदेव का आविर्भाव हुआ, उस समय बौद्ध धर्म पूर्ण रूप से विकसित हो चुका था। बोधिचर्यावतार में सर्व-जन  कल्याण सुभाषितों का बुद्ध वचन के रूप में उदात्त भाव में समावेश है किया गया है (वही, पृ 398 )।

शिक्षा समुच्चय-
इसमें 27 कारिकाओं के द्वारा महायान शाखा की धार्मिक चर्चा का स्वरूप सूत्र रूप में प्रस्तुत किया गया है। उसके उपरांत उन सूत्रों को प्रमाणित एवं समर्थन प्रदान करने के लिए उनके चारों ओर महायान सूत्रों के उद्धहरणों से उन्हें सजाया गया है(वही, पृ  391 )।

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