प्रसिद्ध महायानी सूत्र-
प्रज्ञापारमिता, सद्धम्म-पुण्डरिक, सुखावतीव्यूह, मध्यमक-कारिका(नागार्जुन- 175 ई.), लंकावतारसूत्र, महायान-सूत्रालंकार(असंग- 375 ई.), योगाचारभूमिशास्त्र, विज्ञप्तिमात्रातासिद्धि(वसुबन्धु- 375 ई.), न्यायप्रवेश(दिग्नाग- 425 ई.), प्रमाणवार्तिक(धर्मकीर्ति- 600 ई.), बोधिचर्यावतार(शांन्तिदेव- 690-740 ई.), तत्वसंग्रह(शान्तरक्षित- 750 ई.), रत्नकूट, दिव्यादान, मंजुश्री-मूलकल्प(तांत्रिक-ग्रंथ) आदि।
महायान सूत्रों में एक ओर शून्यता के प्रतिपादन के द्वारा विशुद्ध निर्विकल्प ज्ञान का उपदेश किया गया है; दूसरी ओर, बुद्ध की महिमा और करुणा के प्रतिपादन के द्वारा भक्ति उपदिष्ट है। दूसरी कोटि में सुखावती व्यूह, कारंड व्यूह आदि सूत्र आते हैं। इनमे सर्वाधिक महत्त्व सद्धर्मपुंडरिक सूत्र का है(गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, पृ 339)।
महायानी सूत्रों का रचनाकाल ई.पू. प्रथम सदी से चौथी सदी तक मानना चाहिए(महायान का उदगम और साहित्य: बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ. 328-333: गोविद चन्द्र पाण्डेय )।
प्रज्ञापारमिता- इसमें शून्यता का अनेकधा प्रतिपादन किया गया है। प्रज्ञापामितासूत्रों के अनेक छोटे-बड़े संस्करण प्राप्त होते हैं। यथा दशसाहस्त्रिाका, अष्टसाहस्त्रिाका, पञ्चविंशतिसाहस्त्रिाका, शतसाहस्त्रिाका, पंचशतिका, सप्तशतिका, अष्टशतिका, वज्रच्छेदिका, अल्पाक्षरा आदि हैं(वही, 334)।
अवतंसकसूत्र- इस नाम से चीनी ति-पिटक और कंजूर में विपुलाकार सूत्र उपलब्ध होते हैं। चीनी ति-पिटक में अवतंसकसूत्र तीन शाखाओं में मिलता है जो कि क्रमशः 80, 60 और 40 जिल्दों में हैं(वही, पृ. 336)।
महायान सूत्रों के अनुसार तथागत ने हीनयान का उपदेश पांच परिव्राजकों के समक्ष सारनाथ के प्रसिद्द धम्म चक्क पवत्तन के द्वारा किया था, किन्तु महायान का उपदेश उन्होंने राजगृह के गृध्र कूट-पर्वत पर बोधिसत्वों की विपुल और विलक्षण सभा में किया था। अमितार्थ सूत्र के अनुसार सम्बोधि के 40 वर्ष के अनंतर तथागत ने अमितार्थ सूत्र का प्रकाशन किया था(वही, पृ 303 )।
महायान सूत्रों और परम्परा के आधार पर चीन के प्राचीन बौद्ध विद्वानों ने तथागत की धम्म देशना के काल को तीन विभागों में बांटा है। पहले काल-विभाग में, जो कि तीन सप्ताह के अनन्तर प्रारंभ होता है, तथागत ने अवंतसक सूत्रों का उपदेश किया, किन्तु उन्होंने जनता को इन सूत्रों के अवबोध में अक्षम पाया। दूसरे काल-विभाग में उन्होंने 'चार आगमों' की देशना की। यह वस्तुत उनका 'उपायोपदेश' था। अंतत: देशना के तीसरे काल में तथागत ने सद्धर्म पुंडरिक, प्रज्ञा पारमिता, महायान- महा परिनिर्वाणसूत्र एवं महा वैपुल्य-सूत्रों का प्रकाश किया। तिब्बती परम्परा के अनुसार गृध्र कूट का द्वितीय धम्म चक्क पवत्तन सम्बोधि के 16 वर्ष पश्चात हुआ था(पृ 303)।
प्रज्ञापारमिता, सद्धम्म-पुण्डरिक, सुखावतीव्यूह, मध्यमक-कारिका(नागार्जुन- 175 ई.), लंकावतारसूत्र, महायान-सूत्रालंकार(असंग- 375 ई.), योगाचारभूमिशास्त्र, विज्ञप्तिमात्रातासिद्धि(वसुबन्धु- 375 ई.), न्यायप्रवेश(दिग्नाग- 425 ई.), प्रमाणवार्तिक(धर्मकीर्ति- 600 ई.), बोधिचर्यावतार(शांन्तिदेव- 690-740 ई.), तत्वसंग्रह(शान्तरक्षित- 750 ई.), रत्नकूट, दिव्यादान, मंजुश्री-मूलकल्प(तांत्रिक-ग्रंथ) आदि।
महायान सूत्रों में एक ओर शून्यता के प्रतिपादन के द्वारा विशुद्ध निर्विकल्प ज्ञान का उपदेश किया गया है; दूसरी ओर, बुद्ध की महिमा और करुणा के प्रतिपादन के द्वारा भक्ति उपदिष्ट है। दूसरी कोटि में सुखावती व्यूह, कारंड व्यूह आदि सूत्र आते हैं। इनमे सर्वाधिक महत्त्व सद्धर्मपुंडरिक सूत्र का है(गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, पृ 339)।
महायानी सूत्रों का रचनाकाल ई.पू. प्रथम सदी से चौथी सदी तक मानना चाहिए(महायान का उदगम और साहित्य: बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ. 328-333: गोविद चन्द्र पाण्डेय )।
प्रज्ञापारमिता- इसमें शून्यता का अनेकधा प्रतिपादन किया गया है। प्रज्ञापामितासूत्रों के अनेक छोटे-बड़े संस्करण प्राप्त होते हैं। यथा दशसाहस्त्रिाका, अष्टसाहस्त्रिाका, पञ्चविंशतिसाहस्त्रिाका, शतसाहस्त्रिाका, पंचशतिका, सप्तशतिका, अष्टशतिका, वज्रच्छेदिका, अल्पाक्षरा आदि हैं(वही, 334)।
अवतंसकसूत्र- इस नाम से चीनी ति-पिटक और कंजूर में विपुलाकार सूत्र उपलब्ध होते हैं। चीनी ति-पिटक में अवतंसकसूत्र तीन शाखाओं में मिलता है जो कि क्रमशः 80, 60 और 40 जिल्दों में हैं(वही, पृ. 336)।
महायान सूत्रों के अनुसार तथागत ने हीनयान का उपदेश पांच परिव्राजकों के समक्ष सारनाथ के प्रसिद्द धम्म चक्क पवत्तन के द्वारा किया था, किन्तु महायान का उपदेश उन्होंने राजगृह के गृध्र कूट-पर्वत पर बोधिसत्वों की विपुल और विलक्षण सभा में किया था। अमितार्थ सूत्र के अनुसार सम्बोधि के 40 वर्ष के अनंतर तथागत ने अमितार्थ सूत्र का प्रकाशन किया था(वही, पृ 303 )।
महायान सूत्रों और परम्परा के आधार पर चीन के प्राचीन बौद्ध विद्वानों ने तथागत की धम्म देशना के काल को तीन विभागों में बांटा है। पहले काल-विभाग में, जो कि तीन सप्ताह के अनन्तर प्रारंभ होता है, तथागत ने अवंतसक सूत्रों का उपदेश किया, किन्तु उन्होंने जनता को इन सूत्रों के अवबोध में अक्षम पाया। दूसरे काल-विभाग में उन्होंने 'चार आगमों' की देशना की। यह वस्तुत उनका 'उपायोपदेश' था। अंतत: देशना के तीसरे काल में तथागत ने सद्धर्म पुंडरिक, प्रज्ञा पारमिता, महायान- महा परिनिर्वाणसूत्र एवं महा वैपुल्य-सूत्रों का प्रकाश किया। तिब्बती परम्परा के अनुसार गृध्र कूट का द्वितीय धम्म चक्क पवत्तन सम्बोधि के 16 वर्ष पश्चात हुआ था(पृ 303)।
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