Monday, November 19, 2018

फाहियान, व्हेनसांग के समय अयोध्या

फाहियान, व्हेनसांग के समय अयोध्या
अयोध्या भारत का बहुत ही प्राचीन नगर हैं।  पालि ग्रंथों में अयोध्या के लिए 'अयोज्झा' और अयुज्झ' आए हैं। गोतम बुद्ध का इस नगर के साथ विशेष सम्बन्ध था(डॉ अवधेश सिंह: चीनी यात्रियों के यात्रा में प्रतिबिंबित बौद्ध धर्म का एक अध्ययन,  पृ 158 )।

फाहियान(यात्रा काल  399-414 ई ) गुप्तों के शासन काल में अयोध्या आया था। उसके अनुसार ब्राह्मण और बौद्ध मतालाम्बियों में सौहार्द्र पूर्ण व्यवहार नहीं था।  उसने एक वृक्ष का वर्णन किया है जिसे विरोधियों ने अनेक बार समाप्त करने का प्रयास किया किन्तु वह पुन: वही रूप धारण कर लेता था। व्हेनसांग ने भी इस वृक्ष का उल्लेख किया है। उदय नारायण रॉय(प्राचीन भारत में नगर तथा नगर जीवन ) का मत है कि अयोध्या को गुप्त काल में वसुबन्धु(400-500 ई.) के प्रभाव के कारण संरक्षण प्राप्त होता रहा(वही)।

युवानच्वांग अर्थात व्हेनसांग (यात्रा काल  629-654 ई ) के अनुसार बुद्ध, धर्म प्रचार के सम्बन्ध में अनेक बार अयोध्या आए थे और मानव जीवन की  निस्सारता तथा क्षण-भंगुरता पर प्रभावकारी व्याख्यान दिया था। मलालशेखर(डिक्शनरी ऑफ़ पालि प्रापर नेम्स) ने उल्लेख किया है कि अयोध्या के नागरिक बुद्ध के बड़े प्रशंसक थे। बुद्ध के निवास के लिए अयोध्या के समीप सुदर विहार का निर्माण भी किया गया था। कौशल राज्य के अंतर्गत सावस्थी के बाद साकेत दूसरा प्रधान नगर था।  बुद्धकालीन भारत के 6 महानगरों में साकेत की गणना होती थी(दीघनिकाय; महापरिनिब्बान सुत्त, महासुदस्सन सुत्त )।  इस नगर की स्थापना बुद्ध के जीवन काल में हो हो गई थी(वही)।

अयोध्या में तब, 100 संघाराम थे जिनमें महायान और हीनयान के 3000 अनुयायी साधु रहते थे और दोनों सम्प्रदायों की पुस्तकों का अध्ययन करते थे।  यहाँ 10 देव मंदिर भी थे, जिनमें थोड़े-से बौद्ध धर्म विरोधी उपासना करते थे। राजधानी में स्थित एक प्राचीन संघाराम का उल्लेख मिलता है, जहाँ पर वसुबन्धु (अभिधर्म कोष के रचियता) ने कठिन परिश्रम से हीनयान और महायान के अनेक शास्त्रों की रचना की थी।  यहाँ पर विशाल भवन की दीवार थी, जहाँ वसुबन्धु ने राजाओं तथा भिक्खुओं के समक्ष बौद्ध धर्म पर व्याख्यान दिया था। यहां के कुछ स्तूपों का भी उल्लेख मिलता है जिनमें एक अशोक द्वारा गंगा के किनारे बनवाया गया था और जिसकी ऊंचाई 200 फीट थी(वही, पृ 159 )।

अयोध्या में बुद्ध ने 'देवसमाज' को तीन मास तक धर्मोपदेश दिया था और यहाँ गत बुद्धों में भी बहुत-से चिन्ह पाएं जाते हैं। व्हेनसांग ने यह भी उल्लेख किया है कि वसुबन्धु संघाराम से पश्चिम 4-5 ली दूर एक स्तूप में बुद्ध की अस्थियाँ विद्मान थी।  उसके ऊपर एक जीर्ण-शीर्ण संघाराम था, जहाँ श्रीलब्ध शास्त्री ने सौत्रान्त्रिक सम्प्रदाय सम्बन्धी 'विभाषा शास्त्र' लिखा था(वही )।

अयोध्या नगर के दक्षिण-पश्चिम आम्र-वाटिका में एक पुराना संघाराम था, जहाँ असंख्य बोधिसत्वों ने विद्याध्ययन किया था।  व्हेनसांग के अनुसार असंग (वसुबन्धु के बड़े भाई) ने योगाचारशास्त्र सूत्रालंकार टीका की रचना की थी।  असंग की मृत्यु के बाद वसुबन्धु ने यहाँ कई ग्रंथों की रचना की थी। वसुबन्धु की मृत्यु अयोध्या में ही हुई थी(वही)।

कनिंघम(एशेंट ज्याग्रफी ऑफ़ इंडिया), स्मिथ बी ए (दी अर्ली हिस्ट्री ऑफ़ बुद्धिज़्म ) , मलालशेखर डी पी, नलिनाक्ष दत्त एवं कृष्णदत्त बाजपेयी(उ प्र में बौद्ध धर्म का विकास ) आदि इतिहासकारों में कुछ साकेत और अयोध्या को अलग-अलग मानते हैं, तो कुछ एक ही मानते हैं । रिज डेविड्स(बुद्धिस्ट इंडिया) के शब्दों में  साकेत और अयोध्या लन्दन और वेस्टमिनिस्टर के समान एक दूसरे के समीपवर्ती नगर रहे होंगे। डॉ अवधेश सिंह के अनुसार प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान रिज डेविड्स का मत यहाँ अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है। 
 प्रस्तुति- अ ला ऊके   @amritlalukey.blogspot.com 

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